भगवान कृष्ण की साथी राधा के जन्म स्थान बरसाना की लट्ठमार होली भारत के सबसे रंगीन पर्व होली मनाने के अपने अनूठे तरीके के लिए विश्वप्रसिद्ध है| बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। बरसाना की लठामार होली भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है। माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे। राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया। आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है। यहां के गुलाल और रंग की खाशियत यह है कि ये कपड़े और बदन पर नहीं चढ़ते हैं। इनसे शरीर को भी किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है। कीर्तन मंडलियों के साथ यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में भांग और ठंडई बांटी जाती है। श्रीजी मंदिर में राधारानी को टेसू के फूलों का भोग लगाया गया।