Tuesday, March 25, 2025
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कैसे की जाती है नए वेरिएंट की पहचान, क्या है जीनोम सिक्वेंसिंग, जानें पूरी प्रकिया

कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग का इस्तेमाल किया जाता है।

Reported by: Nirnay Kapoor @nirnaykapoor
Updated : December 08, 2021 11:11 IST
तेजी से बढ़ रहे कोरोना...
Image Source : PTI तेजी से बढ़ रहे कोरोना के मामले

Highlights

  • नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग का किया जाता है इस्तेमाल
  • सिक्वेंसिंग के जरिए डॉक्टर पता लगा लेते हैं कि कोरोना का नया वेरिएंट कौन सा है
  • GBRC की माइक्रोबायोलॉजी लैब में लाया जाता है पेशेंट का सैंपल

कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को लेकर पूरे विश्व में हड़कंप मचा हुआ है। हर कोई इससे डरा हुआ है। सरकार ने भी इसे देखते हुए कमर कस ली है ओर इससे जंग के लिए योजनाएं बनाना शुरू कर दी हैं, लेकिन लोगों के मन में  सवाल उठ रहे हैं कि इस नए वेरिएंट की पहचान कैसे होती है, पहचान करने का क्या-क्या तरीका है। तो चलिए हम आपको बताते हैं इस नए वेरिएंट की पहचान कैसे होती है।

कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग का इस्तेमाल किया जाता है। इस सिक्वेंसिंग के जरिए डॉक्टर पता लगा लेते हैं कि कोरोना का नया वेरिएंट कौन सा है।

जीनोम सिक्वेंसिंग का प्रोसेस-

सबसे पहले पॉज़िटिव पेशेंट का सैम्पल GBRC की माइक्रोबायोलॉजी लैब में लाया जाता है, जहाँ बायो सेफ्टी कैबिनेट में पूरी सावधानी के साथ इसमें से RNA (Ribonucleic acid) एक्सट्रेक्ट किया जाता है।  इस प्रक्रिया में एक घंटा लग जाता है।

बाद में RNA को रिवर्स ट्रांस्क्रिप्शन टेक्निक के ज़रिये PCR लैब में ले जाकर उसमे से C-DNA यानि कॉम्प्लिमेंट्री डी एन ए तैयार किया जाता है क्योंकि कोई भी सिक़्वेन्सिंग स्टडी DNA पर ही हो सकती है। इस प्रक्रिया में 20-30 मिनट का समय लगता है। 

 टुकड़ों में बांटकर एम्पलिकोन किये जाते हैं तैयार -

उसके बाद उस DNA के सैंपल को एम्पलिकोन लाइब्रेरी में ले जाकर उसको कई फ्रैग्मेंट्स यानि टुकड़ों में बाँट कर उनके एम्पलिकोन तैयार किये जाते हैं फिर उन एम्पलिकोन को प्यूरीफाई करके उन्हें इमल्सीफायर PCR में मल्टीप्लाई किया जाता है। इस प्रक्रिया में करीब 2 -3 घंटे लगते हैं।

एम्पलिकोन को चिप में किया जाता है ट्रांसफर -

इसके बाद इन एम्पलिकोन को एक एक चिप में ट्रांसफर करके सिक्क्बेंसार में रखा जाता है, जिसके बाद सिक्वेंसिंग डाटा प्राप्त होता है, जिसको अनलाइज़ करके उस सैंपल का जीनोम पैटर्न तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में कुल मिला कर 16-18 घंटे लगते हैं ।

 

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