Sunday, December 22, 2024
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'वन नेशन,वन इलेक्शन' क्या है, इसके क्या फायदे हो सकते हैं और क्या हैं चुनौतियां? जानें सबकुछ

केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन कर दिया है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के आगामी विशेष सत्र में इस संबंध में एक बिल ला सकती है।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Sep 01, 2023 14:41 IST, Updated : Sep 01, 2023 15:05 IST
पीएम मोदी
Image Source : PTI पीएम मोदी

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय-समय पर अपने संबोधनों में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' चर्चा करते रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने इस व्यवस्था को देश की जरूरत भी बताया है। अब इसी दिशा में सरकार ने अपना कदम बढ़ा दिया है। केंद्र सरकार की ओर से 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर एक कमिटी का गठन किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया है। इस संबंध में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आज पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात भी की है। वहीं सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र भी बुलाया है। इस सत्र में कुल पांच बैठकें होंगी। माना जा रहा है कि सरकार संसद के विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन का प्रस्ताव ला सकती है। अब यहां हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' क्या है? इसके फायदे क्या हैं और चुनौतियां क्या हैं।

'वन नेशन, वन इलेक्शन' क्या है?

वन नेशन, वन इलेक्शन जैसा कि नाम से ही जाहिर है- एक देश के लिए एक चुनाव। इसका मतलब है कि देश में होनेवाले सभी चुनाव एक साथ होंगे। अब तक ये चुनाव अलग-अलग होते रहे हैं। कभी लोकसभा का चुनाव... तो कभी विधानसभा चुनाव.. देश में हर कुछ महीने पर कहीं न कहीं.. किसी न किसी हिस्से में कोई चुनाव होता रहता है। इन हालातों से निपटने के लिए ही वन नेशन, वन इलेक्शन का कॉन्सेप्ट सामने आया और इस पर चर्चा शुरू हुई है। अब पहली बार इस मुद्दे पर सरकार की ओर से कदम आगे बढ़ाने की कोशिश की गई है।

इसके क्या फायदे होंगे ? 

यूं तो इसके कई फायदे गिनाए जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषक हर्षवर्धन त्रिपाठी का मानना है कि वन नेशन, वन इलेक्शन आज देश की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे बड़े पैमाने पर होने वाले खर्च को तो बचाया ही जा सकता है साथ ही अगर देश में विकास की रफ्तार और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखना है तो 'वन नेशन, वन इलेक्शन' जरूरी है। उन्होंने कहा कि हर कुछ महीने के बाद देश में कहीं न कहीं चुनाव होता ही हैं। चुनाव के समय सबसे ज्यादा आपसी झगड़े भी होते हैं। सांप्रदायिक तनाव की स्थितियां भी देखी जाती हैं। चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद विकास के कामों पर भी असर पड़ता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती है तो ऐसी स्थिति में क्या विकल्प होगा,इसका रास्ता भी निकालना होगा।

पैसों की बर्बादी बचेगी

इसके लागू होने से देश में चुनावों पर हर साल होनेवाले भारी भरकम खर्च से बचा जा सकता है। साथ ही चुनाव की व्यवस्था में बड़े पैमाने पर मैन पावर का भी इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न विभागों में तैनात इन कर्मचारियों को अपने मूल काम को छोड़कर चुनाव के इंतजाम में जुटना पड़ता है। बार-बार चुनाव होने से विभिन्न विभागों का काम भी लंबित होता है जिसका असर विकास पर पड़ता है। 

विकास में गतिरोध नहीं

चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। ऐसी स्थिति में विकास के नए कामों नहीं हो पाते हैं। सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं ले पाती है और विभिन्न योजाओं को लागू करने में परेशानियां आती हैं। देश में बार-बार होनेवाले चुनाव से विकास के कार्य बुरी तरह प्रभावित होते हैं। एक चुनाव खत्म होते ही फिर दूसरा चुनाव आ जाता है। इन्हीं हालातों से बचने के लिए वन नेशन वन इलेक्शन की चर्चा शुरू हुई थी।

क्या हैं चुनौतियां

लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कानून में संशोधन करने की जरूरत होगी। रीप्रेजेंटेशन ऑफ दी पुपुल एक्ट 1951 के प्रावधानों में भी संशोधन करना होगा ताकि उपचुनावों को साथ में कराया जा सके। इसके लिए सभी दलों को एक मंच पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके खिलाफ एक तर्क यह भी बताया जाता है कि इससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ सकता है। क्योंकि वन नेशन वन इलेक्शन से राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा पहुंच सकता है जबकि छोटे दलों को नुकसान हो सकता है। 

पहले भी एकसाथ हो चुके हैं चुनाव

ऐसा नहीं है कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ नहीं हुए। वर्ष 1951-52, 1957,1962 और 1967 में देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि 1968 और 1969 में कुछ विधानसभा और 1970 में लोकसभा भंग होने के बाद हालात बदले। बाद के दिनों में ज्यादातर चुनाव अलग-अलग समय पर ही हुए और पहले जैसी एकरूपता नहीं रह गई। हालांकि पूर्व में चुनाव आयोग और विधि आयोग की तरफ से भी वन नेशन वन इलेक्शन का जिक्र किया गया है। लेकिन इस पर राजनीतिक दलों के बीच आम राय कायम करने की गंभीर कोशिश नहीं हुई।

विशेष सत्र में अगर ये बिल पास हुआ तो क्या होगा

अब जबकि सरकार की तरफ से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है और 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर कमिटी गठन की खबर है तो ऐसे हालात में राजनीतिक तस्वीर अगले कुछ दिनों बदल भी सकती है। ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि हो सकता है मोदी सरकार संसद के विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन के बिल को पारित कर दे और आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव और अन्य राज्यों के चुनाव भी संपन्न करा ले। वहीं बदली हुई परिस्थितियों में ये भी हो सकता है कि आगामी लोकसभा चुनावों के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने का फैसला लिया जाए। लेकिन ये चीजें इतनी आसान नहीं हैं। केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ सहमति भी बनानी होगी। तमाम तरह की कानूनी अड़चने सामने आएंगी। इसके लिए कानून में बड़े स्तर पर बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी। निश्चित तौर पर वन नेशन वन इलेक्शन को लागू कराना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

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