मेरे प्रभु, मुझे इतनी ऊंचाई मत देना, गैरों को गले न लगा सकूँ, इतनी रुखाई कभी मत देना। सच्चाई को इस डर के लिए छुपाया नहीं जा सकता है कि कोई इसका फायदा उठाएगा। हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा। क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं? कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं? मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं जिंदगी सिलसिला आजकल का नहीं होने ना होने का क्रम इसी तरह चलता रहेगा, हम हैं, हम रहेंगे ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा। आप दोस्त बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं मेरे लिए शक्ति कभी आकर्षण नहीं थी जीत और हार जीवन का एक हिस्सा है, जिसे समानता के साथ देखा जाना चाहिए