अहमदाबाद: गुजरात हाई कोर्ट ने शुक्रवार को सूरत पारसी पंचायत बोर्ड की वह याचिका खारिज कर दी, जिसके जरिए उसने कोविड-19 से मरने वाले समुदाय के सदस्यों का दाह संस्कार करने के बजाय पारसी परंपरा के मुताबिक अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी थी। जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस भार्गव डी कारिया की खंडपीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि इसमें कोई दम नहीं है और उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई हालिया टिप्पणी का हवाला दिया।
सूरत पारसी पंचायत बोर्ड ने मई में दायर की गई अपनी याचिका के जरिए कोविड-19 से मरने वाले समुदाय के सदस्यों का अंतिम संस्कार दोखामांसिनी के जरिए करने के मूल अधिकार का संरक्षण किये जाने का अनुरोध किया था। याचिका में कहा गया है कि दोखामांसिनी परंपरा में शव को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ कहे जाने वाले एक ढांचे में ऊंचाई पर रख दिया जाता है ताकि गिद्ध उन्हें खा सके और अवशेषों को धूप में सड़ने-गलने के लिए छोड़ दिया जाता है। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, ‘राज्य की सुरक्षा और कल्याण सर्वोच्च कानून है।’
कोर्ट ने कहा, ‘कांवड़ यात्रा मुद्दे में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि नागरिकों का स्वास्थ्य और जीवन का उनका अधिकार सर्वोपरि है तथा अन्य सभी भावनाएं इस मूल अधिकार से कम महत्व के हैं।’ अदालत ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और यह खारिज की जाती है। इसस पहले सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 की उच्च संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में बकरीद के मौके पर केरल सरकार द्वारा पाबंदी में दी गई छूट को बीते मंगलवार को ‘पूरी तरह से अनुचित’ करार दिया और कहा कि व्यापारियों के दबाव के आगे झुकना ‘दयनीय स्थिति’ को दिखाता है।
अदालत ने कहा था कि सभी तरह के दबाव समूह, चाहे धार्मिक हो या अन्य किसी भी सूरत में देश के नागरिकों के सबसे अहम जीवन के मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। अदालत ने केरल सरकार को निर्देश दिया था कि वह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वत्रंता का अधिकार) पर ध्यान दे और उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को लेकर दिए गए उसके आदेश के नियमों का अनुपालन करें। सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई को उत्तर प्रदेश में कांवड यात्रा के मामले पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि धार्मिक सहित सभी भावनाएं जीवन के अधिकार के आगे गौण है। (भाषा)