Highlights
- लोगो को बदलने को लेकर विवादों में IIM अहमदाबाद
- दो नए लोगो की योजना बना रहा है मैनेजमेंट इंस्टिट्यूशन
- फैकल्टी मेम्बर्स से परामर्श के बिना तैयार की गई योजना
अहमदाबाद: दुनिया की श्रेष्ठ मैनेजमेंट इंस्टिट्यूशन में से एक माने जाने वाली IIM अहमदाबाद इन दिनों अपने लोगो को बदलने को लेकर विवादों में घिरी है। आईआईएम-अहमदाबाद अपने मौजूदा लोगो को दो नए लोगो से बदलने की योजना बना रहा है, जिसमे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए और दूसरा डोमेस्टिक उपयोग के लिए होगा। हालांकि ये योजना फैकल्टी मेम्बर्स से परामर्श के बिना तैयार की गई है जिसको लेकर विवाद शुरू हुआ। IIM अहमदाबाद के लोगो में बदलाव को लेकर हुए विवाद के बाद फिलहाल के लिए इसे टाल दिया गया है लेकिन माना जा रहा है कि अगले कुछ महीनो में इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकता है।
दरअसल, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट-अहमदाबाद अपने मौजूदा लोगो में बदलाव करने जा रहा है जिसे लेकर विवाद की स्थिति बन गई है। संस्थान अब दो लोगो अपनाने जा रहा। एक घरेलू और दूसरा इंटरनेशनल। खबरों की मानें तो लोगो में से संस्कृत के वाक्य और सिदी सैय्यद मस्जिद की जाली को हटाया जा रहा। ये लोगो ‘ट्री ऑफ लाइफ’ के आधार पर बनाया गया था। इसे लेकर संस्थान के प्राफेसर ही खिलाफ में आ गए हैं। प्राफेसरों ने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने बताया कि नए लोगो में सिदी सैय्यद मस्जिद की जाली की तस्वीर और संस्कृत का श्लोक ‘विद्याविनियोगदिविकासः’ हटाया जा रहा। इसी को लेकर विरोध हो रहा।
प्रोफेसर्स के अनुसार आईआईएम-ए के लोगो के प्रपोज्ड बदलाव के बारे में 4 मार्च को अकादमिक कौंसिल मीटिंग में आईआईएम-ए के फैकल्टी मेम्बर्स को सूचित किया गया था। उन्हें लगता है कि आईआईएम-ए बोर्ड ने इस बदलाव को मंजूरी दे दी है और दो नए लोगो पहले ही रजिस्टर्ड किए जा चुके हैं। यह फैकल्टी मेम्बर्स के लिए एक आश्चर्य जनक घटना है क्योंकि आईआईएम-ए बोर्ड द्वारा लोगो के नए सेट को बिना फैकल्टी को सूचित किए या पूरी प्रक्रिया में शामिल किए ही मंजूरी दे दी गई है।
एकेडेमिक काउंसिल की बैठक का पूरा व्योरा अगर देखे तो साफ़ नज़र आता है कि लोगो बदलने को लेकर आईआईएम संस्थान और उसके एकेडेमिक काउंसिल के सदस्यों के बीच एकमत नहीं है। काउंसिल के सदस्यों ने खुले तौर पर लोगो में बदलाव का विरोध किया है और इस विरोध को लेकर जब विवाद काफी ज्यादा बढ़ गया तो इसे फिलहाल के लिए टाल दिया गया है। जानकरी के मुताबिक़ पुराने लोगो को संशोधित कर गवर्निंग बोर्ड द्वारा संस्कृत शब्दों को समाप्त कर दिया गया था और ये बदलाव प्रोफेसरों की जानकारी के बिना किया गया। एक सूचना के मुताबिक़ 48 प्रोफेसरों ने लोगो में बदलाव के निर्णय का विरोध करते हुए निदेशक मंडल को एक पत्र सौंपा है और इसे वापस लेने का अनुरोध किया है।
बता दें कि आईआईएम-ए का वर्तमान लोगो साल 1961 में अपनाया गया था जब संस्थान की स्थापना की गई थी। इसमें 'ट्री ऑफ लाइफ' का मूल भाव है, जो अहमदाबाद में सन 1573 में बनी सिदी सैय्यद मस्जिद की एक उत्कृष्ट नक्काशीदार पत्थर की जाली या जंगला से प्रेरित है। इसमें संस्कृत श्लोक विद्या विनियोगद्विकास भी है, जिसका मतलब होता है ज्ञान के वितरण के माध्यम से विकास। गौरतलब है कि गुजरात सरकार के कई टूरिज्म एड्स और ब्रोशर में इस मोटिफ डिजाइन का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
फैकल्टी मेम्बर्स के अनुसार सिदी सैयद की जाली की छाप दोनों नए लोगो में मौजूद है, लेकिन संस्कृत श्लोक केवल डोमेस्टिक लोगो में है, इसलिए इन फैकल्टी मेम्बर्स ने अपने पत्र में लिखा है कि ये लोगो हमारी पहचान है जाली और संस्कृत श्लोक हमें और हमारे भारतीय लोकाचार को परिभाषित करती है। हमारे लिए, यह हमारी भारतीयता का प्रतीक है, "विद्या" यानी संस्थान से हमारा जुड़ाव और ‘विकास’ यानी देश, उद्योग, समाज, छात्रों और प्रबंधन अनुशासन के विकास के लिए हमारी प्रतिबद्धता है। ये हमारी फिलोसोफी और मिशन स्टेटमेंट है। इसमें कोई भी बदलाव या तो कलात्मक प्रस्तुति में या पद्य में परिवर्तन हमारी पहचान पर हमले के सामान है. लोगो बदलने से संस्थान के ब्रांड और उसके हितधारकों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और इसके दीर्घकालिक परिणाम होंगे। हालांकि बोर्ड से उन्हें इस निर्णय पर "प्रोसेस फॉलोव्ड टू अराइव" के बारे में सूचित करने के लिए कहा गया है।
आईआईएम-ए के पूर्व निदेशक बकुल ढोलकिया के अनुसार इस तरह का निर्णय संस्थान के मानदंडों, संस्कृतियों और प्रथाओं का एक मौलिक उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि फैकल्टी गवर्नेंस के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लोकाचार से गंभीर रूप से समझौता किया गया है। हैरानी की बात यह है कि बोर्ड ने उस प्रस्ताव पर भी विचार किया जो एकेडमिक काउंसिल की ओर से नहीं आया था। ऐसा लगता है कि संस्थान की दशकों पुरानी संस्कृति का क्षरण हो रहा है और दुर्भाग्य से इसके लिए सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
गौरतलब है की आईआईएम-ए के संस्थापक सदस्यों, विक्रम साराभाई और कमला चौधरी द्वारा 1961 में इस बी-स्कूल की स्थापना के बाद एक विसुअल आइडेंटिटी प्राप्त करने का विचार शुरू किया गया था और सर्वश्रेष्ठ वैश्विक मान्यता और रैंकिंग 2002 से 2010 तक इसी लोगो के साथ मिली थी। आईआईएम-ए ने तब 50 ग्लोबल इंस्टिट्यूट के साथ सहयोग किया था।