Monday, December 23, 2024
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Explainer: पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में हुई हिंसा में 18 की मौत, आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच सजा कौन पा रहा?

पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई को हुए पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा की कई खबरें सामने आईं, जिसमें 18 लोगों की मौत हुई। ज्यादातर मौतें गोली लगने की वजह से हुई हैं। इसके अलावा बूथ कैप्चरिंग के भी कई मामले सामने आए हैं।

Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published : Jul 09, 2023 10:37 IST, Updated : Jul 09, 2023 10:47 IST
West Bengal violence
Image Source : PTI मालदा के नगरिया गांव में झड़प के बाद कानून व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश करते पुलिसकर्मी

कोलकाता: पश्चिम बंगाल के चुनावी इतिहास में 8 जुलाई 2023 का दिन एक काले अध्याय के रूप में लिखा जाएगा। पंचायत चुनाव के दौरान न केवल 18 लोगों की हत्या की खबर सामने आई है, बल्कि बूथ कैप्चरिंग ने पूरे राज्य की साख पर बट्टा लगा दिया है। कहीं कोई शख्स मतपेटी लेकर भागता दिखाई दिया तो कहीं मतपेटी पानी में तैरती दिखी। तोड़फोड़, आगजनी, हंगामा, मारपीट समेत तमाम विवादों ने इस चुनाव के ऊपर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है कि क्या पश्चिम बंगाल में सच में कानून व्यवस्था नियंत्रण में है? टीएमसी और बीजेपी के तमाम आरोप और प्रत्यारोप के बीच नुकसान तो जनता को ही उठाना पड़ रहा है, जो आज इस डर में है कि जब पंचायत चुनावों में ये हाल है तो साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में क्या होगा?

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने क्यों साधी चुप्पी?

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव के बीच ममता बनर्जी के ट्विटर अकाउंट को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने चुप्पी साध ली है। तमाम मुद्दों पर बीजेपी और केंद्र सरकार को घेरने वाली ममता ने पश्चिम बंगाल हिंसा पर एक भी ट्वीट नहीं किया और ना ही कोई वीडियो जारी किया। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर बूथ कैप्चरिंग के आरोप लग रहे हैं तो ममता क्यों चुप हैं?

बीजेपी नेता अमित मालवीय ने राज्य चुनाव आयोग और सीएम ममता को घेरा

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर कहा, 'स्ट्रांग रूम तक पहुंचने से पहले ठेकेदारों और स्थानीय प्रशासन की मदद से टीएमसी कार्यकर्ताओं को कई जगहों पर मतपेटियां बदलते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। भाजपा सांसद खगेन मुर्मू, स्थानीय विधायक और जिला परिषद उम्मीदवार ने उन्हें गाजोल (हाजी नाकू एमडी हाई स्कूल) और मालदा में ऐसा करते हुए पकड़ा। इसी तरह की घटनाएं पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर सहित अन्य जगहों पर भी दर्ज की गईं। एसईसी (स्टेट इलेक्शन कमीशन) ने ममता बनर्जी के साथ मिलकर इन चुनावों को एक तमाशा बना दिया है।'

बीएसएफ के डीजी ने राज्य चुनाव आयोग पर लगाए गंभीर आरोप

बीएसएफ के एक सीनियर अधिकारी ने रविवार को कहा कि संवेदनशील मतदान केंद्रों पर बीएसएफ के बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने ऐसे बूथों की कोई जानकारी केंद्रीय सुरक्षा बलों को नहीं दी। बीएसएफ के डीआईजी एसएस गुलेरिया ने कहा कि बीएसएफ ने राज्य चुनाव आयोग को कई पत्र लिखकर संवेदनशील मतदान केंद्रों के बारे में जानकारी मांगी, लेकिन 7 जून को छोड़कर कोई अन्य जानकारी नहीं दी गई। उन्हें केवल ऐसे बूथों की संख्या के बारे में बताया गया था, लेकिन उनकी लोकेशन के बारे में कुछ नहीं बताया गया था। 

बीजेपी की दोबारा चुनाव की मांग, गृहमंत्री शाह ने ममता सरकार से रिपोर्ट मांगी

बीजेपी ने मांग की है कि जिन जगहों पर हिंसा और बूथ कैप्चरिंग हुई है, वहां पर दोबारा चुनाव कराया जाए। वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने इस हिंसा को लेकर ममता सरकार से रिपोर्ट मांगी है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने भी चुनावी हिंसा पर चिंता जाहिर की है।

पश्चिम बंगाल में क्यों होती है इतनी हिंसा?

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब राजनीतिक वजहों से हिंसा की खबरें पश्चिम बंगाल से सामने आई हों। इससे पहले भी कई बार अलग-अलग मौकों पर राज्य में हिंसा हुई है। बीजेपी अक्सर इस मुद्दे पर टीएमसी को घेरती है क्योंकि कई बीजेपी कार्यकर्ताओं की भी इस हिंसा में मौत हुई है और कई बार टीएमसी ने भी अपने कार्यकर्ताओं की जान गंवाई है। लेकिन सवाल ये है कि इस हिंसा का मकसद क्या है? आखिर हिंसा के जरिए राज्य में कौन अपना राज स्थापित करना चाहता है? वो कौन लोग हैं, जो इस तरह की हिंसा की पूरी प्लानिंग करते हैं और हर बार मामला सिर्फ एक सवाल तक सीमित रह जाता है कि जिम्मदार कौन हैं? सवाल ये भी है कि लगातार हो रही इन हिंसा की घटनाओं पर ममता सरकार ने अब तक क्या कार्रवाई की है?

2003 के पंचायत चुनाव में भी हुई थी हिंसा, 76 लोगों ने गंवाई थी जान 

  1. पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव में हिंसा का पुराना इतिहास रहा है। हर बार चुनावों में लोगों की मौत एक परंपरा बन गई है। पार्टियां हर बार बस ये कह देती हैं कि इस बार पिछले चुनाव की तुलना में कम हिंसा हुई है। 
  2. साल 2003 के पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा में 76 लोग मारे गए थे। केवल वोटिंग वाले दिन ही 40 लोग मारे गए थे।
  3. साल 2013 में हुए पंचायत चुनाव में 39 लोगों की हिंसा की वजह से मौत हुई थी। 

सवाल जस का तस बना हुआ है। हर बार चुनाव में कोई पार्टी जीत जाती है और कोई हार जाती है लेकिन हिंसा के लंबे इतिहास के बावजूद इस पर लगाम लगाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जाता। फर्क केवल उन लोगों के परिजनों को पड़ता है, जिनका व्यक्ति इस हिंसा की आग में अपनी जान गंवा चुका है। पार्टियों की आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच सजा केवल जनता पा रही है। 

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