Thursday, January 16, 2025
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पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कोर्ट ने दी बड़ी राहत, 27 साल पुराने मामले में किया बरी

कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता और गवाहों ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे बिजली के झटके दिए, लेकिन रिकॉर्ड में पेश किए गए सबूत उन आरोपों को साबित नहीं करते हैं।

Edited By: Dhyanendra Chauhan @dhyanendraj
Published : Dec 08, 2024 13:33 IST, Updated : Dec 08, 2024 13:42 IST
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट
Image Source : FILE PHOTO पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट

पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 27 साल पुराने हिरासत में यातना के मामले (1997) में बरी कर दिया गया है। गुजरात के पोरबंदर की एक कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘आरोप को साबित नहीं कर सका’ है। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने शनिवार को पोरबंदर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (SP) भट्ट को उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दर्ज मामले में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। 

राजस्थान के एक वकील को फंसाने का मामला

इससे पहले संजीव भट्ट को जामनगर में 1990 में हिरासत में हुई मौत के मामले में आजीवन कारावास और 1996 में पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए मादक पदार्थ रखने से जुड़े मामले में 20 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। वह वर्तमान में राजकोट के केंद्रीय कारागार में बंद हैं। 

अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया गया

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘इन आरोपों को साबित नहीं कर सका’ कि शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया गया और खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल कर और धमकियां देकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया गया था। इसके साथ ही कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि मामले में आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी जो उस समय एक लोक सेवक था। 

खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाया

संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चाउ पर भारतीय दंड संहिता की धारा 330 (अपराध स्वीकार करवाने के लिए चोट पहुंचाना) और 324 (खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था। कांस्टेबल वजुभाई की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ मामले को खत्म कर दिया गया। 

शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं

दोनों के खिलाफ यह मामला नारन जादव नामक व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) और शस्त्र अधिनियम के मामले में अपराध कबूल करवाने के लिए पुलिस हिरासत में उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं। 

भाषा के इनपुट के साथ

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