नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्ट (KNP) में एक और चीते की मौत हो गई है। मार्च के बाद से इस नेशनल पार्क में चीतों की मौत का यह नौवां मामला है, जिनमें 6 वयस्क एवं 3 शावक शामिल हैं। मध्य प्रदेश वन विभाग ने बुधवार को एक बयान में कहा कि आज सुबह मादा चीतों में से एक धात्री (टिबलिसी) मृत पाई गई। वन विभाग ने कहा कि मौत का कारण पता करने के लिए पोस्टमॉर्टम किया जा रहा है। उसने कहा कि इस चीते की मौत के बाद अब KNP में महज 15 चीते रह गये हैं, जिनमें सात नर, सात मादा और एक मादा शावक शामिल हैं।
चीतों की मौत के बाद उठने लगे सवाल
भारत से विलुप्त होने के 70 साल बाद चीतों को अफ्रीका से एक बार फिर देश में लाया गया था। उस समय पूरे देश में ये चीते चर्चा का विषय थे। हालांकि चीतों की लगातार हो रही मौत कई तरह के सवाल खड़े करती है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को कहा था कि कूनो नेशनल पार्क में एक साल से भी कम समय में 8 चीतों की मौत हो जाना एक ‘सही तस्वीर’ पेश नहीं करता। इसने केंद्र से इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाने और इन वन्यजीवों को अन्य अभयारण्यों में भेजने की संभावना तलाशने को कहा था। हालांकि एक्सपर्ट्स का चीतों की मौत को लेकर कुछ और ही कहना है।
‘फर की वजह से हो रही चीतों की मौत’
चीता परियोजना से जुड़े इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि अफ्रीका की सर्दियों के आदी चीतों के ‘फर’ की मोटी परत विकसित होने की प्राकृतिक प्रक्रिया, भारत की नमी युक्त और गर्म मौसमी परिस्थितियों में उनके लिए प्राणघातक साबित हो रही है। सरकार को सौंपी रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स ने चीतों के फर को काटने की सलाह दी है ताकि उन्हें प्राणघातक संक्रमण और मौत से बचाया जा सके। चीते की मौत का सबसे नवीनतम मामला बुधवार को सामने आया। विशेषज्ञों ने कहा कि फर की मोटी परत परजीवियों और नमी से होने वाले त्वचा रोग के लिए आदर्श परिस्थिति है।
‘कुछ चीते जिंदा रहेंगे और फलेंगे-फूलेंगे’
एक्सपर्ट्स ने कहा कि इसके साथ ही मक्खी का हमला संक्रमण को बढ़ाता है और त्वचा के स्वास्थ्य के लिए विपरीत परिस्थिति पैदा करता है। उन्होंने कहा कि जब चीते अपनी जांघ के बल पर बैठते हैं तो संक्रमित लिक्विड फैल कर रीढ़ की हड्डी तक पहुंच सकता है। प्रोजेक्ट से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सभी चीतों की त्वचा पर घने फर विकसित नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘कुछ चीतों के लंबे बाल नहीं है और उन्हें ऐसी समस्या का सामना करना नहीं पड़ा है। इसलिए प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के तहत सबसे सेहतमंद चीते और उनके शावक जिंदा रहेंगे और उनके शावक भारतीय परिस्थितियों में फलेंगे-फूलेंगे।’
‘जलवायु चीतों के लिए एकमात्र कारक नहीं’
हाल में सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स ने कहा कि जलवायु चीतों के लिए एकमात्र कारक नहीं है क्योंकि उनके निवास क्षेत्र की ऐतिहासिक सीमा दक्षिणी रूस से दक्षिण अफ्रीका तक फैली हुई है, जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों से युक्त है। रिपोर्ट में जिस रिसर्च का जिक्र किया गया है, उसके मुताबिक 2011 और 2022 के बीच 364 चीतों को ट्रांसफर करने के आंकड़ों से इशारा मिलता है कि उनके अस्तित्व के लिए जलवायु बड़ी बाधा नहीं है। उक्त सरकारी अधिकारी ने स्वीकार किया कि अफ्रीकी विशेषज्ञों ने भी ऐसी स्थिति की आशा नहीं की थी।
‘चीतों को दवा देने में भी कम खतरा नहीं’
एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीतों को दवा देने के लिए भगाने, पकड़ने और बाड़ों में वापस लाने से तनाव और मौत का जोखिम हो सकता है, जिससे चीतों की अपने नए घर में संतुलन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। बता दें कि ‘प्रॉजेक्ट चीता’ के तहत कुल 20 चीतों को 2 ग्रुप में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से KNP में लाया गया था। पहला ग्रुप पिछले साल सितंबर में और दूसरा ग्रुप इस साल फरवरी में आया। मार्च के बाद से इनमें से 6 वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है। मई में मादा नामीबियाई चीता से पैदा हुए 4 शावकों में से 3 के लिए गर्मी जानलेवा हो गई थी।
ज्वाला के 4 शावकों में से 3 की मौत
8 नामीबियाई चीतों, 5 मादा और 3 नर को पिछले साल 17 सितंबर को KNP के बाड़ों में छोड़ा गया था। फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते KNP लाये गये थे। मार्च में नामीबियाई चीता ‘ज्वाला’ के 4 शावक पैदा हुए, लेकिन उनमें से 3 की मई में मौत हो गई। 11 जुलाई को चीता ‘तेजस’ मृत पाया गया था जबकि 14 जुलाई को ‘सूरज’ मृत मिला था। इससे पहले, नामीबियाई चीतों में से एक साशा की 27 मार्च को किडनी की बीमारी से मौत हो गई थी। दक्षिण अफ्रीका के चीते ‘उदय’ की 13 अप्रैल को मौत हो गई थी, जबकि वहीं से लाये गये चीते ‘दक्ष’ 9 मई को मृत पाया गया था। (भाषा)