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बॉलीवुड अभिनेता संजीव कुमार अपने अभिनय के लिए तो जाने ही जाते थे, शोले के ठाकुर का रोल हो या फिल्म अंगूर में उनका हास्य अंदाज भला कौन भूल सकता है। दरअसल बॉलीवुड के बेहद संजीदा और बेहतरीन अभिनेताओं में संजीव कुमार का नाम सुमार किया जाता है। संजीव कुमार का निधन 47 साल की बहुत ही कम उम्र में ही हो गया था।
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शोले(1975) : यह फिल्म हिन्दुस्तान की सार्वकालिक बेहतरीन फ़िल्मों में ये एक है।गब्बर और ठाकुर की लड़ाई की ये कहानी लोगो के दिल को भाई थी।ठाकुर के रोल के लिए पहले प्राण का नाम सोचा गया था लेकिन संजीव कुमार चाहते थे कि वह गब्बर का रोल अदा करे। 'शोले' में दोनों हाथ कटे ठाकुर के किरदार को संजीव ने अपने अभिनय से अमर कर दिया।
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कोशिश(1972): पर्दे पर अक्सर गंभीर किरदार निभाने वाले संजीव कुमार का सपना था कि मुंबई में अपना एक बंगला हो पर जब उन्हें कोई बंगला पसंद भी आता था तो जब तक वो उसके लिए पैसे जुटाते तब तक उसके भाव बढ़ जाते। काफी सालों तक चला यह सिलसिला।
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अंगूर (1982):क़़ॉमेडी फिल्म अंगूर शेक्सपियर के 'A comedy of errors' पर आधारित है।अंगूर में उनका हास्य अंदाज भला कौन भूल सकता है।असल जिन्दंगी मे वे बिलकुल अलग प्रकार के इंसान थे। असल ज़िन्दगी में संजीदा थे। इस फिल्म मे संजीव कुमार अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे।इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिये उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला।
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आँधी (1975):एक अच्छे विषय पर कहानी, प्रभावी कथानक, प्रभावित करने वाले संवादों के अतिरिक्त्त संजीव कुमार, सुचित्रा सेन और ओम प्रकाश की इस फिल्म को बार बार देखा जा सकता है।इस फिल्म के गाने "तेरे बिना ज़िन्दगी से" "तुम आ गए हो नूर आ गया" दर्शक आज भी पसंद करते हैं। फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित थी।
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खिलौना (1970): इस फिल्म को फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार संजीव कुमार को दिया गया था।
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त्रिशूल (1978):संजीव कुमार को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार दिया था। हरीभाई ने बीस वर्ष की आयु में एक वृद्ध आदमी का ऐसा जीवन्त अभिनय किया था कि उसे देखकर पृथ्वीराज कपूर भी दंग रह गये।
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नया दिन नई रात (1974): 'नया दिन नई रात' में एक या दो नहीं बल्कि नौ अलग-अलग भूमिकाएं निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया था। फिल्म में उन्होंने लूले-लंगड़े, अंधे, बूढ़े, बीमार, कोढ़ी, किन्नर, डाकू, जवान और प्रोफेसर का किरदार निभाया था। यह फिल्म उनके हर किरदार की अलग खासियत की वजह से जानी जाती है, लेकिन इस फिल्म में उनके द्वारा निभाया गया किन्नर का किरदार सबसे संजीदा किरदारों में से एक था। जो आज भी एक रिकार्ड है।
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मौसम(1975): एक ही समय में वह आंधी औऱ मौसम दोनो कर रहे थे। उन्हे मौसम के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया था। संजीव कुमार को स्क्रीन पर अपनी जोड़ी जया बच्चन के साथ पसंद थी, दोनों ने साथ में कई फ़िल्में कीं है।
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sanjeev kumar
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संघर्ष(1968): 'संघर्ष' में संजीव कुमार अपनी छोटी सी भूमिका के लिए दर्शकों में प्रसिद्ध रहे। इसके बाद 'आशीर्वाद', 'राजा और रंक', 'सत्यकाम' और 'अनोखी रात' जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी के जरिए संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां वह फ़िल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म 'खिलौना' की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली।
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कहानी एक अमीर बिगड़ी हुई लड़की की है शादी करना नहीं चाहता है के बारे में है।
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उनहे अपनी जिंन्दगी मे यह अंधविश्वास था कि उनके परिवार में बड़ा बेटा 10 साल का हो जाने पर उसके पिता की मौत हो जाती है। उनके दादा, पिता और भाई, सबके साथ यह घटित हो चुका था।