Friday, March 28, 2025
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Explainer: सेना में 80 हजार घोड़े, 500 हाथी और दो लाख पैदल सैनिक, कौन थे मेवाड़ के राजा राणा सांगा?

पिता की मौत के बाद राणा सांगा 1509 में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने थे। राणा सांगा ने अपने शासनकाल में मेवाड़ का एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बना दिया था।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Mar 26, 2025 21:22 IST, Updated : Mar 27, 2025 12:22 IST
Rana Sanga
Image Source : INDIA TV कौन थे मेवाड़ के राजा राणा सांगा?

मेवाड़ के राजा राणा सांगा अचानक सुर्खियों में आ गए। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य रामजीलाल सुमन ने राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया, जिसके बाद यह मामला गरमा गया। अगर इतिहास के पन्नों में झांके तो राणा सांगा पर काफी कुछ लिखा गया है। लेकिन हम यहां राणा सांगा के बारे में जानेंगे, यह भी जानेंगे की उनकी सेना कैसी थी और कैसे उन्होंने बड़े-बड़े महारथियों को युद्ध के मैदान में धूल चटाई थी। 

कब हुआ था जन्म, क्या था पूरा नाम?

भारत के इतिहास में राणा सांगा का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राणा सांगा के बिना मेवाड़ का उल्लेख अधूरा है। मेवाड़ के एक शक्तिशाली और प्रसिद्ध राजा थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में शासन किया था। राणा सांगा ने अपने शासनकाल में मेवाड़ का एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बना दिया था। राणा सांगा का जन्म वर्ष 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ में हुआ था। वह राणा रायमल के पुत्र थे और मेवाड़ के राजवंश के सदस्य थे। उनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था लेकिन वे राणा सांगा के नाम से प्रसिद्ध हुए।

1509 में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने

पिता की मौत के बाद राणा सांगा 1509 में मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने थे। मेवाड़ की सीमा पूरब में आगरा, दक्षिण में गुजरात की सीमा तक थी। उनकी सेना में 80 हजार घोड़े, 500 हाथी और करीब दो लाख पैदल सैनिक थे। दुश्मन उनके नाम से ही खौफ खाते थे। खातोली का युद्ध 1517 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के नेतृत्व वाले लोदी वंश और राणा सांगा के नेतृत्व वाले मेवाड़ साम्राज्य के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह हराया था। उसने 1518-19 में फिर से हमला करके राणा सांगा से बदला लेने की कोशिश की, लेकिन राणा सांगा ने उसे फिर से राजस्थान के धौलपुर में बुरी तरह से हरा दिया। इब्राहिम लोदी वहां से भाग गया।

राणा सांगा की सेना की खासियत यह थी कि उनका अनुशासन, नेतृत्व और सैन्य प्रशिक्षण बेहतरीन था। यही वजह थी कि राणा सांगा की सेना युद्ध में दुश्मनों पर शुरुआत से ही हावी रहती थी। इस सेना का अश्वदल बेहद मजबूत था। इस अश्व दल में 80 हजार घोड़े थे। यह युद्ध को निर्णायक मोड़ देने की क्षमता रखता था। वहीं राणा सांगा की पैदल सेना भी बहुत मजबूत थी। दो लाख पैदल सैनिक थे। वहीं राणा सांगा की सेना में 500 हाथी भी थे।

Rana Sanga Army

Image Source : INDIA TV
राणा सांगा की सेना

इब्राहिम लोदी को राणा सांगा ने कई बार हराया

इतिहासकारों की मानें तो उन्होंने दिल्ली मालवा, गुजरात के सुल्तानों के साथ 18 युद्ध लड़े और सभी में उन्हें जीत हासिल हुई। यह लड़ाई उन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए लड़ी थी। इब्राहिम लोदी ने कई बार सांगा से युद्ध किया, लेकिन हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। इन युद्धों के कारण इब्राहिम ने आधुनिक राजस्थान में अपनी सारी ज़मीन खो दी। इसी समय, राणा सांगा ने आगरा में पीलिया खार तक अपना प्रभाव बढ़ाया। 16वीं शताब्दी की पांडुलिपि 'पार्श्वनाथ-श्रवण-सत्तावीसी' के अनुसार, राणा सांगा ने मंदसौर की घेराबंदी के ठीक बाद रणथंभौर में इब्राहिम लोदी को हराया था।

मालवा के शासक को बंदी बनाया

1517 और फिर 1519 में, उन्होंने मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को हराया। यह लड़ाई इदर और गागरोन में हुई थी। उसने महमूद को पकड़ लिया और 2 महीने तक बंदी बनाकर रखा। बाद में महमूद ने माफ़ी मांगी और फिर कभी हमला न करने की कसम खाई, इसलिए राणा सांगा ने सनातन युद्ध नियमों का पालन करते हुए उसे रिहा कर दिया। हालाँकि, बदले में, उसने महमूद के राज्य का एक बड़ा हिस्सा अपने राज्य में मिला लिया।

निज़ाम खान की सेना को हराया 

1520 में, राणा सांगा ने इदर राज्य के निज़ाम खान की सेना को हराया और उसे अहमदाबाद की ओर धकेल दिया। राणा सांगा ने अहमदाबाद की राजधानी से 20 मील दूर अपना हमला रोक दिया। कई लड़ाइयों के बाद, राणा सांगा ने सफलतापूर्वक उत्तरी गुजरात पर कब्जा कर लिया और अपने एक जागीरदार को वहाँ का शासक बना दिया। राणा सांगा ने मालवा और गुजरात के सुल्तानों की संयुक्त सेना को हटेली में हराया। इसी तरह, राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी को बुरी तरह हराया और गागरोन, भीलसा, रायसेन, सारंगपुर, चंदेरी और रणथंभौर को अपने राज्य में मिला लिया।

बयाना के युद्ध में राणा सांगा ने बाबर को हराया

पंजाब और सिंध जीतने के बाद बाबर ने दिल्ली पर कब्ज़ा करने की योजना बनाई। राणा सांगा ने बाबर की बढ़ती ताकत को रोकने की तैयारी शुरू कर दी। उसने आगरा पर हमला करने की तैयारी शुरू कर दी, जो बाबर के शासन में था। जब बाबर को इस बात का पता चला तो उसने अपने बेटे हुमायूं को बुलाया। इसके अलावा, आगरा के बाहर धौलपुर, ग्वालियर और बयाना के मज़बूत किले थे.।बाबर ने सबसे पहले इन किलों को अपने कब्ज़े में लेने की योजना बनाई। उस समय बयाना का किला निज़ाम खान के नियंत्रण में था। बाबर ने उसके साथ समझौता करने की कोशिश की। बाद में निज़ाम खान बाबर के पक्ष में शामिल हो गया। 21 फरवरी 1527 को बाबर और राणा सांगा की सेनाएं बयाना के युद्धक्षेत्र में आ गईं। इस युद्ध में बाबर की सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा। अपमानजनक हार के बाद वह आगरा लौट आये।

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मुगल सेना का मनोबल टूट गया

स्कॉटिश इतिहासकार विलियम एर्स्किन ने लिखा है कि बाबर को राणा सांगा की वीरता के बारे में पहले से ही पता था, लेकिन उसका सामना पहली बार बयाना के युद्ध में हुआ। उन्होंने लिखा है, "बयाना में मुगलों को एहसास हुआ कि उनका सामना अफगानों से कहीं ज़्यादा ताकतवर सेना से हो रहा है। राजपूत हमेशा युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए तैयार रहते थे और अपनी जान कुर्बान करने से नहीं हिचकिचाते थे।" इस युद्ध के बारे में बाबर ने खुद अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में लिखा है, "काफिरों ने इतना भयंकर युद्ध लड़ा कि मुगल सेना का मनोबल टूट गया। वे घबरा गए।" इतिहासकार वीके कृष्णराव के अनुसार राणा सांगा बाबर को अत्याचारी और विदेशी आक्रमणकारी मानते थे। वह दिल्ली और आगरा पर विजय प्राप्त करके विदेशी आक्रमणकारियों का अंत करना चाहते थे।

नाम से कांपते थे दुश्मन

इतिहासकारों के मुताबिक राणा सांग का नाम सुनकर दुश्मन भी डर से कांपते थे। मेवाड़ के राणा सांगा पहले ऐसे शासक थे, जिनका लक्ष्य था दिल्ली पर कब्जा करना। इस क्रम में उन्होंने अपने आसपास की रियासत को जीतकर अपना परचम फहराया। कई शिलालेखों में भी उनकी इस जीत का उल्लेख मिलता है। राणा सांगा अपनी बहादुरी और शूरवीरता को लिए तो विख्यात थे ही, साथ ही साथ वे अपनी उदारता के लिए भी मशहूर थे। इस संबंध में इतिहासकारों ने भी कई प्रमाण भी दिए हैं। 1527 में राणा सांगा और बाबर के बीच भरतपुर के रूपवास तहसील के खानवा में युद्ध हुआ। इतिहासकारों के मुताबिक, इस युद्ध में राणा सांगा को 80 घाव लगे थे, लेकिन इसके बाद भी राणा सांगा ने युद्ध लड़ा। राणा सांग की एक आंख, एक हाथ नहीं था और एक पैर भी काम नहीं करता था। लेकिन राणा सांगा ने हिम्मत नहीं हारी। 30 जनवरी 1528 को उनकी मौत हो गई थी।

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