साल 2014 और 2019 दोनों में ही गुजरात में भाजपा क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगाने से चूक गई। पार्टी को राज्य की बनासकांठा सीट गंवानी पड़ी। बताया जा रहा है कि भाजपा हैट्रिक सिर्फ इस वजह से चूक गयी क्योंकि अपनी पार्टी के आंतरिक विरोध को कंट्रोल नहीं कर पाई। बनासकांठा सीट के आंकड़े गवाही दे रहे हैं की भाजपा की प्रत्याशी को उसी के सहयोगियों ने हराया। हैरानी की बात तो ये है कि कांग्रेस की गेनी बेन ठाकोर 2022 के विधानसभा चुनावों जीती हुई खुद की विधानसभा (वाव) में पिछड़ने के बावजूद बनासकांठा लोकसभा की सीट जीत गई। आइए जानते हैं कि ऐसा हुआ कैसे।
कैसा रहा पार्टी का प्रदर्शन?
भारतीय जनता पार्टी इस बार गुजरात में 4 सीटें 5 लाख से ज्यादा वोट और करीब 10 सीटें 2 लाख से ज्यादा वोट के मार्जिन से जीती है। हालांकि, आतंरिक विरोध की खबरें अपने चरम पर हैं। इसी वजह से चार अन्य सीटों पर मार्जिन बुरी तरह घटे। यहां तक की पार्टी पाटन की सीट भी हारते हारते बची।
क्यों सीट नहीं बचा पाई भाजपा?
बनासकांठा की सीट के आंकड़े बहुत से रोचक तथ्यों की गवाही दे रहे हैं। बनासकांठा में कुल 7 विधानसभा की सीटें पड़ती हैं जिनमें से 4 सीटें बीजेपी ने बड़े अच्छे मार्जिन से जीती थीं। पर इस बार 1 को छोड़ कर बाकी 3 पर बीजेपी बुरी तरह पिछड़ गयी। जबकि बनासकांठा में बनास डेरी का विस्तार देखते हुए बनास डेरी के संस्थापक ग़लबा भाई चौधरी की पौत्री और बीजेपी उम्मीदवार डॉ रेखा बेन चौधरी के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए थ। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि वो सीट जो पिछली बार बीजेपी ने करीब पौने चार लाख के अंतर से जीती थी, वो सीट बीजेपी हार गयी। उसकी सबसे बड़ी वजह है बीजेपी का आंतरिक कलह, जिसकी वजह से बनासकांठा की सीट सेबोटाज (sabotage) हो गयी।
कई सीटों पर हुए प्रयास?
ऐसे प्रयास कई सीटों पर हुए थे। जामनगर बीजेपी की उम्मीदवार का प्रचार कर रहे राज्यसभा सांसद परिमल नथवाणी ने जीत के बाद उन्हें बधाई देते हुए अपनी पोस्ट में खुद लिखा कि जामनगर में सेबोटाज करने के प्रयासों के बावजूद वो जीत गयी। पर बनासकांठा की सीट पर ये प्रयास सफल हो गए, कैसे ये जानना बड़ा इंटरेस्टिंग होगा क्योंकि जातिगत समीकरणों से सबसे ज्यादा प्रभावित बनासकांठा में ऐसा लग रहा था की इस बार लड़ाई चौधरी बनाम बाकी सभी समाजों में हो गयी है। साथ ही बनास डेरी पर प्रभुत्व इस वक्त बनासकांठा में एक बड़ा मुद्दा है। वो बनास डेरी जिसका बनासकांठा जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र में भी पशुपालन को एक नए आयाम पर पहुँचाया है।
ऐसे पिछड़ी भाजपा
इन सब बातों का असर इन चुनावों में दांता और धानेरा विधानसभा के ट्राइबल यानि आदिवासी वोटरों में भी देखने को मिला। दांता आदिवासी सीट पर पिछले कई सालों से हम देख रहे के बनास डेरी के साथ जुड़ने से हो रहे फायदे की वजह से आदिवासी वोटर का रुझान भी भाजपा की तरफ बड़ा है। इसी वजह से 2022 के चुनावों में भी बीजेपी ये विधानसभा महज 6327 वोटो से हारी थी। दांता के आदिवासियों ने इस बार बीजेपी की उम्मीदवार को इस बार बड़ी संख्या में वोट दिए। बल्कि आदिवासी बूथों पर बीजेपी के वोट बढ़े हैं लेकिन उसके सामने लोकल लेवल पर इनफाइटिंग की वजह से दलितों और अन्य समाजों के वोट बीजेपी से डाइवर्ट हो गए। बनासकांठा के आदिवासी इलाकों का मिजाज देख कर ऐसा लग रहा था की बीजेपी को इस बार आदिवासी बहुल दांता में बढ़त मिलेगी पर यहाँ बीजेपी 11013 वोटों से पिछड़ गयी।
यहां लगा झटका
धानेरा की सीट पर भी डेरी के साथ जुड़ रहे आदिवासी और अन्य समाज के लोगों बीजेपी को समर्थन दिया पर रबारी समाज के प्रभुत्व वाली इस सीट पर रबारी समाज के वोट बीजेपी में ट्रांसफर नहीं हो पाए। जबकि इस सीट से 2022 में निर्दलीय के तौर पर जीते बीजेपी के बागी उम्मीदवार मावजी भाई देसाई ( रबारी समाज के बड़े नेता) इस बार पुरे समय बीजेपी की उम्मीदवार रेखा बेन चौधरी के साथ हर जगह प्रचार करते नज़र आये। लेकिन निर्दलीय के तौर पर मावजी भाई धानेरा विधानसभा 35696 वोटों से जीते थे और इन चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 1650 वोटों की बढ़त ही मिल पायी। शायद ये बढ़त भी ना मिलती यदि थराद से बीजेपी के विधायक और विधानसभा के अध्यक्ष शंकरभाई चौधरी धानेरा पर खुद भी फोकस ना कर रहे होते।
ठाकोर मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा
बनासकांठा में चुनावों में शंकरभाई चौधरी का पूरा फोकस इस बार अपनी सीट थराद के अलावा वाव, धानेरा और दांता पर ही रहा। शायद इसकी सबसे बड़ी वजह ये भी थी की 2022 में ये तीनो सीटें बीजेपी हार गयी थी। साथ ही पुरे लोकसभा क्षेत्र में इन सभी सीटों पर ठाकोर मतदाताओं की संख्या भी सबसे ज्यादा है। थराद का रिज़ल्ट तो एक्सपेक्टेड लाइंस पर ही था। 2022 में यहाँ शंकरभाई चौधरी 26506 बोटों से जीते थे और इस बार इस सीट पर चौधरी-पटेल वोट डैमेज होने के बावजूद ( सैबोटाजिंग का एक और इंडिकेशन) बीजेपी की 14586 वोटों की लीड बीजेपी को मिली।
वाव सीटों पर पिछड़ीं गेनीबेन ठाकोर
शंकरभाई चौधरी का सबसे ज्यादा असर देखने को मिला वाव में। खुद वाव की विधानसभा सीट जो गेनीबेन ठाकोर ने 2022 में 15601 वोटों से जीती थी , उसी पर वो 1661 वोटों से पिछड़ गयी। ये बनासकांठा में इस चुनाव का सबसे बड़ा टॉकिंग पॉइंट है की गेनीबेन अपने विधानसभा क्षेत्र में ही पिछड़ गयी तो फिर जीती कैसे ???
ये तीन सीटें बनी वजह
सबसे पहले बात पालनपुर की सीट की बनासकांठा की सबसे अर्बन सीट जहां बीजेपी को शायद सबसे कम चिंता थी। जानकारों के हिसाब से देखें तो 2022 में बीजेपी ये सीट 26980 वोटों से जीती थी और कांग्रेस के हारे हुए उम्मीदवार महेश पटेल भी भाजपा ज्वाइन कर चुके थे। फिर ऐसा क्या हुआ की पालनपुर में पाटीदार मतदाताओं के बूथ पर ही बीजेपी को वोट नहीं मिले। जो सीट 2022 में बीजेपी 26980 वोट से जीती थी उसी पर इन चुनावों में वो 29150 वोट से पिछड़ गईं। इन्टरेस्टिंगली गेनीबेन ठाकोर ने इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम प्रचार किया था।
डीसा विधानसभा भी दूसरी अर्बन सीट है और ये सीट भी बीजेपी में 2022 में 42647 वोट से जीती थी और हारे हुए कांग्रेस के कैंडिडेट गोवा भाई रबारी भी भाजपा ने जुड़ गए थे। मज़े की बात तो ये है की डीसा से बीजेपी के विधायक प्रवीण माली और गोवाभाई रबारी दोनों पुरे प्रचार में रेखा बेन चौधरी के फेवर में अपनी ताकत का प्रदर्शन करते नज़र आये। पर ऐसा लग रहा था की भाजपा में साथ होने के बावजूद दोनों साथ नहीं दिखे। लग रहा था की रेखाबेन चौधरी को जिताने की बजाये दोनों एक दूसरे को हराने में जुटे हुए थे और परिणाम क्या आया अभी डेढ़ साल पहले 42647 के अंतर् से जीती हुई सीट पर बीजेपी इस बार 11535 वोटों से पिछड़ गयीं।
अब आते हैं दियोदर की सीट पर जहाँ सबसे बड़ा खेल इसी सीट पर हुआ । ठाकोर मतदाता बहुल इस सीट को बीजेपी के ठाकोर नेता ने 2022 में 38414 वोट से जीता था। पर इस बार भाजपा इस सीट पर 20576 वोट से पिछड़ गयी। इसका मतलब साफ़ है की बीजेपी का ठाकोर विधायक होने के बावजूद ठाकोर वोट कांग्रेस की गेनीबेन ठाकोर को मिला।
क्षत्रिय - राजपूतों के 80 हजार वोट
बनासकांठा में 80000 से ज्यादा क्षत्रिय - राजपूत मतदाता हैं, जो बीजेपी के साथ जुड़े होने के बावजूद, आंदोलन की वजह से पूरी तरह कांग्रेस में शिफ्ट हो गए। इन्टरेस्टिंगली जिला भाजपा के प्रमुख राज्य सरकार में पूर्व मंत्री कीर्तिसिंह वाघेला भी क्षत्रियों को मना नहीं पाए। सुरेंद्रनगर की सीट पर किरीटसिंह राणा और हितेंद्रसिंह परमार ने क्षत्रियों को मना लिया तो वो सीट बच गयी। इसका मतलब ये नहीं है की गेनीबेन ने ठीक ढंग से चुनाव नहीं लड़ा। उन्होंने पूरी शक्ति के साथ चुनाव लड़ा और बनासकांठा में बीजेपी किस आतंरिक कलह का फायदा उठाया। ये क्रेडिट भी उनसे कोई नहीं छीन सकता।
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पड़ोस में साबरकांठा जिले में तो बीजेपी का आतंरिक कलह सतह पर आ गया था और 10 में से 9 फैक्टर बीजेपी के विरूद्ध थे। फिर भी बीजेपी 1.5 लाख वोटों से ये सीट जीत गयी ( अरे जिस सीट की काउंटिंग के वक्त भी पार्टी के एजेंट गायब हों .. जीत के बाद जिला पार्टी मुख्यालय पर ताला लगा होने की तस्वीरें वायरल हो रही हों) .. इसका मतलब साफ़ है की कांग्रेस के तुषार चौधरी ने उतनी तत्परता के साथ चुनाव नहीं लड़ा, जो जज़्बा गेनीबेन ने दिखाया।
भाजपा के लिए आत्ममंथन का समय
भले ही स्कोर 25-1 रहा हो पर गुजरात बीजेपी के लिए भी ये आत्ममंथन का समय है.. क्योंकि वो पार्टी जिसे नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने काम और परफॉर्मेंस से अजय बना दिया .. अमित शाह ने सहकारी क्षेत्र में प्रभुत्व जमा कर गुजरात में उसकी जड़ें और मजबूत की.. पटेल और पाटिल की जोड़ी ने तो 2022 तो 156 सीटें जीत कर एक रिकॉर्ड बना दिया , फिर अचानक उसमे अंतर कलह इस तरह सतह पर कैसे आ सकता है ??
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