अहमदाबाद: इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने रविवार को कहा कि उन्हें बहुत अफसोस है कि उन्होंने अपनी मां को इंफोसिस आने के लिए तब आमंत्रित किया, जब वह मर रही थीं। उन्होंने एक उद्यमी और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (IIM-A) के पूर्व छात्र मदन मोहनका की एक जीवनी का विमोचन करने के बाद यह बात कही। यह आयोजन अहमदाबाद में हुआ था।
अपने भाषण में मूर्ति ने मोहनका की कहानी की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह इच्छुक उद्यमियों के साथ-साथ व्यापारिक नेताओं के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि और प्रेरणा प्रदान करती है। उन्होंने कहा, एक व्यक्ति जो कार्रवाई में विश्वास करता है, उसकी जीवनी का उपयुक्त शीर्षक 'आई डिड व्हाट आई हैड टू डू' है और मुझे उसके जीवन, उसके व्यावसायिक कौशल और वंचितों के लिए शिक्षा के प्रति उसके समर्पण के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
अपनी खुद की नेतृत्व यात्रा के बारे में पूछे जाने पर मूर्ति ने महात्मा गांधी को अपनी प्रेरणा बताते हुए कहा, उनका मानना था कि जब भी आप कोई निर्णय लें, तो उन गरीब लोगों के बारे में सोचें जो उस फैसले से प्रभावित होंगे। इसके बाद उन्होंने 1990 के दशक में परामर्श और आईटी सेवाओं में एक वैश्विक नेता, इंफोसिस के निर्माण में अपने अनुभव के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे वे अपने वेतन का केवल 1/10वां हिस्सा लेते थे और अपने जूनियर सहयोगियों को 20 प्रतिशत अतिरिक्त देते थे। वह नेतृत्व करते थे और अपनी टीम के बीच जिम्मेदारी की भावना पैदा करते थे।
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मूर्ति ने विनम्रता के महत्व पर जोर देते हुए कहा, मेरे कॉलेज में और बाद में मेरे उद्योग में मुझसे ज्यादा होशियार लोग थे, लेकिन विनम्रता एक ऐसी चीज है, जिसने मुझे अपने करियर में ऊंची उड़ान भरने में मदद की। हमेशा अपने पैर जमीन पर रखें। मूर्ति ने एक बात भी शेयर की, जिसके बारे में उन्हें बुरा लगता है। उन्होंने कहा, मुझे बुरा लगता है कि मैंने अपनी मां को इंफोसिस आने के लिए तभी आमंत्रित किया जब वह मर रही थीं। मैं इंफोसिस बनाने में इतना व्यस्त था।