पिछले चुनावों की तरह बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार स्थानीय नेतृत्व को ओवरटेक करने की भूल नहीं की। सर्बानंद सोनोवाल जैसे स्थानीय नेता ने ही चुनाव प्रचार अभियान को संभाला।
बीजेपी ने चुनाव प्रचार अभियान में अपना फोकस स्थानीय मुद्दों पर ही रखा। नेताओं ने गरीबी, बिजली की कमी, विकास और रोजगार के मुद्दे को ही आगे रखकर गोगोई सरकार को घेरने की कोशिश की।
पीएम मोदी ने भी अपने भाषण में असम की मौजूदा दिक्कतों को बताते हुए उसे दूर करने के वादे किए।
असम में 15 साल से जारी कांग्रेस सरकार के खिलाफ आम लोगों का गुस्सा भड़का और कांग्रेस के रवैए में कोई सुधार न होता देख। बदलाव को ही विकल्प के तौर पर स्वीकार कर लिया।
बांग्लादेशी घुसपैठियों की बड़ी संख्या असम में एक बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है। कांग्रेस पर विरोधी दल यह आरोप लगते रहे हैं कि वह वोटों की राजनीति के लिए घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठा रही है। वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस मुद्दे पर लगातार बोलते रहे।
मारवाड़ी और हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग पहले से ही बीजेपी के लिए वोट करते रहे हैं।
असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व 15 साल से सीएम तरुण गोगोई के हाथ में था। वह काफी उम्रदराज हैं। पीएम मोदी ने अपने भाषणों में इसे मुद्दा भी बनाया था।
बीजेपी का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के साथ सर्बानंद सोनोवाल और कांग्रेस के बागी नेता हिमंत विस्वशर्मा के हाथों में था। दोनों नेताओं ने पूरे राज्य में सैकड़ों जनसभाएं की।
असम विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 80 फीसदी तक मतदान हुआ। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मतदान फीसदी का बढ़ना बदलाव का सूचक हो सकता है। असम के चुनाव में यह बात फिर सच साबित हुई।
बीजेपी की जीत में हर बार की तरह यहां भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके समविचारी संगठनों की मदद को बड़े फैक्टर के तौर पर देखा जा रहा है। संघ के बड़े नेताओं ने इस बीच असम जाकर जमीन तैयार करने में बड़ी मदद की।