जम्मू: भारतीय जनता पार्टी ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए अपना ‘संकल्प पत्र’ यानी कि मेनिफेस्टो जारी किया। संकल्प पत्र में 25 गारंटी दी गई हैं, जिनमें श्वेत पत्र जारी करना और आतंकवाद के सभी पीड़ितों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करना शामिल है। पार्टी के संकल्प पत्र में शामिल कश्मीर में 100 मंदिरों के जीर्णोद्धार के वादे ने भी लोगों का खासा ध्यान खींचा। अब सवाल यह उठता है कि भारतीय जनता पार्टी ने मंदिरों के जीर्णोद्धार को अपने संकल्प पत्र में तवज्जों क्यों दी? जम्मू कश्मीर के चुनावो में इसके क्या मायने हैं? आइए, समझने की कोशिश करते हैं।
क्या खास है बीजेपी के इस संकल्प पत्र में?
बीजेपी का संकल्प पत्र कई बड़े वादे करता हुआ नजर आ रहा है। इसमें कश्मीरी प्रवासी पंडितों की वापसी और पुनर्वास तथा पांच लाख नौकरियों के सृजन की बात की गई है तो अवैध रूप से बसे रोहिंग्या और बांग्लादेशी बस्तियों से संबंधित मुद्दे के समाधान के लिए अभियान चलाने का भी वादा किया गया है। जम्मू शहर में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के रूप में IT हब की स्थापना, उधमपुर में फार्मास्यूटिकल पार्क और किश्तवाड़ में आयुष हर्बल पार्क की स्थापना और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रणजीत सागर बांध के लिए एक अलग झील विकास प्राधिकरण बनाना शामिल हैं। यानी कि बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में लोगों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को छूने की कोशिश की है।
महिलाओं, युवाओं से जुड़े मुद्दों को भी दी जगह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा जारी बीजेपी के संकल्प पत्र में दूरदराज के क्षेत्रों में उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों को टैबलेट और लैपटॉप देने, कॉलेज के छात्रों को 3000 रुपये वार्षिक यात्रा भत्ता देने और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की मदद करने का वादा किया। बीजेपी ने वृद्धावस्था, विधवा और दिव्यांगता पेंशन को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये करने, अटल आवास योजना के तहत भूमिहीनों को 5 मरला मुफ्त जमीन देने और बिजली दरों में कमी करने की भी गारंटी दी है। साथ ही पार्टी ने विवाहित महिलाओं को 'मां सम्मान योजना' के तहत सालाना 18 हजार रुपये देने का वादा किया है।
इन प्रमुख मंदिरों के जीर्णोद्धार का है वादा
पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में कहा है कि ऋषि कश्यप तीर्थयात्रा पुनरुद्धार अभियान के तहत हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण किया जाएगा। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में 100 जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार करने और धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों की सक्रिय भागीदारी के साथ शंकराचार्य मंदिर, रघुनाथ मंदिर और मार्तंड सूर्य मंदिर समेत मौजूदा मंदिरों का और विकास करने का वादा किया है। पिछले कुछ सालों को देखें तो सरकार ने भी कश्मीर में मंदिरों को पुनरुद्धार में दिलचस्पी दिखाई है, ऐसे में बीजेपी द्वारा इस मुद्दे को संकल्प पत्र में शामिल करने पर तमाम सियासी जानकारों को कोई हैरानी नहीं हुई।
क्या है जम्मू-कश्मीर की डेमोग्राफी?
जम्मू कश्मीर की कुल आबादी में 68.80 फीसदी मुसलमान और 28.80 फीसदी हिंदू हैं। कश्मीर घाटी की बात करें तो 96 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम है जबकि जम्मू डिविजन में 66 फीसदी हिंदू और 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है। पूरे सूबे में 2 फीसदी के आसपास सिख भी हैं। अब आते हैं सीटों पर। जम्मू डिविजन में कुल मिलाकर 43 सीटें हैं जबकि कश्मीर डिविजन में 47 सीटें हैं। बीजेपी इस बार पूरे सूबे में अच्छा प्रदर्शन करना चाह रही होगी लेकिन हकीकत यही है कि उसे अगर कोई सत्ता के करीब पहुंचा सकता है तो वह जम्मू डिविजन ही है। संकल्प पत्र में मंदिरों का जिक्र पार्टी को जम्मू डिविजन में फायदा करा सकता है।
कितना बड़ा बन सकता है मंदिरों का मुद्दा?
अब सवाल यह उठता है कि जम्मू कश्मीर के चुनावों में मंदिरों का मुद्दा किस हद तक बड़ा बन सकता है? हाल ही में जारी जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणा पत्र पर विवाद हो गया था क्योंकि उसमें प्राचीन शंकराचार्य मंदिर को तख्त-ए-सुलेमान और हरी पर्वत को कोह-ए-मारां का नाम दिया गया था। घोषणा पत्र के जारी होने के बाद कई हिंदू संगठनों और लोगों ने भारी नाराजगी जताई थी। बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस मुद्दे पर सफाई भी दी थी, हालांकि अब इससे लोगों का गुस्सा कितना शांत हुआ कहा नहीं जा सकता। वहीं, बीजेपी द्वारा मंदिरों के जीर्णोद्धार का वादा निश्चित रूप से उसे इस वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय बना सकता है।
बीजेपी को इसलिए हो सकता है फायदा
संकल्प पत्र में मंदिरों के जीर्णोद्धार का जिक्र जम्मू डिविजन में बीजेपी को बढ़त दिला सकता है क्योंकि एक बड़ी आबादी नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा घोषणा पत्र में ऐतिहासिक जगहों के नाम बदले जाने से नाराज है। NC के घोषणा पत्र में शंकराचार्य मंदिर को तख्त-ए-सुलेमान और हरी पर्वत को कोह-ए-मारां का नाम दिए जाने का कांग्रेस को भी नुकसान हो सकता है क्योंकि वह गठबंधन में इसी पार्टी के साथ है। हालांकि अब बीजेपी इस मुद्दे को कितना बड़ा बना पाती है, यह इस पर निर्भर करता है। कश्मीर घाटी में पिछले तमाम चुनावों में बीजेपी का कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिला है ऐसे में वहां अगर पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह बोनस ही होगा।