Explainer: वर्ल्ड डे फॉर वॉर ऑरफैंस यानि विश्व युद्ध अनाथ दिवस... की शुरुआत युद्धग्रस्त बच्चों की जिंदगी को आगे बढ़ाने और उन्हें त्रासदी से उबारने के लिए है। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में लाखों बच्चे अनाथ हो गए थे। साथ ही लाखों बच्चे जिंदगी भर के लिए तो कुछ आंशिक रूप से अपंग हो गए। इन बच्चों की जिंदगी को आगे बढ़ाना, उन्हें सदमे से उबारना पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था। बच्चों की पीड़ा को महसूस करते हुए सबसे पहले एक फ्रांसीसी संगठन एसओएस एनफैंट्स एन डिट्रेसस ने विश्व युद्ध अनाथ दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके लिए 6 जनवरी का दिन तय किया गया। तब से लेकर आज तक विश्व युद्ध अनाथ दिवस मनाने की परंपरा अनवरत चली आ रही है।
रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध
युद्ध की ताजा घटनाओं में रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास युद्ध इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इन युद्धों में लाखों बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को या तो इनमें से किसी एक को खो दिया है। बहुत से बच्चे अपाहिज और अपंग भी हो चुके हैं। अब इन बच्चों की जिंदगी को आगे बढ़ाना, उन्हें सदमे से उबारना, युद्ध की भयावह यादों को मिटाना, उन्हें खुशियों की नई दुनिया में ले जाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। मगर अब संयुक्त राष्ट्र की यूनिसेफ जैसी संस्थाएं और तमाम एनजीओ युद्धग्रस्त बच्चों की जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए हर उपाय कर रहे हैं।
मानसिक पीड़ा, आघात से उबारना होता है मुश्किल
युद्ध ग्रस्त बच्चों को इसकी पीड़ा से उबारना बेहद मुश्किल कार्य होता है। जिन बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है या जिन्होंने सिर्फ अपनी माता या सिर्फ पिता को खोया है, उनकी मानसिक पीड़ा को महसूस करने मात्र से ही कलेजा फट जाता है। ये वही बच्चे होते हैं, जो पूरी तरह बेघर और बेसहारा हो जाते हैं। इस छोटी से उम्र में अपने माता या पिता को खो देते हैं। जिस घर या आंगन में उनके खेलने-कूदने की उम्र थी, उसे वह युद्ध की बमबारी में खो चुके होते हैं। फिर उनके लिए पूरी तरह एक नई दुनिया तैयार करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। इनकी पढ़ाई-लिखाई से लेकर इनके लालन-पालन और लाड-प्यार की चिंता करने वाले माता-पिता के नहीं होने पर उनकी दुर्दशा को महसूस करने मात्र से ही दिल-दिमाग हिल उठता है। मगर ऐसे बच्चों की जिंदगी को ही फिर से पटरी पर लाने के लिए विश्वयुद्ध अनाथ दिवस मनाने की शुरुआत हुई।
अपनी आंखों के सामने माता-पिता और भाई-बहनों को मरते देखना देता है बड़ा सदमा
इन छोटे-छोटे बच्चों की आत्मा उन दृश्यों को भला कैसे भूल पाती होगी, जिनमें उन्होंने अपनी आंखों के सामने अपने माता-पिता को मरते देखा और अपने भाइयों व बहनों को हमेशा के लिए खो दिया। अपने खिलौने, अपना खेलने का स्थान अपने दोस्त और पड़ोसी सबको खो दिया। फिर इनकी जिंदगी बेहद मुश्किल हो जाती है। उन्हें मिले इस सदमे के दर्द को शब्दों में बयां कर पाना बेहद मुश्किल है। यह आघात उन्हें पीढ़ियों तक भुगतना पड़ता है। ऐसे बच्चों का पुनरुत्थान करना और सशक्तिकरण करना ही विश्वयुद्ध अनाथ दिवस का मकसद है।
इतिहास और आंकड़ा
फ्रांस के एसओएस एनफैंट्स एन डिट्रेसेस नाक संगठन ने विश्व युद्ध अनाथ दिवस की स्थापना की। ऐसे बच्चों के लिए संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ही मुख्य सहारा है। यूनिसेफ के अनुसार पूर्वोत्तर देशों में ऐसे लगभग 9,00,000 बच्चे हैं, जो युद्ध से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। इसके बाद उन्हें शिक्षा, आवास, भोजन और शारीरिक क्षति से गुजरना पड़ा है। मौजूदा वक्त में ऐसे अनाथों की संख्या अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 150 मिलियन तक है, इनमें 52 मिलियन अफ्रीका में 10 मिलियन कैरेबियन और लैटिन अमेरिका में 63 मिलियन एशिया में 10 से 12 मिलियन मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में शामिल हैं। 95 प्रतिशत मामलों में सभी अनाथ बच्चों की उम्र 5 वर्ष के आसपास है। रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास युद्ध के बाद ये आंकड़ा और बढ़ा है।