2024 लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने रह गए हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष ने एकजुट होकर लड़ने के लिए I.N.D.I.A अलायंस का गठन किया, लेकिन इसमें शामिल दलों के नेताओं में मतभेद लगातार सामने आते रहे हैं। विपक्षी एकजुटता को उस वक्त और तगड़ा झटका लगा, जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। कांग्रेस से सीट बंटवारे पर खींचतान के बीच ममता ने पहले ही बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे। ममता ने ऐसा क्यों किया? दिल्ली से लेकर बंगाल तक इसकी चर्चा हो रही, आइये जानते हैं इसके पीछे की कुछ वजहें?
ममता के प्रस्ताव को कांग्रेस ने नामंजूर किया
दरअसल, पश्चिम बगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं और यहां की सत्ता में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) है। कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे पर चल रही खींचतान के ममता बनर्जी ने गठबंधन से अलग बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया। इसे लेकर ममता ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस को सीट शेयरिंग का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने पहले ही इसे खारिज कर दिया, इसलिए उनकी पार्टी ने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। बता दें कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को 42 में से सिर्फ दो उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ने की पेशकश की थी, जिसे कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जीता था। हालांकि, कांग्रेस ने ममता के इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। गठबंधन से अलग होने के बारे में ममता बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस हाईकमान ने उनके सारे प्रस्ताव खारिज कर दिए, इसलिए उन्होंने अकेले लड़ने का मन बनाया।
'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' की बंगाल में एंट्री
ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान ऐसे समय में किया, जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' पश्चिम बंगाल में एंट्री करने वाली थी। यात्रा अब बंगाल में एंट्री कर चुकी है। राहुल गांधी ने ये मैसेज दिया है कि वो यहां I.N.D.I.A गठबंधन के अपने सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने नहीं, बल्कि उनके साथ खड़े होने के लिए आए हैं। बता दें कि विपक्षी गठबंधन में पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम और कांग्रेस जैसी प्रमु्ख पार्टी के अलावा गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (तमांग), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक और आरपीआई जैसी छोटी पार्टियां भी शामिल हैं। ऐसे में ममता बनर्जी के अकेले चुनाव लड़ने से बंगाल में मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। 2019 लोकसभा चुनाव में करीब 10 सीटें ऐसी थीं, जहां पर ममता के उम्मीदवार सीपीएम और कांग्रेस की वजह से बीजेपी के उम्मीदवार से हार गए थे।
किस पार्टी का कितना है वोट शेयर?
आंकड़ों पर गौर करें तो पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की तुलना में कहीं ज्यदा मजबूत स्थिति में टीएमसी है। 20219 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी और मजबूत हुई, तो वहीं कांग्रेस का वोट शेयर घटता जा रहा है। वहीं, बंगाल में बीजेपी का जनाधार जबरदस्त तरीके से बढ़ा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 13.5 फीसदी वोट मिले थे, जो 2014 के चुनाव में घटकर 9.7 फीसदी पर पहुंच गया। इसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 5.6 फीसदी पर हो गया। सीटों की बात करें तो 2009 में कांग्रेस ने 6 सीटें थीं। 2014 में घटकर 4 सीटों पर आ गई। इसके बाद 2019 में 2 पर सिमट गई।
कांग्रेस के उलट बंगाल में टीएमसी का वोट शेयर लगातार बढ़ा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 31.2 फीसदी वोट के साथ 19 सीटें जीती थीं। 2014 में टीएमसी ने 39.8 फीसदी वोट हासिल करते हुए 34 सीटें जीती। वहीं, 2019 में टीएमसी का वोट शेयर 43.3 फीसदी रहा, लेकिन सीटें घटकर 22 पर आ गईं।
वहीं, पश्चिम बंगाल में बीजेपी की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में बीजेपी का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा। इसके बाद से बीजेपी बंगाल की सियासत में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 6.1 फीसदी रहा, जो 2019 में बढ़कर 40.6 फीसदी हो गया। 2014 तक बीजेपी बंगाल में सिर्फ एक या दो सीटों तक सीमित थी, लेकिन 2019 के चुनाव में उसने टीएमसी को कड़ी टक्कर दी और 42 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की।
इसके अलावा सीपीएम का वोट शेयर 2009 में 33.1 फीसदी था, लेकिन 2019 में उसे महज 6.3 फीसदी वोट ही मिले। बंगाल में लेफ्ट फ्रंट जीरो सीट पर सिमट गई थी।
I.N.D.I.A अलायंस पर ममता ने उठाए सवाल
अयोध्या के नए राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर 'सद्भावना रैली' के समापन पर एक जनसभा को संबोधित करते हुए ममता ने I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल पार्टियों पर निशाना साधा था। ममता ने पूछा कि आज कितने नेताओं ने बीजेपी को आड़े हाथों लिया? कोई एक मंदिर गया और सोच लिया कि यह काफी है, लेकिन ऐसा नहीं होता है। ममता ने कहा, मैं ही केवल हूं जो आज मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिद गई, मैं लंबे समय से लड़ रही हूं। इस दौरान ममता ने कहा, मैंने I.N.D.I.A नाम का सुझाव दिया, लेकिन जब मैं मीटिंग में शामिल हुई तो देखा कि वामपंथी इस बैठक को कंट्रोल कर रहे हैं। ममता ने का कि मैं उन लोगों के साथ सहमत नहीं हो सकती, जिनके साथ मैंने 34 साल संघर्ष किया। मेरे पास पावर है इसलिए मैं बीजेपी से लड़ती हूं।
लेफ्ट के गठबंधन में होने से ममता नाराज
ममता बनर्जी बंगाल में इंडिया गठबंधन के भीतर लेफ्ट को साथ रखने पर राजी नहीं थीं। ममता ने कांग्रेस को इसे लेकर दो बार आगाह किया था। पहले खुद अभिषेक बनर्जी ने राहुल गांधी से मिलकर लेफ्ट को बाहर करने की मांग की थी और फिर सोनिया गांधी से मुलाकात में ममता ने इसे दोहराया था। सूत्रों के मुताबिक, टीएमसी का कहना था कि बंगाल में लेफ्ट का जो जनाधार था, वो बीजेपी में शिफ्ट हो चुका है। यही वजह है कि झारखंड-बंगाल बॉर्डर से सटे इलाकों में बीजेपी लगातार जीत हासिल कर रही है। ममता का कहना था कि बंगाल में गठबंधन कर सीपीएम को फिर से संजीवनी न दिया जाए और सीपीएम के जो भी बड़े जनाधार वाले नेता चुनाव लड़ना चाहते हैं, उसे कांग्रेस अपने सिंबल पर चुनाव लड़वाए।
बंगाल अध्यक्ष की कुर्सी से अधीर रंजन को हटाओ
ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी से भी खार खाए बैठी हैं। अधीर की टिप्पणी पर उन्होंने नाराजगी भी जताई थी। ममता का कहना था कि गठबंधन के ऐलान के बावजूद अधीर उनके खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। ममता ने मुंबई में I.N.D.I.A गठबंधन की हुई मीटिंग में भी अधीर के खिलाफ सार्वजनिक शिकायत की थी। इसके बावजूद अधीर ममता पर निशाना साधते रहे हैं।
सेंट्रल एजेंसियों की कार्रवाई का भी डर सता रहा
ममता बनर्जी के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले को सीपीएम और कांग्रेस ने सेंट्रल एजेंसियों की कार्रवाई का नतीजा भी बताया है। इन पार्टियों का कहना है कि सेंट्रल एजेंसी की कार्रवाई के डर से टीएमसी ने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे बीजेपी को फायदा हो। बात दें कि इस समय सेंट्रेल एजेंसी के रडार पर कोयल और पशु तस्करी केस में अभिष बनर्जी, शिक्षक भर्ती घोटाला में पार्थ चटर्जी, कोयला और पशु तस्करी में अनुब्रत मंडल, कोयला घोटाला में मलय घटक और राशन घोटाला में ज्योतिप्रिय मल्लिक हैं।