-
Image Source : Instagram
सुरों के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी की आज 100वीं जयंती है। मोहम्मद रफी वो सुरों की दुनिया के वो जादूगर थे, जिनकी आवाज कानों में मिश्री की तरह घुल जाती है और सीधे दिल पर असर करती है। उनके गानों में जो वर्सेटैलिटी थी, उसे आज तक कोई टक्कर नहीं दे पाया है। वह हिंदी सिनेमा के वो कलाकार थे, जिनकी जगह ना तो कोई ले सका था और ना ही ले पाएगा।
-
Image Source : Instagram
रफी साहब ने अपने करियर में हिंदी गानों से तो हिंदी सिनेमा को गुलजार किया ही, साथ ही कोंकणी से लेकर अंग्रेजी, पारसी तक में अपनी आवाजा का जादू बिखेरा। आज मोहम्मद रफी की 100वीं जयंती है तो चलिए आपको इस मौके पर उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।
-
Image Source : Instagram
मोहम्मद रफी का जन्म ब्रिटिश पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह में 24 दिसंबर 1924 को हुआ था। रफी साहब को बचपन में लोग फीको कहकर बुलाते थे। उनका संगीत से बचपन से ही लगाव सबके सामने आ गया था और 13 साल की उम्र में उन्होंने सिंगर के तौर पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी।
-
Image Source : Instagram
रफी साहब का संगीत में इंटरेस्ट तब आया जब उन्होंने एक सूफी फकीर को गाते सुना। वह अक्सर ही उसकी नकल करते और गाने की कोशिश करते। इसके बाद उन्होंने लाहौर से मुंबई का रुख कर लिया और प्लेबैक सिंगिंग में करियर बनाने का फैसला किया। उन्होंने शंकर जयकिशन के साथ-साथ एस डी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों तक के साथ काम किया।
-
Image Source : Instagram
रफी साहब ने के एल सहगल के साथ काम किया और अपनी पहचान बनाई। 1944 में जब जीनत बेगम के साथ उन्होंने अपना पहला गाना गाया तो देखते ही देखते हर तरफ छा गए। 'सोनिये नी, हीरिये नी' से मोहम्मद रफी के प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत हुई थी।
-
Image Source : Instagram
मोहम्मद रफी ने अपने करियर में 28 हजार के करीब गाने गाए। उन्होंने हिंदी से लेकर कोंकणी, भोजपुरी, पारसी तक में हजारों गानों को आवाज दी और रोमांस से लेकर इमोशनल, देशभक्ति, कव्वाली, भजन, शास्त्रीय संगीत सब में जादूगरी बिखेरी।
-
Image Source : Instagram
मोहम्मद रफी ने अपने करियर में छह फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किया। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार की ओर से 1967 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।