Explainer : इसरो के वैज्ञानिकों ने बुधवार की शाम चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को लैंड कराने में सफलता हासिल कर इतिहास रच दिया। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचनेवाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। वहीं भारत चौथा ऐसा देश बन गया है जिसके यान ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की है। भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में यह ऐतिहासिक उपलब्धि ऐसे समय मिली है जब कुछ दिन पहले रूस का अंतरिक्ष यान ‘लूना 25’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के मार्ग में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
40 दिनों में अपनी यात्रा पूरी की
14 जुलाई दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन केंद्र से उड़ान भरने के बाद करीब 40 दिनों में अपनी यात्रा पूरी कर 23 अगस्त शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर उतरा। इस अभियान का मुख्य रूप से तीन लक्ष्य है। लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग। चंद्रमा की सतह पर रोवर को उतारना और लैंडर और रोवर्स में लगे उपकरणों की मदद से चंद्रमा के सतह की स्टडी करना। अपने उद्देश्यों में चंद्रयान-3 अभियान को उम्मीद के मुताबिक सफलता मिली है। चांद के सतह पर पहुंचने की यह कामयाबी भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
1. अंतरिक्ष विज्ञान का होगा विकास
इसरो की इस कामयाबी से अंतिरक्ष के क्षेत्र में भारत की स्थिति और मजबूत हो गई है। इस सफलता से अंतरिक्ष विज्ञान के विकास की क्षमताओं को बढ़ाने पर और जोर दिया जाएगा। अपने किफायती अभियानों के चलते चर्चित इसरो दुनिया में अव्वल है। बहुत से ऐसे देश हैं जो अंतरिक्ष में अपने सैटेलाइट को स्थापित करना चाहते हैं लेकिन उनके पास लॉन्चिंग की सुविधा नहीं है। ऐसी स्थिति में उनके पास एकमात्र विकल्प है भारत का। इसरो के किफायती अंतरिक्ष अभियान से इन देशों को काफी मदद मिलती है। भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के वर्ष 2024 तक 100 अरब डॉलर पार होने का अनुमान है।
2. अंतरिक्ष के रहस्यों से उठेगा पर्दा
चंद्रयान-3 की कामयाबी एक बार फिर अंतरिक्ष से जुड़े रहस्यों को खोजने की मुहिम तेज करेगी। खगोलशास्त्रियों को ब्रह्रांड से जुड़े रहस्य जानने में मदद मिलेगी। अंतिरक्ष के क्षेत्र में बढ़ते रिसर्च का नतीजा ये हो सकता है कि भारत रेडियो टेलीस्कोप निर्माण का केंद्र बन सकता है। इसरो के कई मिशन पाइपलाइन में है। चंद्रयान-3 के बाद सूर्य की खोज के लिए इसरो आदित्य मिशन को लॉन्च करनेवाला है। इसके साथ ही गगनयान की तैयारियां भी जोरों पर हैं। इसके साथ ही अंतरिक्ष अनगिनत अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने की कवायद तेज होने की उम्मीद है।
3. स्वदेशी उपकरणों पर आत्मनिर्भरता
चंद्रयान-3 मिशन की खास बात यह है कि इसमें इस्तेमाल किए गए अधिकांश तकनीक और उपकरणों का निर्माण भारत में हुआ है। यह अंतरिक्ष के क्षेत्र में देश की आत्मनिर्भरता का बड़ा संकेत है। इससे दुनिया के अन्य देशों में भारत की तकनीक और भारत के उपकरणों पर विश्वसनीयता बढ़ेगी और एक बड़ा बाजार उपलब्ध होगा। फिलहाल देश में अंतरिक्ष से जुड़े सौ से ज्यादा स्टार्टअप हैं। आनेवाले समय में इन स्टार्टअप की संख्या भी बढ़ेगी और इनका कारोबार को भी नए पंख लगेंगे।
4. नई तकनीकों का दम
चंद्रयान-3 के इस अभियान में नई तकनीकों को भरपूर इस्तेमाल किया गया जो उम्मीदों के मुताबिक सफलता की बड़ी वजह बनी। इस अभियान में एआई और रोबोट तकनीक की अहम भूमिका रही है। अब इन तकनीकों का इस्तेमाल आनेवाले अंतरिक्ष अभियानों के साथ ही धरती पर भी किया जा सकेगा। दुर्गम क्षेत्रों में रोबोट से काम लिया जा सकता है। इस अभियान को रोबोट से दुर्गम इलाकों में काम कराने की तकनीक का परीक्षण भी माना जा रहा है।
5. दुनिया में भारत के वैज्ञानिकों का जलवा
इसरो की इस सफलता से दुनिया में भारत के वैज्ञानिकों की ताकत बढ़ जाएगी। दुनिया इन वैज्ञानिकों का लोहा मानेगी। इस सफलता से बड़े पैमाने पर तकनीकों के आदान-प्रदान का रास्ता भी खुलने की उम्मीद है। इतना ही नहीं इसरो के आनेवाले अभियानों में भी कामयाबी की उम्मीद बढ़ गई है। अंतरिक्ष क्षेत्र में मिली इस सफलता से अन्य क्षेत्र में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों का मनोबल भी बढ़ा है।