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गुजरात: कच्छ में भूकंप से कांपी धरती, घर से निकलकर भागे लोग, जानिए कितनी थी तीव्रता

गुजरात के कच्छ इलाके में रविवार को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। भूकंप की तीव्रता 4.0 मापी गई। भूकंप महसूस होते ही लोग घर से बाहर निकलकर भागने लगे।

Edited By: Kajal Kumari @lallkajal
Published on: January 28, 2024 20:49 IST
earthquale in kutch- India TV Hindi
Image Source : FIEL PHOTO कच्छ में आया भूकंप

गुजरात के कच्छ जिले में रविवार की शाम को भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 4.0 मापी गई। कई इलाकों में भूकंप का असर देखने को मिला, जहां लोग डर के मारे घर से निकालकर भागने लगे। भूकंप विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईएसआर) के अनुसार,भूकंप का केंद्र भचाऊ से 21 किलोमीटर उत्तर, उत्तर-पूर्व में था। आईएसआर ने कहा कि भूकंप रविवार शाम 4:45 बजे आया था। कच्छ के कलेक्टर अमित अरोड़ा ने कहा कि आरंभिक जानकारी के अनुसार संपत्ति या जीवन को कोई नुकसान नहीं हुआ है। 

गुजरात के कच्छ जिले में 8 दिसंबर की सुबह भी 4.2 तीव्रता का भूकंप आया था। भूकंप विज्ञान अनुसंधान संस्थान के मुताबिक, कच्छ जिले के रापर से 19 किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण पश्चिम में 8दिसंबर की सुबह करीब नौ बजे भूकंप आया था। भूकंप का केंद्र पृथ्वी की सतह से 19.5 किलोमीटर गहराई में था। भूकंप के तेज झटके रापर के साथ ही राजकोट में भी महसूस किए गए। हालांकि किसी प्रकार के नुकसान की कोई जानकारी नहीं मिली थी।

कच्छ में आया था विनाशकारी भूकंप 

दरअसल भूकंप के लिहाज से कच्छ जिला बहुत उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है। यहां कम तीव्रता के झटके नियमित रूप से आते हैं। साल 2001 में आए एक बड़े भूकंप ने कच्छ जिले को हिलाकर रख दिया था। उस वक्त भूकंप ने कई कस्बे और गांव में तबाही मचाई थी। इस त्रासदी में लगभग 13,800 लोग मारे गए थे और 1.67 लाख घायल हो गए थे।

 फट रही है भारतीय टेक्टोनिक प्लेट

बता दें कि भारत में लगातार भूकंप की संख्या बढ़ती जा रही है और इसके पीछे एक डराने वाला खुलासा हुआ है, जिसमें कहा गया है कि तिब्बत के नीचे भारतीय टेक्टोनिक प्लेट फट रही है। इस वजह से हिमालय की ऊंचाई भी बढ़ रही है।

वैज्ञानिकों के नए विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट यूरेशिन प्लेट के नीचे जा रही है, जिसकी वजह से यह फट रही है। लेकिन ऊपरी हिस्सा यानी यूरेशियन प्लेट ऊपर उठ रहा है और फैल रहा है। इसकी वजह से हिमालय की ऊंचाई बढ़ रही है और साथ ही हिमालयन बेल्ट के आसपास भूकंपों की संख्या बढ़ गई है।

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