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केरल विधान सभा चुनाव वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार बनने जा रही है। अब तक की मतगणना से साफ़ ज़ाहिर है कि वह तेज़ी से बहुमत की तरफ बढ़ रही है। इस जीत का श्रेय 92 वर्षीय अच्युतानंदन को दिया जा रहा है। केरल में वामपंथी दल की जमीन तैयार करने और कार्यकर्ताओं के स्तर पर संगठन निर्माण उनकी प्रमुख भूमिका रही है। आईये जानते हैं उनके जीवन के बारे में रोचक बातें।
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वीएस अच्युतानंदन का जन्म केरल के अलपुड़ा में 20 अक्टूबर 1923 को हुआ था। चार साल की उम्र में ही उनकी माता का देहांत हो गया, जबकि 11 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था। माता-पिता की अकाल मृत्यु के बाद अच्युतानंदन ने पढ़ाई छोड़ दी. इस तरह उन्होंने सिर्फ 7वीं तक की पढ़ाई पूरी की है।
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वीएस अच्युतानंदन अपने बड़े भाई के साथ गांव में दर्जी की दुकान में काम करने लगे। बाद में वह नारियल की रस्सी बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने लगे।
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वीएस की राजनीतिक यात्रा कुट्टनाड में खेतीहर मजदूरों को संगठित करने से शुरू हुई। कॉमरेड कृष्णा पिल्लई ने वीएस को राजनीतिक आंदोलनों से जोड़ा, जिसके बाद वह स्वतंत्रता संग्राम और फिर वामपंथी आंदोलन से जुड़े। पुन्नपड़ा-वायलार विद्रोह और त्रावणकोर के दीवान सीपी रमैयास्वामी के नीतियों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वीएस आगे की पंक्ति में रहे।
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1938 में ट्रेड यूनियन की गतिविधियों से होते हुए वीएस राज्य कांग्रेस में शामिल हुए. 1940 में वह सीपीआई के सदस्य बने. वह 1957 में सीपीआई के राज्य सचिवालय के सदस्य भी रहे हैं।
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अपने राजनीतिक जीवन में वीएस करीब साढ़े पांच साल जेल में रहे, जबकि 4 साल उन्हें भूमिगत जीवन बिताना पड़ा। वीएस केरल में भूमि आंदोलन के अग्रज नेताओं में थे। बाद में केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर उनके कार्यों को जनता में खूब सराहना मिली।
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साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान वीएस ने पार्टी में शामिल राष्ट्रवादियों का साथ दिया और भारतीय खेमे का समर्थन किया। वीएस अच्युतानंदन और उनके कुछ अन्य साथियों पर इस बाबत अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। भारतीय सेना के लिए आयोजित एक रक्तदान शिविर में हिस्सा लेने के कारण वीएस को पार्टी रैंक में डिमोशन का सामना भी करना पड़ा। साल 1964 में सीपीआई राष्ट्रीय परिषद छोड़कर सीपीएम का गठन करने वाले 32 सदस्यों में से वह एकमात्र जीवित सदस्य हैं।
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1980 से 1992 तक वीएस केरल में राज्य समिति के सचिव रह चुके हैं। वीएस 1967, 1970, 1991, 2001 और 2006 में केरल विधानसभा के सदस्य भी चुने गए। 1992 से 1996, 2001 से 2006 तक और फिर 2011 से अभी तक वह विधानसभा में विपक्ष के नेता थे।
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2006 में 18 मई को वीएस अच्युतानंदन ने अपने 21 सदस्यीय कैबिनेट के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ थी। 87 साल और 7 महीने की उम्र में वीएस केरल के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री थे।
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वीएस अच्युतानंदन पर पद के दुरुपयोग के भी आरोप लगे हैं। उनके बेटे वीए अरुण को इस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन रिसोर्स डवलपमेंट (आईएचआरडी) का एडिशनल डायरेक्टर नियुक्त किया गया। इस नियुक्ति में अनियमितता की बात सामने आई।