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दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है किस की आहट सुनता हूँ वीराने में।
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कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़ कभी किसी की आंखों में हम को भी इंतिज़ार दिखे।
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हुआ जब ग़म से यूं बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का न होता गर जुदा तन से ज़ानों पर धरा होता।
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ऐ दर्द-ए-इश्क़ तुझसे मुकरने लगा हूं मैं मुझको संभाल हद से गुज़रने लगा हूं मैं
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किस-किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा आज़ाद हो चुके थे, बन्दा बना के मारा।
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इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े।
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दबा के आई है सीने में कौन सी आहें कुछ आज रंग तेरा सांवला लगे है मुझे
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ज़माने भर के ग़म या इक तेरा ग़म, ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे।
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मिट्टी था किसी ने चाक पर रखकर घुमा दिया वो कौन हाथ थे कि जो चाहा बना दिया!
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इन आबलों के पा से घबरा गया था मैं जी ख़ुश हुआ राह को पुरख़ार देखकर!!
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हर इक हुस्न तेरा आईना लगे है मुझे कहां कहां तेरा चेहरा छुपा लगे है मुझे मैं सो भी जाऊं तो क्या मे