गुजरात के सूरत में पुलिस ने फर्जी डॉक्टर तैयार करने वाले रैकेट का भंडाफोड़ किया है। यहां लगभग 1200 ऐसे डॉक्टर हैं, जिन्होंने ठीक से स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं की, लेकिन फर्जी डिग्री लेकर डॉक्टर बन गए और लोगों का इलाज करने लगे। इन लोगों ने अपने क्लीनिक खोल लिए और कुछ मामलों में इलाज के बाद मरीज की मौत भी हो गई। इस मामले में पुलिस ने मास्टरमाइंड सहित 13 फर्जी डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है।
सूरत पुलिस के डीसीपी जोन 4 विजय सिंह गुर्जर ने बताया कि आरोग्य अधिकारी की टीम के साथ तीन अलग-अलग डॉक्टरों के क्लीनिक में छापेमारी की गई। जब उनसे डिग्री के बारे में पूछा गया तो उन्होंने BEMS बैचलर (ऑफ इलेक्ट्रो होमियोपैथी मेडिकल साइंस) का सर्टिफिकेट दिखाया, जिसे गुजरात सरकार द्वारा मान्यता नहीं दी गई है। स्वास्थ्य विभाग ने इसे फर्जी बताया।
पुलिस की पूछताछ में खुलासा
पुलिस की पूछताछ में इन डॉक्टरों ने खुलासा किया कि उन्होंने रसेश गुजराती से प्राप्त की है। रसेश गुजराती ने कई लोगों को फेक डिग्रियां दी थी और इन डिग्रियों के आधार पर कई डॉक्टर गुजरात के अलग अलग शहरों में लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे थे। इन डॉक्टरों के पास फेक डिग्री थी लेकिन वह एलोपैथी दवाओं का इस्तेमाल करके लोगो की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे थे। यह गोरखधंधा 2002 से चलाया जा रहा था और लाखों रूपये वसूले गए थे। पुलिस ने जिन 3 डॉक्टरों के क्लीनिक पर छापेमारी की उसमें से एक फर्जी डॉक्टर शमीम अंसारी भी है, जो एक नन्ही बच्ची के इलाज में शामिल था। गलत इलाज के कारण बच्ची की मौत हो गई थी। उस वक्त पुलिस ने उनके खिलाफ मामला भी दर्ज किया था। आरोपी 100 दिन जेल में रहकर वापस आया था और आते ही उसने वापस अपना क्लीनिक शुरू कर दिया था।
मास्टरमाइंड के पास क्या मिला
पुलिस ने डॉक्टर रसेश गुजराती के ऑफिस पर छापेमारी की तब उनके ऑफिस से बड़ी मात्रा में डॉक्यूमेंट बरामद किए थे। पुलिस को ऑफिस से सात रजिस्ट्रेशन बुक्स, पंद्रह रिन्यूअल कार्ड्स, ओर सर्टिफिकेट की जेरॉक्स कॉपी मिली थी। साथ ही विभिन्न प्रकार के फेक सर्टिफिकेट की कॉपी भी मिली। डॉक्टर रसेश गुजराती ने कबूल किया कि उसने 90 के दशक में BHMS की पढ़ाई की थी और कई ट्रस्टों की हॉस्पिटलों में वाइस प्रिंसिपल से लेकर प्रिंसिपल के रूप में काम किया था। हालांकि उसे उसमें अच्छी कमाई नहीं होती थी। इसलिए उसने सरकार की तरफ से कोई नियम बनाए नहीं गए होने की वजह से इलेक्ट्रो होमियोपैथी के क्षेत्र में कदम रखा ओर इस फर्जीवाड़े की शुरुआत की।
कैसे किया फर्जीवाड़ा
2002 के बाद उनके संपर्क में जो भी आता था उनको बताते थे कि गुजरात सरकार का आयुष डिपार्टमेंट में हमारा इलेक्ट्रो होमियोपैथीक रजिस्टर्ड हो गया है, जिसकी ऑफिस अहमदाबाद में है। उनके अंदर आपको ट्रेनिंग करवाएंगे और डिग्री देंगे, आप हमें 70 हजार रुपया दीजिए। ढाई साल की ट्रेनिंग की बात करते थे पर उनके पास कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था। जब डिग्री लेकर डॉक्टर मार्केट में गए तो उनको मरीजों से कोई रिस्पॉन्स ही नहीं मिला। बाद में उन्होंने डॉक्टरों के यहां काम करने वाले लोग थे उनसे संपर्क शुरू किया और 70 हजार में फर्जी डिग्री बेचकर उनको डॉक्टर बनाना शुरू कर दिया। उनको आश्वासन भी देते थे कि आपके क्लिनिक में हमारी दी हुई डिग्री से मरीजों का इलाज करोगे तो आपको पुलिस ओर आरोग्य विभाग के अधिकारी भी नहीं पकड़ सकते हैं।
डी रावत को मिलता था 30 फीसदी हिस्सा
इस रैकेट में रिन्यूअल और शुल्क की वसूली भी की जाती थी। अगर कोई डॉक्टर शुल्क देने से मना करे तो उनको धमकी दी जाती थी। डॉक्टर रसेश गुजराती अपने मुनाफे का 30% हिस्सा अहमदाबाद में डॉक्टर डी के रावत को भी भेजा जाता था। बाकी के पैसे खुद रख लेता था। इस रैकेट में इरफान ओर शोभित सिंह जैसे लोग लोगो से शुल्क वसूलने ओर धमकी देने का काम करते थे। इस रैकेट के कारण कई अनपढ़ गवार लोग फेक डिग्री के कारण डॉक्टर बन गए थे और मरीजों का इलाज कर रहे थे। इनमें से एक शमीम अंसारी था, जिसकी वजह से कुछ महीने पहले एक नन्ही बच्ची की मौत हो गई थी। यह फर्जी डॉक्टर दसवीं कक्षा तक पढ़ा था। ओर उसने अपनी फेक डिग्री रसेश गुजराती से प्राप्त की थी।
पुलिस ने 13 आरोपियों को गिरफ्तार किया
इस मामले में पुलिस ने डॉक्टर रसेश गुजराती, भूपेंद्र रावत, इरफान सैयद, अमीन खान, शमीम अंसारी, सैयद बदल, इस्माइल शेख, तब्रीश सैयद, राकेश पटेल, राहुल रावत, शशिकांत महतो सिद्धार्थ देवनाथ और पार्थ कालीपद को गिरफ्तार किया है। विजय सिंह गुर्जर ने बताया कि उनके नाम पर एक वेबसाइट रजिस्टर्ड है। रसेश गुजराती और अहमदाबाद के डी के रावत ने मिलकर 1200 लोगो को फेक डिग्री देकर डॉक्टर बनाने का काम किया। दोनों ने पुलिस की पूछताछ में खुलासा किया है कि हमने 1200 जितनी फेक डिग्री बेची हैं। पुलिस अब उनकी भी जांच कर रही है। पहले कुछ युवाओं को इलेक्ट्रो होमियोपैथी का तीन साल का कोर्स दो साल में पूरा कराया गया। इस कोर्स में दवाइयों का उपयोग ओर उपचार की ट्रेनिंग दी गई थी। सर्वे के दौरान यह सामने आया कि इन लोगों को कोर्स के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और फेक डिग्री लेकर एलोपैथी दवाइयां देकर लोगो की जिंदगी से खिलवाड़ करते थे।
हाईकोर्ट में याचिका दाखिल
डीसीपी विजय सिंह गुर्जर ने बताया कि इलेक्ट्रो होमियोपैथी चिकित्सा होती है पर भारत सरकार ओर गुजरात सरकार से कोई मान्यता नहीं मिली है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक पीआईएल दायर की है। गुजरात हाईकोर्ट में भी एक पीआईएल दर्ज है। कोर्ट ने इलेक्ट्रो होमियोपैथीक चिकित्सा को संविधान के आर्टिकल 19 के तहत मान्यता दी है पर उसमें कई शर्त भी लगाई हैं। आप प्रैक्टिस कर सकते हो पर उसका प्रचार प्रसार नहीं कर सकते हो। आप डॉक्टर शब्द का उपयोग नाम के आगे नहीं कर सकते हो। पकड़े गए सभी लोगों ने अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाया था। 3 साल का पूरे कोर्स की होनी चाहिए। इसके बाद में ही प्रैक्टिस कर सकते है। पकड़े गए लोगों के पास कोई जानकारी नहीं है। किसी के पास भी इलेक्ट्रो होमियोपैथिक के बारे में कोई जानकारी नहीं है। रसेश गुजराती और डी के रावत ने अपने घर पर डॉक्टर का बोर्ड लगाया था। वह खुद ही मरीजों का इलाज करते थे। सर्टिफिकेट भी ऐसा बनाया कि देखने में भी असली लगे। अनपढ़ गवार लोगों को वेबसाइट और डेटा दिखाकर ठगी करते थे। पुलिस ने पकड़े गए सभी 13 लोगों के खिलाफ आईपीसी धारा 384 ओर 420 के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
(सूरत से शैलेष चांपानेरिया की रिपोर्ट)