राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के प्रमुख एम करुणानिधि एक राजनेता के साथ ही एक लेखक, कवि और विचारक भी थे। यही वजह है कि उनके व्यक्तित्व से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तमिलनाडु के तिरुक्कुवलई में हुआ था। वे बचपन से ही बेहद प्रतिभाशाली थे।
करुणानिधि 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर सियासी सफर पर निकल पड़े थे। दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध हुए आंदोलन में उनकी अहम भूमिका था। 1937 में स्कूलों में हिंदू अनिवार्य करने का उन्होंने ने भी विरोध किया था। बाद में उन्होंने तमिल भाषा में नाटक और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने का काम शुरू किया।
उनकी बेहतरीन भाषण शैली को देखकर पेरियार और अन्नादुराई ने उन्हें 'कुदियारासु' का संपादक बना दिया। हालांकि, पेरियार और अन्नादुराई के बीच मतभेद के बाद करुणानिधि अन्नादुराई के साथ जुड़ गए। करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के तौर पर करियर शुरू किया और कम समय में ही काफी लोकप्रिय हो गए।
उन्होंने पराशक्ति नामक फिल्म से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया। शुरुआत में इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन 1952 में इस रिलीज कर दिया गया। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। रुढ़िवादी हिंदुओं ने इस फिल्म का विरोध किया था।
1957 में हुए विधानसभा चुनाव में वो पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। इस दौरान उनके अलावा उनकी पार्टी डीएमके से 12 अन्य लोग भी विधायक बने थे। करुणानिधि 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने। करुणानिधि राजनीति के क्षेत्र में बढ़ते चले गए और 1967 के चुनावों में उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया।
करुणानिधि पहली बार 1969 से 71 तक तमिलनाडु के सीएम रहे। 1971 के विधानसभा चुनाव में एकबार फिर पार्टी को जीत मिली और करुणानिधि दूसरी बार (1971-76) तमिलनाडु के सीएम बने। तीसरी बार वे 1989 से 91 तक सीएम रहे। फिर चौथी बार 1996 से 2001 तक सीएम रहे। पांचवीं बार वे 2006 से 2011 तक तमिलनाडु के सीएम रहे।