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विशाखापत्तनम से बस्ती (यूपी) तक एक मालगाड़ी को पहुंचने में लगभग चार साल लग गए। यह ट्रेन भारतीय रेलवे के इतिहास की सबसे विलंबित ट्रेन मानी जाती है। इसे अपनी यात्रा पूरी करने में कुल 3 साल 8 महीने 7 दिन लगे थे।
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इस ट्रेन में डाय-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) उर्वरक की 1,316 बोरी लदी थी। इसे लेकर मालगाड़ी 10 नवंबर, 2014 को अपने स्टेशन से रवाना हुई और 25 जुलाई, 2018 को उत्तर प्रदेश के बस्ती रेलवे स्टेशन पर पहुंची। इस घटना के बाद रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी भी आश्चर्यचकित रह गए।
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इस ट्रेन ने देरी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस ट्रेन को अपनी यात्रा तय करने में 3.5 साल से अधिक का समय लगा। आम तौर पर ये दूरी 42 घंटे और 13 मिनट में तय कर ली जाती है।
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बस्ती के व्यवसायी रामचंद्र गुप्ता, जिन्होंने माल मंगवाया था, उनके नाम पर 2014 में इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) के माध्यम से विशाखापत्तनम से वैगन बुक किया गया था। 14 लाख रुपये से अधिक का सामान लेकर ट्रेन निर्धारित समय के अनुसार विशाखापत्तनम से रवाना हुई। ट्रेन को 42 घंटे में बस्ती पहुंचना था, लेकिन ट्रेन समय पर नहीं पहुंची।
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वहीं नवंबर 2014 में जब ट्रेन बस्ती नहीं पहुंच पाई तो रामचंद्र गुप्ता ने रेलवे के अधिकारियों से संपर्क किया और कई लिखित शिकायतें दर्ज कराईं। उनके बार-बार सूचित करने के बावजूद अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। बाद में पता चला कि ट्रेन रास्ते में ही लापता हो गई थी।
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पूर्वोत्तर रेलवे जोन के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी संजय यादव ने कहा, 'कभी-कभी, जब कोई वैगन या बोगी सिक (ढोने के लिए अयोग्य) हो जाती है, तो उसे यार्ड में भेज दिया जाता है और ऐसा लगता है कि इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है।'
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जांच के बाद, उर्वरक ले जाने वाली ट्रेन आखिरकार जुलाई 2018 में उत्तर प्रदेश के बस्ती रेलवे स्टेशन पर पहुंची। हालांकि, इस अवधि के दौरान ट्रेन कहां, कैसे, या क्यों विलंबित हुई या लापता हो गई, इस पर कोई स्पष्टता नहीं थी। इस अभूतपूर्व देरी के परिणामस्वरूप 14 लाख की खाद बेकार हो गई। यह घटना भारतीय रेलवे के इतिहास में सबसे विलंबित ट्रेन यात्रा के रूप में दर्ज की गई है।