Tuesday, November 05, 2024
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Explainer:अपने गिरेबां में झांकने के बजाय क्यों भारत के निजी मामलों में हस्तक्षेप पर अड़ा अमेरिका, सता रहा कौन सा बड़ा डर?

खुद को दुनिया का सुपर पॉवर कहने वाला अमेरिका अक्सर दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। कभी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर, कभी लोकतंत्र के नाम पर, कभी धर्म और सहिष्णुता के नाम पर तो कभी किसी और बहाने। जबकि अमेरिका अपने गिरेबां में नहीं झांकता। भारत के आंतरिक मामले में वह क्यों हस्तक्षेप कर रहा?

Reported By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: March 28, 2024 16:06 IST
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिकी समकक्ष एंटनी ब्लिंकन। (प्रतीकात्मक)- India TV Hindi
Image Source : AP भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अमेरिकी समकक्ष एंटनी ब्लिंकन। (प्रतीकात्मक)

Explainer: अमेरिका की विदेश नीति हमेशा दूसरे देशों के निजी मामलों में हस्तक्षेप करने की रही है। वह जिस किसी भी देश से दोस्ती का स्वांग रचाता है, उसमें भी अमेरिका अपना ही फायदा देखता है। मौजूदा वक्त में अमेरिका भारत का रणनीतिक साझेदार है, इसके बावजूद वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शराब नीति घोटाला मामले में हुई गिरफ्तारी पर हस्तक्षेप कर रहा है। जबकि यह भारत का आंतरिक मामला है। भारत ने इस बाबत जब अमेरिकी राजदूत को तलब करके ऐसा नहीं करने की चेतावनी दी तो उनका विदेश मंत्रालय सकते में पड़ गया। लिहाजा अपनी सुप्रीमेसी दिखाने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि वजह केजरीवाल समेत कांग्रेस का अकाउंट फ्रीज होने और चुनाव के समय में विपक्ष के खिलाफ हो रही ऐसी अन्य कार्रवाइयों पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेगा। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसके ऐसा करने पर किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए। मगर अमेरिका की इस कूटनीति के पीछे की असली वजह क्या है, उसे समझने के लिए आपको कई बातों पर गहराई से गौर करना होगा। तो आइये आपको बताते हैं कि अमेरिका किस डर से ऐसा कर रहा है?

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में और विदेश मंत्री एस जयशंकर की बेबाकी से भारत की विदेश नीति और कूटनीति अपने सर्वोत्तम दौर में चल रही है। भारत ने अपनी इस नई कूटनीति से यूरोप से लेकर एशिया तक और अरब से लेकर अफ्रीकी देशों तक को साध रखा है। भारत की साख दुनिया के सभी देशों में बढ़ी है। इससे वैश्विक शक्तियों की ओर से नजरअंदाज किए गए देश भी भारत पर भरोसा करने लगे हैं। ग्लोबल साउथ इसका ताजा उदाहरण है। जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर अमेरिका समेत तमाम सुपर शक्तियों के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी है। साथ ही वह दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अब अगले कुछ ही वर्षों में भारत दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर है।

इतना ही नहीं भारत ने रक्षा के क्षेत्र में भी खुद को आत्मनिर्भर कर लिया है। अब भारत दुनिया के टॉप-10 डिफेंस सप्लायर की सूची में आ गया है। जबकि भारत पहले सबसे बड़ा रक्षा उत्पादों का खरीददार था। अंतरिक्ष से लेकर समुद्र तक अनुसंधान के क्षेत्र में भी भारत ने या तो दुनिया की बराबरी कर ली है या फिर कुछ मायनों में उन्हें पीछे छोड़ दिया है। ऐसे में उभरते भारत से अमेरिका को कई तरह के खतरे सता रहे हैं। 

क्या कहते हैं विदेश मामलों के जानकार

अपने गिरेबां में नहीं झांकता अमेरिका: जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में डिप्लोमेसी स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव कहते हैं कि अमेरिका भले ही भारत का रणनीतिक साझेदार है, मगर वह कभी दोस्ती का फर्ज निभाता नहीं दिखता। जब खालिस्तानी कनाडा और अमेरिका में भारत की संप्रभुता के खिलाफ साजिश रचते हैं तो अमेरिका उसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम देकर उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकता। इसी तरह वह आतंकवाद के खिलाफ होने की बात तो करता है, लेकिन पाकिस्तान के आतंकवाद पर कभी सख्त नहीं होता। यह सब अमेरिका के दोहरे मापदंड को दर्शाता है। अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तार के मामले में हस्तक्षेप करके अमेरिका ने भारत के आंतरिक मामलों में बेवजह दखल का प्रयास किया है। अमेरिका कहता है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश और कानून का शासन होने के चलते ऐसा कर रहा है, लेकिन आज दुनिया देख रही है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के साथ वहां क्या-क्या हो रहा है।

लोकतंत्र का सबसे बड़ा द्योतक होने की बात करने वाला अमेरिका ट्रंप को 2024 का राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से रोकने के लिए हर हथकंडे अपना रहा है। बाइडेन प्रशासन का अपने विपक्षी नेता के साथ अपनाया जाने वाला ये रवैया क्या ठीक है? डॉ. अभिषेक ने कहा कि मैं तो कहता हूं कि जिस तरह अमेरिका भारत के निजी मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है, उसी तरह भारत को भी उसके लोकतंत्र में ये सब क्या हो रहा है, उसकी याद दिलाकर पुरजोर विरोध करना चाहिए। क्योंकि हमारे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अधिकार किसी देश को नहीं है। 

भारत से अमेरिका को हैं क्या-क्या खतरे

प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध मामले में अमेरिका ने भारत का रुख देख लिया है कि तमाम दबावों के बावजूद हमारी विदेश नीति कहीं झुकी नहीं। जब अमेरिका ने रूस से तेल नहीं लेने का दबाव डाला तो भारत ने साफ कह दिया है कि यह हमारा निजी मामला है। किससे तेल लें और किससे नहीं, हम अपनी ऊर्जा जरूरतों और जनता की सहूलियतों को ध्यान में रखकर फैसले लेते हैं। कोई देश हमें इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता। इसके साथ ही भारत ने रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को मजबूत बनाए रखा है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन और पीएम मोदी आपस में अच्छे दोस्त हैं। मगर अमेरिका नहीं चाहता कि भारत का झुकाव रूस की तरफ ज्यादा रहे। इसलिए भी ऐसे वह पिन प्वाइंट ढूंढ़ता रहता है। अमेरिका की एक ताकतवर लॉबी नहीं चाहती कि नरेंद्र मोदी जैसा प्रभावशाली व्यक्ति भारत का लंबे समय तक नेतृत्व करे।

इसके अलावा अमेरिका में एक बड़ी लॉबी पीएम मोदी के खिलाफ काम करती है। कभी वह मानवाधिकारों के नाम पर तो कभी धर्म और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत पर हमले और निंदा का मौका ढूंढ़ते रहते हैं। अमेरिका का केजरीवाल मामले में हस्तक्षेप भी उसी का ताजा उदाहरण है। इसके अलावा भारत रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने में लगा है। दर्जन भर से ज्यादा देशों के साथ रुपये में लेन-देन को लेकर भारत करार कर चुका है। यह सिलसिला आगे बढ़ रहा है। भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण होने से भी अमेरिका को दिक्कत है। भारत तेजी से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ा रहा है।

अमेरिका में काम कर रही एंटी मोदी लॉबी

विदेश मामलों के एक्सपर्ट मनीष चांद ने कहा कि यह अमेरिका की सुपर फॉरेन पॉलिसी है कि वह मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के नाम पर लोकतंत्र और पारदर्शिता के नाम पर किसी भी देश में इस तरह के हस्तक्षेप करते हैं। जहां तक भारत की बात है तो अमेरिका में एक बहुत बड़ी एंटी मोदी लॉबी काम करती है। इस वक्त देश में इलेक्शन है, उससे पहले विपक्षी नेता और मुख्यमंत्री को अरेस्ट किया गया है तो इससे अमेरिका को एक मौका मिल गया है। क्योंकि अमेरिका इस तरह के मामले को अपनी फॉरेन पॉलिसी के उसी नजरिये से देखता है। अमेरिका में जो ह्यूमन राइट्स लॉबी है, वह मोदी के खिलाफ एक्टिव है। वह पीएम मोदी को लेकर पॉजिटिव नहीं हैं। खालिस्तानी पन्नू वाले मामले में यही हुआ। उन्हें लगता है कि वह भले खालिस्तानी है, लेकिन उसका भी नागरिक अधिकार है। मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों को ढाल बनाकर अमेरिका ऐसा कर रहा है। ऐसा करके अमेरिका को दूसरे देशों को अपने सुपर पॉवर होने का एहसास कराने के लिए भी है। ताकि उसका प्रभाव बना रहे। इसलिए वह भारत के साथ अन्य देशों पर भी ऐसा कोई मौका मिलने पर प्रेशर बनाते हैं। अमेरिका चाहता है कि हर देश किसी तरह उसके प्रभाव में रहे। 

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