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आंखों को इंतजार की भट्टी पे रख दिया। मैंने दिए को आंधी की मर्जी पे रख दिया।।
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तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो। हज़र करो मिरे दिल से कि उस में आग दबी है।।
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अजा में बहते थे आंसू यहां,लहू तो नहीं। ये कोई और जगह है ये लखनऊ तो नहीं।।
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न तू जमीं के लिए है न आसमां के लिए। जहां है तेरे लिए तू नहीं जहां के लिए।।
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हस्ती के शजर में जो यह चाहो कि चमक जाओ। कच्चे न रहो बल्कि किसी रंग मे पक जाओ।।
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घर में ठन्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है।।
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कहां ले जाऊं दिल दोनों जहां में इसकी मुश्किल है। यहां परियों का मजमा है, वहां हूरों की महफ़िल है
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तबीयत इन दिनों बेगा़ना-ए-गम होती जाती है। मेरे हिस्से की गोया हर खुशी कम होती जाती है।।
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शक्ल जब बस गई आंखों में तो छुपना कैसा। दिल में घर करके मेरी जान ये परदा कैसा।।
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ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा। ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा।।
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एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी। ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी।।