Thursday, November 21, 2024
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क्या होता है 'कंगारू कोर्ट', बंगाल में महिला से बदसलूकी के बाद चर्चा में आया नाम

बीते कुछ दिनों से ऐसी घटनाएं सामने आई है कि एक बार फिर से देश में 'कंगारू कोर्ट' का नाम चर्चा में आ गया है। आइए जानते हैं कि कंगारू कोर्ट का मतलब क्या है और इसमें होता क्या है।

Written By: Subhash Kumar @ImSubhashojha
Updated on: July 03, 2024 13:53 IST
कंगारू कोर्ट।- India TV Hindi
Image Source : PEXELS कंगारू कोर्ट।

पश्चिम बंगाल में बीते दिनों महिला से सरेआम बदसलूकी या कहें कि तालिबानी सजा का वीडियो काफी वायरल हो रहा है। तृणमूल कांग्रेस का लोकल लीडर एक महिला और उसके साथी को सरेआम डंडे से बुरी तरह पीट रहा था। इस घटना के बाद एक बार फिर से देश में 'कंगारू कोर्ट' का नाम चर्चा में आ गया है। तो ये कंगारू कोर्ट होता क्या है? क्या इसका तालिबानी सजा से कोई कनेक्शन है? क्यों हमेशा इसे लेकर विरोध होते रहते हैं? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब हमारे इस एक्सप्लेनर के माध्यम से।

कंगारू कोर्ट होता क्या है?

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक, कंगारू कोर्ट बिना किसी ढंग के सबूतों के बिना किसी अपराध या दुराचार के संदिग्ध व्यक्ति का ट्रायल करता है। आम तौर पर इसे एक नकली अदालत माना जाता है जिसमें कानून और न्याय के सिद्धांत को दरकिनार किया जाता है। गैर-जिम्मेदार प्रक्रियाओं के द्वारा फैसले किए जाते हैं। कुल मिलाकर कहें तो कंगारू कोर्ट ऐसी कार्यवाही या फिर काम को प्रदर्शित करती है जिसमें पक्षपातपूर्ण और अन्यायपूर्ण तरीके से फैसला किया जाता है। 

कैसे होते हैं कंगारू कोर्ट के ट्रायल?

किसी भी लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश में कंगारू कोर्ट का होना खतरनाक माना जा सकता है। कंगारू कोर्ट को कई बार तालिबानी सजा से भी कंपेयर किया जाता रहा है। इसमें व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन कर के उसे गैर-कानूनी सजा दी जाती है। हालांकि, आपको बता दें कि कंगारू कोर्ट का एक और मीडिया ट्रायल को भी माना जाता है। 

भारत में क्या है कंगारू कोर्ट के उदाहरण?

भारत में अगर कंगारू कोर्ट के उदाहरणों की बात करें तो पश्चिम बंगाल में महिला के साथ हुई बदसलूकी की घटना भी कंगारू कोर्ट का उदाहरण है। इसके अलावा खाप पंचायतों को भी कंगारू कोर्ट बताया जाता रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में शालिशी सभा भी खाप की तरह है। 

मीडिया ट्रायल और कंगारू कोर्ट

कई बार मीडिया या सोशल मीडिया ट्रायल को देखें तो इसमें भी कंगारू कोर्ट की झलक दिखती है। ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी मामले में लोग पहले ही अपना फैसला सुना देते हैं। जबकि मामला अदालत के समक्ष होता है। कई बार मामला शुरू होने से पहले ही किसी को दोषी ठहरा दिया जाता है। कुछ साल पहले भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी कहा था कि मीडिया ट्रायल और कंगारू कोर्ट को न्याय के लिए बाधा और लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक बताया था। 

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