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भारत में कई ऐसी लोककथाएं प्रचलित हैं जिनमें महान राजाओं का गुणगान किया जाता रहा है। ऐसे ही एक राजा भरथरी या भर्तृहरि महाराज हुए हैं। कहा जाता है कि राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी की बेवफाई से इस कदर दुखी हुए कि राजपाट छोड़कर संन्यास ले लिया और एक योगी के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया।
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भरथरी, जिन्हें 'बाबा भरथरी' और 'जोगी संत' भी कहा जाता है, उत्तर भारत की कई लोक कहानियों के नायक हैं। वह उज्जैन के शासक थे और बाद में उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसके बाद वह अपने भाई विक्रमादित्य को गद्दी सौंपकर खुद संन्यास ले लिया। राजा विक्रमादित्य के नाम पर ही विक्रम संवत चलाया जाता है।
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भरथरी राजा गंधर्व सेन के बड़े पुत्र थे। अपने पिता के बाद वह उज्जैन के राजा बने। लोककथा के मुताबिक, उनके राज्य में रहने वाले ब्राह्मण को एक दिन उसकी तपस्या के फलस्वरूप कल्पवृक्ष से अमरत्व प्रदान करने वाला फल मिला। ब्राह्मण ने अमरत्व प्रदान करने वाला वह फल राजा भरथरी को दे दिया।
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राजा भरथरी फल पाकर बहुत खुश हुए लेकिन उन्होंने उसे नहीं खाया। उन्होंने वह फल अपनी रानी पिंगला को दे दिया, जिससे वह बहुत प्यार करते थे। राजा भरथरी ने सोचा कि उनकी पत्नी यह फल खाकर हमेशा युवा और अमर रहेंगी। रानी ने फल ले लिया और सेनापति महिपाल को दे दिया, जिससे कि उनका प्रेम प्रसंग चल रहा था।
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महिपाल ने भी अमरत्व वाला फल खुद नहीं खाया और इसे अपनी प्रेमिका 'लाखा' को दे दिया, जो कि एक गणिका थी। लाखा ने सोचा कि अगर वह ये फल खाकर हमेशा जवान रहेगी तो उसे यही काम जिंदगी भर करना पड़ेगा। उसने सोचा कि क्यों न यह फल राजा को दे दिया जाए। और अमरत्व प्रदान करने वाला फल घूमफिरकर राजा के पास आ गया।
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राजा को जब पूरी कहानी पता चली तो वह बहुत दुखी हुए। उन्होंने तुरंत राजगद्दी छोड़ दी और पूरा राजपाट अपने भाई विक्रमादित्य को सौंप दिया। राजा भरथरी एक योगी या 'जोगी' बन गए और अपना जीवन एक संन्यासी के रूप में बिताने लगे।
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राजा भरथरी को लेकर अलग-अलग लोककथाएं हैं। एक अन्य लोककथा में बताया जाता है कि रानी पिंगला ने राजा भरथरी की मौत की झूठी खबर सुनकर अपनी जान दे दी थी। इससे दुखी होकर राजा भरथरी ने संन्यास ले लिया और एक जोगी के रूप में अपना बाकी का जीवन गुजारा।
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कहा जाता है कि राजा भरथरी का दुख देखकर गुरु गोरखनाथ ने रानी पिंगला को दोबारा जीवित भी कर दिया था। इस तरह देखा जाए तो राजा भरथरी से जुड़ी कई लोककथाएं उत्तर भारत में प्रचलित हैं लेकिन हर कथा में अंत में उनके 'जोगी' बन जाने की बात सामने आती है।