नई दिल्लीः ईरान भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक, व्यापारिक और ऊर्जा साझादीर है। इसी साल ईरानी राष्ट्रपति भारत आने वाले थे। मगर एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनका दुखद निधन हो गया। राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का निधन भारत के लिए निश्चित रूप से गहरा झटका है। भारत के प्रति रईसी का रुख काफी सकारात्मक था। पीएम मोदी के भी वह अच्छे दोस्त थे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में डिप्लोमेसी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि ईरान और भारत के रिश्ते हमेशा से अच्छे रहे हैं। इसीलिए अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने ईरान के साथ अपने व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारी को जारी रखा। ये दिखाता है कि इस क्षेत्र में ईरान भारत के लिए न सिर्फ रणनीतिक साझीदार था, बल्कि अच्छा मित्र भी था। रईसी ने बहुत ही मजबूत तरीके से भारत के साथ रिश्ते को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि दो देशों के बीच जब लंबे समय से अच्छे संबंध होते हैं तो उसमें कई आपसी हित के साथ विभिन्न आर्थिक, व्यापारिक और वैश्विक परिस्थितियां और घटनाएं भी शामिल होती हैं, जो उन रिश्तों को आगे बढ़ाते हैं। इसलिए भारत ईरान का यह रिश्ता आगे भी कायम रहेगा।
प्रो. अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा अभी हाल ही में भारत ने ईरान के साथ चाबहार पोर्ट पर बड़ा समझौता साइन किया है। कम से कम अगले 10 वर्षों तक चाबहार पोर्ट का संचालन अब भारत के पास रहेगा। इब्राहिम रईसी ने भारत के साथ इस डील को अंजाम तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लिहाजा भारत भी संकट की इस घड़ी में हर विपरीत परिस्थिति में ईरान के साथ खड़ा रहेगा। भारत को चाबहार मिलना रणनीतिक रूप से बेहद आवश्यक था। यह न सिर्फ यूरेशिया और पूर्वी यूरोप में जाने का राश्ता था, बल्कि इसके माध्यम से वह मिडिल-ईस्ट और यूरोप के रास्ते भी भारत तलाश रहा है। ऐसे में चाबहार समझौता भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है।यह भारत-ईरान के मजबूत संबंधों की वजह से ही संभव हो पाया।
स्वतंत्र और संप्रभु नीति को आगे बढ़ाने की चुनौती
वहीं वैश्विक परिदृश्य में इस निधन को देखा जाए तो इजरायल के साथ संघर्ष चल रहा था और अमेरिका लगातार ईरान पर नए-नए प्रतिबंध लगा रहा था। ऐसे में जो नए राष्ट्रपति आएंगे उनपर बहुत कुछ निर्भर करता है कि अपने परमाणु कार्यक्रम को किस तरह लेकर चलते हैं या अमेरिका के प्रति उनका दृष्टिकोण कैसा है या वह स्वतंत्र और संप्रभु नीति चलाने में सक्षम होंगे या किसी दबाव का हिस्सा बन जाएंगे। यह आने वाले 6 महीने में पता चलेगा। यह ईरान के लिए कठिन समय है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रणनीतिक खिलाड़ियों को भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे वक्त में वह ईरान के खिलाफ कोई कड़ा फैसला न लें।
भारत का मजबूत साथी बना रहेगा ईरान
प्रो. अभिषेक ने कहा कि राष्ट्रपति रईसी के निधन के बावजूद ईरान भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक और ऊर्जा साझीदार बना रहेगा। क्योंकि दोनों ही देशों को एक दूसरे की सख्त जरूरत है। दोनों के अपने-अपने आपसी हित हैं। अब जो भी ईरान का अगला राष्ट्रपति होगा, उसके सामने कई तरह की चुनौतियां होंगी। भारत और रूस जैसे दोस्तों के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाने के साथ-साथ अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखने और अमेरिका, इजरायल जैसे देशों के समक्ष अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाने की चुनौती होगी। भारत की पूरी संवेदना इस वक्त ईरान के साथ है। हालांकि इजरायल और ईरान के संबंध खराब थे। अमेरिका भी ईरान पर लगातार विभिन्न प्रतिबंधों और चेतावनियों के जरिये दबाव डाल रहा था। ऐसे वक्त में रईसी का जाना ईरान के लिए बड़ी क्षति है।
भारत ईरान के साथ अपने संबंधों को जारी रखेगा। भारत की ऊर्जा और रणनीतिक जरूरतें पूरा करने में ईरान हमारी विदेश नीति का महत्वपूर्ण अंग है। मिडिल ईस्ट में सऊदी अरब और दूसरे मुल्क जो हैं, अब उनकी राजनीति किस ओर रुख करती है, यह भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। अमेरिका और पश्चिमी देश के प्रतिबंधों को अब ईरान कैसे हैंडल करेगा। यह भी देखने वाली बात होगी।
अगले 50 दिनों में ईरान में कराने होंगे चुनाव
ईरान के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के निधन के बाद अगल 50 दिनों में चुनाव कराने होंगे। अब नए राष्ट्रपति पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि वह भारत ईरान के रिश्तों को आगे बढ़ाने के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिस्थितियों में अपनी विदेश नीति को किस तरह आगे बढ़ा पाते हैं। मगर इतना जरूर है कि रईसी का ऐसे वक्त में जाने से हमास का इजरायल के साथ युद्ध कमजोर पड़ेगा। इसका आंशिक असर रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी पड़ सकता है। क्योंकि ईरान रूस के बड़ा रणनीतिक साझीदार और अच्छा दोस्त था। वहीं इजरायल के साथ युद्ध लड़ रहे हमास, हिजबुल्लाह समेत अन्य संगठनों को ईरान का बैक सपोर्ट था, वह भी कमजोर पड़ेगा।