पंजाब में उग्रवाद को ख़त्म करने वाले सुपरकॉप कंवरपाल सिंह उर्फ़ केपीएस गिल का आज शुक्रवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका जीवन शौर्य और साहस का गाथाओं से भरा रहा है हालंकि वह कुछ विवादों में भी घिरे।
गिल ने भारतीय पुलिस सेवा में अपने कैरियर की शुरुआत पूर्वोत्तर राज्य असम से की थी। शुरुआती दिनों में ही उनकी छवि एक सख़्त अधिकारी के रूप में बन गई थी।
1990 के दशक में पंजाब पुलिस के प्रमुख के रूप में वह पूरे देश में मशहूर हो गए। सिख बहुल राज्य पंजाब में अलगाववादी आंदोलन को कुचलने का मुख्य श्रेय गिल को ही जाता है।
पंजाब में मिली सफलता के बाद जहाँ अपराधियों के बीच उनके नाम से घबराहट फैलने लगी, वहीं मीडिया में वह 'सुपरकॉप' के रूप में चर्चित हो गए।
पुलिस से सेवानिवृत होने के बाद भी उनसे विभिन्न सरकारें आतंकवाद विरोधी नीति के लिए सलाह लेती रहीं। श्रीलंका सरकार ने भी उनकी सलाह ली थी।
गिल फ़ॉल्टलाइन्स पत्रिका षुरु की और इंस्टीट्यूट ऑफ़ कन्फ़्लिक्ट मैनेजमेंट नामक संस्था चलाई। उन्होंने 'द नाइट्स ऑफ़ फ़ाल्सहुड' नामक एक किताब भी लिखी।
सारी सफलताओं के बीच गिल विभिन्न कारणों से आलोचनाओं के केन्द्र में भी रहे हैं। गिल और उनके नेतृत्व वाले पुलिस बल पर आतंकवाद के दमन के नाम पर ज़्यादतियाँ करने के आरोप भी लगे।
एक वरिष्ठ महिला अधिकारी ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। अदालत ने इस मामले में गिल पर भारी ज़ुर्माना लगाया और जेल की सजा भी सुनाई थी लेकिन बाद में जेल की सजा माफ़ कर दी गई।