गुजरात के मोरबी शहर में केबल पुल गिरने से पूरे देश में शोक की लहर है। घटना के बाद से पुल के देखभाल का जिम्मा सभालने वाली कंपनी ओरेवा ग्रुप पर कई बड़े सवाल उठ रहे है। घड़ी बनाने से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनी को आखिर पुल की मरम्मत करने का ठेका कैसे मिल गया? यह बड़ा सवाल है।
ओरेवा ग्रुप का इतिहास
साल 1971 में ओधावजी राघवजी पटेल ने ओरेवा ग्रुप कंपनी की स्थापना अजंता तथा ओरपैट ब्रांड के तहत दीवार घड़ी बनाने के लिए किया था। बिजनेस में हाथ आजमाने से पहले वह एक स्कूल में विज्ञान के अध्यापक थे। पटेल का 88 वर्ष की आयु में इस महीने की शुरुआत में निधन हो गया था।
मार्च में मिला था पुल की देखरेख का ठेका
ओरेवा ग्रुप अब लगभग 800 करोड़ रुपये आय वाली कंपनी घरेलू और बिजली के उपकरण, बिजली के लैंप, कैलकुलेटर, चीनी मिट्टी के उत्पाद और ई-बाइक बनाती है। इस साल मार्च में मोरबी नगर निकाय ने ओरेवा ग्रुप को पुल की मरम्मत और देखरेख का ठेका दिया था। वहीं ओरेवा ग्रुप ने अपनी वेबसाइट पर दावा किया है कि उसके यहां 6,000 से अधिक लोग काम करते और देशभर में 55,000 साझेदारों के जरिए वह अपने उत्पादों को बेचता है।
15 वर्षों के लिए ओरेवा ग्रुप को मिला था देखभाल का जिम्मा
मच्छू नदी पर बने केबल ब्रिज के संचालन और रख-रखाव की जिम्मेदारी ओरेवा ग्रुप को साल 15 के लिए मिला था । इसी वर्ष मार्च में ब्रिज के पुनरुद्धार के लिए इसे बंद कर दिया गया था। इसे बीते 26 अक्तूबर को ही गुजराती नववर्ष के मौके पर दोबारा खोला गया था। ब्रिज पर आने वाले लोगों से कंपनी 17 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से शुल्क लेती थी। इस समय कंपनी के कर्ता-धर्ता जयसुख ओधवजी है, जिन्होंने अपने पौत्री से दीपावली के दौरान हड़बड़ी में इस ब्रिज का उद्घाटन करवा लिया।
130 से अधिक लोगों की मौत
इस हादसे में अभी तक 134 लोगों की मौत हुई है। मिली जानकारी के मुताबिक पुल का जीर्णोद्धार करने वाले जिंदल ग्रुप ने इस ब्रिज के लिए 25 साल की गारंटी दी थी। लेकिन कंपनी ने ब्रिज पर एक साथ 100 से अधिक लोगों को न चढ़ने देने की इजाजत देने की बात कही थी।
वहीं हादसे के वक्त 400-500 लोग पुल पर मौजूद थे। ब्रिज का फिटनेस सर्टिफिकेट और सरकार के तीन एजेंसियों के द्वारा जांच होना बाकी था। इससे पहले ही यह बड़ा हादसा हो गया। फिलहाल हादसे के संबंध में दर्ज की गई FIR में जयसुख या ओरेवा ग्रुप का नाम कहीं दर्ज नहीं है।