Tuesday, April 22, 2025
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Explainer: तमिलनाडु में लोकसभा सीटों के परिसीमन पर क्यों फंसा पेंच, CM स्टालिन को किस बात का है डर?

लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन ने विरोध जताया है। उन्होंने केंद्र पर आरोप लगाया है कि दक्षिण के राज्यों को दंडित न करें। हालांकि केंद्र का कहना है कि परिसीमन की वजह से किसी राज्य की सीट कम नहीं होगी।

Edited By: Amar Deep
Published : Feb 28, 2025 12:32 IST, Updated : Feb 28, 2025 12:54 IST
परिसीमन का विरोध कर रहे एम के स्टालिन।
Image Source : INDIA TV परिसीमन का विरोध कर रहे एम के स्टालिन।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन लोकसभा परिसीमन मुद्दे को लेकर लगातार आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने प्रस्तावित परिसीमन की आलोचना करते हुए कहा कि निचले सदन में तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा। लोकसभा परिसीमन के परिणामस्वरूप राज्य को 39 (वर्तमान सीटों की संख्या) सीटों में से 8 सीटों का नुकसान हो सकता है। सीएम एम के स्टालिन ने मंगलवार को कहा कि तमिलनाडु 8 सीटें खोने के 'खतरे' का सामना कर रहा है क्योंकि राज्य ने परिवार नियोजन कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू किया है जिससे जनसंख्या नियंत्रित हुई है।

सचिवालय में कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता करने के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए एम के स्टालिन ने कहा कि राज्य "एक और भाषा युद्ध" के लिए "तैयार" है। इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा परिसीमन मुद्दे पर चर्चा के लिए 5 मार्च को एक सर्वदलीय बैठक बुलाने की भी घोषणा की है। एम के स्टालिन ने कहा कि भारत के चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत लगभग 40 राजनीतिक दलों को सर्वदलीय बैठक के लिए आमंत्रित किया गया है। उन्होंने राजनीतिक मतभेदों को दूर करते हुए एकता की अपील की। उन्होंने कहा, ''परिसीमन के नाम पर दक्षिणी राज्यों पर तलवार लटक रही है।'' राज्य सभी विकास सूचकांकों में अग्रणी था, लेकिन अब परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों को खोने का "खतरा" है क्योंकि यह प्रक्रिया राज्य की जनसंख्या पर आधारित होगी।

'दक्षिण के राज्यों को दंडित न करें'

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने केंद्र से अपील की है कि वह केवल जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों का निर्धारण करके दक्षिणी राज्यों को दंडित न करे। स्टालिन ने साथ ही चेतावनी दी कि इस तरह के प्रयास का विरोध किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर संसदीय क्षेत्र परिसीमन प्रक्रिया के जरिए राज्य के साथ ऐसा अन्याय किया गया तो तमिलनाडु और द्रमुक इसे स्वीकार नहीं करेंगे। द्रमुक के अध्यक्ष स्टालिन ने एक वीडियो संदेश में कहा, ‘‘हमारी मांग स्पष्ट है- केवल जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों का निर्धारण न करें। जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदारी भरे कदम उठाने वाले दक्षिणी राज्यों को दंडित न करें।’’ स्टालिन ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील करते हुए कहा, ‘‘हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम तमिलनाडु के कल्याण और भविष्य के साथ कभी समझौता नहीं करेंगे। हमें अपने राज्य के अधिकारों के लिए एकजुट होकर लड़ना चाहिए। तमिलनाडु इसका विरोध करेगा और जीतेगा।’’ 

स्टालिन के आरोपों पर अमित शाह का जवाब

हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने परिसीमन के मुद्दे पर स्टालिन के आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने स्टालिन पर परिसीमन को लेकर गलत सूचना अभियान फैलाने का आरोप लगाया। अमित शाह ने कहा कि जब परिसीमन यथानुपात आधार पर किया जाएगा तो तमिलनाडु सहित किसी भी दक्षिणी राज्य के संसदीय प्रतिनिधित्व में कमी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने लोकसभा में स्पष्ट कर दिया है कि परिसीमन के बाद कोई भी दक्षिणी राज्य एक सीट भी नहीं गंवाएगा तथा इस मामले में दक्षिणी राज्यों के लोगों के हित को सुनिश्चित किया जाएगा।

क्या होता है लोकसभा परिसीमन?

भारत निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार, परिसीमन का शाब्दिक अर्थ किसी देश या विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने का कार्य या प्रक्रिया है। "परिसीमन का कार्य एक उच्च-शक्ति निकाय को सौंपा गया है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है। भारत में, ऐसे परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है - 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 के तहत; 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के तहत; 1973 में परिसीमन अधिनियम, 1972 के तहत और 2002 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 के तहत। अगला परिसीमन 2026 के बाद होना है।

लोकसभा परिसीमन को लेकर क्या है विवाद?

परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अनुसार, अगला परिसीमन आयोग 2026 के बाद स्थापित किया जाना तय है। यह आयोग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने के लिए 2026 से जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करेगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या पूरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में समान रहेगी। दक्षिणी राज्यों में यह डर है कि निचले सदन में उनकी संख्या कम हो सकती है क्योंकि उन्होंने उत्तरी राज्यों के विपरीत जनसंख्या नियंत्रण के लिए नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि उत्तरी राज्यों की जनसंख्या दक्षिणी राज्यों की तुलना में अधिक है, इसलिए बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में लोकसभा सांसदों की संख्या में वृद्धि देखी जा सकती है।

क्या दक्षिण भारत के राज्यों में घट जाएंगी सीटें?

अमेरिकी थिंक-टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस 2019 द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2026 की जनसंख्या अनुमान के अनुसार लोकसभा की ताकत बढ़कर 846 हो जाएगी। इसके तहत उत्तर प्रदेश में 63 सीटों की वृद्धि के साथ यहां 143 सीटें हो सकती हैं। वहीं बिहार में सांसदों की संख्या मौजूदा 40 सीटों से बढ़कर 79 हो सकती है। इसी तरह, अन्य हिंदी बेल्ट वाले राज्यों जैसे- मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी 2026 तक उनकी जनसंख्या के अनुपात में वृद्धि देखी जाएगी। वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

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