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तमिलनाडु में पोंगल के मौके पर होने वाले जल्लीकट्टू खेल पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बाद इस खेल को लेकर हो रहे प्रदर्शन से जल्लीकट्टू सुर्खियों में है। ऐसे में अगर आप नहीं जानते कि यह खेल आखिर है क्या और जल्लीकट्टू का मतलब क्या होता है तो अब जान लीजिए।
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'जल्ली' शब्द दरअसल 'सल्ली' से आया है जिसका मतलब होता है सिक्के और कट्टू का अर्थ है बांधा हुआ।
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जल्लीकट्टू सांडों का खेल है जिसमें उसके सींग पर कपड़ा बांधा जाता है। जो खिलाड़ी सांड के सींग पर बांधे हुए इस कपड़े को निकाल लेता है उसे ईनाम के रूप में सिक्के या पैसे मिलते हैं इसलिए इस खेल को जल्लीकट्टू के नाम से जाना जाता है।
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इस खेल में सांड को भीड़ के बीच छोड़ा जाता है। उसकी पीठ पर कूबड़ होता है। इस खेल में भाग लेने वाले इसी कूबड़ को पकड़कर झूल जाते हैं और जो आखिरी वक्त तक नहीं गिरता और सांड को रोक देता है, वो विजेता बनता है।
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ऐसा इतिहास में उल्लेख मिलता है कि जल्लीकट्टू खेल 400-100 BC से खेला जाता रहा है। ये आर्यों का खेल हुआ करता था। बाद में ये खेल वीरता और शौर्य का प्रतीक बन गया और विजेताओं को ईनाम मिलने लगा।
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सिंधु सभ्यता के समय की मिली एक सील में भी इसका चित्र अंकित है जो दिल्ली के संग्रहालय में रखी हुई है। मदुरै के पास मिली एक पेंटिंग मिली थी जिसमें एक व्यक्ति सांड को नियंत्रित करता दिख रहा है। माना जाता है कि ये पेंटिंग 2500 साल पुरानी है।
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जल्लीकुट्टू खेल के सांडों को विशेष तरीके से खाया पिलाया जाता है। इनका इस्तेमाल प्रजनन के लिए भी किया जाता है और बाज़ार में इनकी काफी ऊंची कीमत लगती है।
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सांड के थोड़ा बड़ा होने पर उसे छोटीमोटी प्रतियोगिताओं में ले जाया जाता है ताकि वह खेल का अभ्यस्त हो सके।
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इन सांडों को आक्रामक बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि कोई अजनबी इनके पास न आ सके। जो इन सांडों को पालते हैं उनके लिए ये पवित्र होते हैं।
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दावा किया जाता है कि 2009 के बाद से खेल के पहले सांड की ये जांच शुरु की गई कि कहीं उसे आक्रामक बनाने के लिए शराब या अन्य कोई मादक द्रव्य तो नही पिलाया गया है। ये काम ज़िला मजिस्ट्रेट की निगरानी में सरकारी डॉक्टर्स करते हैं। इस खेल में भाग लेने वाले प्रतियोगियों की भी इसी तरह जांच होती है।