दुनिया में एक कहावत बहुत ज्यादा मशहूर है कि सफलता के शिखर के पहुंचना आसान है, लेकिन सफलता के शिखर पर टिके रहना बहुत मुश्किल और जो लोग सफलता के शिखर पर टिके रहते हैं वहीं विश्व विजेता कहलाते हैं। क्रिकेट की दुनिया में एक समय वेस्टइंडीज की टीम से खेलने में भी विरोधी टीमें कतराती थीं। उनके पास ऐसे खिलाड़ियों की भरमार थी, जो चंद गेंदों में ही मैच का रुख पलट देते थे। इसी वजह से टीम ने दो बार वनडे वर्ल्ड कप का खिताब भी जीता, लेकिन अब वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम गर्त में जा रही है। टीम लगातार दो वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई है। वेस्टइंडीज की हालत भारतीय हॉकी टीम जैसी हो गई है, जिसका सुनहरा इतिहास रहा है। आइए जानते हैं, इन दोनों टीमों के सुनहरे दौर के बारे में।
भारत ने हॉकी दुनिया पर किया है राज
भारतीय हॉकी टीम ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक फाइनल नीदरलैंड्स को 3-0 से हराया और पहले ओलंपिक में ही गोल्ड मेडल पर कब्जा कर लिया। इसी के साथ शुरुआत हुई एक सुनहरे दौरे की, जब टीम इंडिया ने ओलंपिक में लगातार 6 गोल्ड मेडल जीत लिए। भारतीय हॉकी टीम के पास धाकड़ खिलाड़ियों की फौज थी, जो विरोधी टीम को पलक झपकते ही धूल चटा देती थी।
एम्स्टर्डम के ओलंपिक में जीतने के बाद हर तरफ भारतीय हॉकी टीम के चर्चे होने लगे। टीम में ज्यादतर खिलाड़ी थे जो चंद मिनटों में ही गोल कर देते थे और इन खिलाड़ियों के सेनापति थे मेजर ध्यानचंद। उनकी कमान में भारतीय टीम ने उस दौर में हॉकी के मैदान पर राज किया। दुनिया की बड़ी से बड़ी टीमें भी भारत के सामने नहीं टिकती थीं। ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर माना जाने लगा, वह उस सूर्य की तरह थे, जिनकी रोशनी से कई युवा खिलाड़ियों ने प्रभावित होकर हॉकी के मैदान पर कदम रखा।
हॉकी में जीते 8 गोल्ड मेडल
1928 एम्स्टर्डम के बाद जब भारत ने 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 के ओलंपिक में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। भारतीय हॉकी टीम अभी तक ओलंपिक में 8 गोल्ड मेडल जीत चुकी है। हॉकी में भारत ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल्ड जीतने वाला देश है। 1980 का वह आखिरी ओलंपिक था जब भारत ने हॉकी में गोल्ड जीता था। अब 43 साल गुजरने के बाद भी गोल्ड मेडल से टीम इंडिया को गोल्ड दोबारा जीतने की आस है।
हॉकी में शुरू हुआ खराब दौर
शुरुआती दिनों में हॉकी का खेल घास के मैदान पर खेला जाता था, जिसमें ज्यादा संसाधनों की जरूरत नहीं पड़ती थी, जिस कारण साधारण परिवार के बच्चे भी हॉकी खेल लेते थे और इसी वजह से क्रिकेट से पहले भारतीय खेलों में हॉकी सिरमौर बनी थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ धीरे-धीरे भारत में हॉकी को कम तवज्जो दी जाने लगी। फिर इंडियन हॉकी फेडरेशन में खेल की जगह राजनीति के दांव पेंच चले जाने लगे। भारत में हॉकी के पतन का सबसे मुख्य कारण इसका घास के मैदान से बदलकर टर्फ के ग्राउंड पर खेला जाने लगा। भारतीय खिलाड़ियों को टर्फ के मैदान पर खेलने में बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्योंकि भारत में ऐसे टर्फ के ग्राउंड नहीं थे, जहां इंडियन प्लेयर्स प्रैक्टिस कर सकें।
80 के दशक में वेस्टइंडीज का था बोलबाला
जिस तरह से भारतीय हॉकी खेल में सूर्य की तरह चमकती थी, लेकिन फिर धीरे-धीरे उसकी रोशनी कम हो गई। उसी तरह से वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम 70 और 80 के दशक में 'बाहुबली' थी, जिसका क्रिकेट की दुनिया में एकछत्र राज था। वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के पास ऐसे खिलाड़ी थे, जो मैदान पर बिल्कुल हार नहीं मानते थे और उनके लिए जीत ही सब कुछ था। 80 का दशक वेस्टइंडीज की टीम के लिए स्वर्ण युग माना जाता है, तब टीम ने दुनिया के हर ग्राउंड में झंडा फहराया। वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम जैसे उस समय हिमालय की चोटी पर बैठी हुई थी और बाकी टीमें तलहटी में थीं। वेस्टइंडीज को हराना बहुत ही मुश्किल काम माना जाता था।
वेस्टइंडीज के पास क्लाइव लॉयड जैसा कप्तान, बेहतरीन ओपनर्स और दुनिया की सबसे खतरनाक माने जाने वाले बॉलर्स थे, जो किसी भी बल्लेबाजी आक्रमण की धज्जियां उड़ा सकते थे। वेस्टइंडीज के पास माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल, जोएल गार्नर और एंडी रॉबर्ट्स जैसे बॉलर्स विरोधी बल्लेबाजों के लिए काल बनते थे। इन गेंदबाजों की गेंदों को खेलना किसी के लिए भी आसान नहीं था। वहीं, टीम के पास विवियन रिचर्ड्स जैसा विस्फोटक बल्लेबाज भी था। वेस्टइंडीज की टीम ने साल 1975 और 1979 में वनडे वर्ल्ड कप का खिताब जीता था। इसके बाद वनडे वर्ल्ड कप 1983 में टीम फाइनल में पहुंची थी। जहां भारत ने उन्हें हरा दिया।
टीम के पास थे स्टार खिलाड़ी
वेस्टइंडीज क्रिकेट ने ब्रायन लारा जैसे प्लेयर्स दिए। लारा की कप्तानी में वेस्टइंडीज ने साल 2004 की चैंपियंस ट्रॉफी जीती थी। फिर वेस्टइंडीज के पास क्रिस गेल, शिवनारायण चंद्रपाल, ड्वेन ब्रावो और कीरोन पोलार्ड जैसे प्लेयर्स आए। इन्होंने क्रिकेट के मैदान पर अपना डंका बजाया। लेकिन साल 2010 के बाद से ही वेस्टइंडीज की टीम का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। साल 2000 के दशक में टी20 क्रिकेट ने दस्तक दे दी। वेस्टइंडीज के ज्यादातर प्लेयर्स दुनिया की भर की टी20 लीग्स में हिस्सा लेने लगे। इन टी20 लीग्स में वेस्टइंडीज के क्रिकेटर्स को मोटी रकम मिलने लगी। पैसे के लिए वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड और प्लेयर्स के बीच खींचतान होने लगी। फिर वेस्टइंडीज के कई खिलाड़ी नेशनल टीम को छोड़कर टी20 लीग्स में खेलने लगे और नेशनल टीम में स्टार खिलाड़ियों की कमी हो गई और जो खिलाड़ी टीम में आए वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। इसी वजह से वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम की हालत उस नाव जैसी हो गई, जो बीच मंझधार में अकेली फंसी हुई है, लेकिन नाव पर पतवार नहीं है।
वर्ल्ड कप के लिए नहीं कर पाई क्वालीफाई
वेस्टइंडीज की टीम टी20 वर्ल्ड कप 2022 और वनडे वर्ल्ड कप 2023 के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई। टीम को क्वालीफायर में हार का सामना करना पड़ा। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि वेस्टइंडीज वनडे वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई। कहां दो बार की विश्व विजेता वेस्टइंडीज, जिसके सामने कोई टीम टिक नहीं पाती थी और कहां ये वेस्टइंडीज जो क्वालीफायर खेलकर भी क्वालीफाई नहीं कर पाई। अब वेस्टइंजीज क्रिकेट बोर्ड को नए सिरे से सोचने, समझने और कार्य करने की जरूरत है।