बेवजह की अफवाह और राजनीति कैसे एक सिस्टम और लोगों की जिंदगी को हिलाकर रख देती है कोरेगांव हिंसा उसका जीता जागता सबूत है।
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हर साल होने वाले शौर्य दिवस में दलित समाज अपने पूर्वजों की वीरता का जश्न धूमधाम से मनाता आया है लेकिन इस बार शौर्य दिवस पर राजनीति हावी हो गई और देखते ही देखते पूरा महाराष्ट्र कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया।
गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने जातिवाद के पुराने तार छेड़े तो कुछ दूसरे गुट को लोगों ने उसका विरोध भी किया और आग फैलती चली गई। दलित समाज ने महाराष्ट्र बंद का ऐलान कर पूरे प्रदेश के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं।
एक जनवरी 1818 यानि ठीक दो सौ साल पहले कोरेगांव में हुई जंग को लेकर पुणे एक बार फिर जंग का मैदान बन गया। कोरेगांव के युद्ध में जिन भारतीयों ने अंग्रेजों का साथ दिया था उनके वंशज जीत का जश्न मनाने यहां जमा हुए। दूसरे पक्ष के लोग भी यहां आए थे। किसी अनहोनी की आशंका से पुलिस का भारी बंदोबस्त था,लेकिन भीड़ का आंकड़ा करीब तीन से साढ़े तीन लाख तक पहुंच गया और अचानक हालात बिगड़ गए।
देखते ही देखते पुणे से निकली अफवाह की आग महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों तक पहुंची।
सैकड़ों प्रर्दशनकारियों ने वेस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे को अवरूद्ध करने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां से हटा दिया।
प्रदर्शनकारियों ने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। लेकिन सबके ज़ेहन में ये सवाल ज़रूर है कि सदियों से शांति और प्यार से रहने वाले मराठा और दलित अचानक हिंसक क्यों हो गए?
दो दिन की हिंसा में महाराष्ट्र राज्य परिवहन विभाग के 187 बसों को नुकसान पहुंचाया गया।
प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह रास्ते रोके जिससे प्रदेश में लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।