नई दिल्ली: छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी अपने सीएम के नाम का ऐलान कर चुकी है। तीनों ही राज्यों में बीजेपी ने जो फैसला लिया, वो राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया के लिए काफी चौंकाने वाला रहा। पहले से स्थापित राजनीतिक दिग्गजों को दरकिनार करते हुए बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में ऐसे चेहरों को मौका दिया, जो जमीन पर काम करने के लिए जाने जाते हैं।
बीजेपी ने उस पैटर्न को तोड़ा जिसमें शक्ति प्रदर्शन और मीडिया हाइप क्रिएट करने को ही जनता का समर्थन प्राप्त होना माना जाता था। बीजेपी ने अपने इस फैसले से ये साबित कर दिया कि कोई भी बड़ा फैसला अब व्यक्ति विशेष के आधार पर नहीं होगा बल्कि पार्टी हित को आगे रखकर होगा।
मध्य प्रदेश में शिवराज के स्थापित राज को देखने के बाद भी बीजेपी ने एक ऐसे चेहरे को राज्य का सीएम बनाया, जो लोकसभा चुनावों में बीजेपी के गणित को दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभा सकता है। यही हाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ का भी है, जहां बीजेपी ने ऐसे चेहरों को सत्ता की चाबी सौंपी, जो सीएम पद की रेस में कहीं भी नहीं दिख रहे थे।
छत्तीसगढ़ में विष्णु कैसे हर लेंगे बीजेपी का सारा दर्द?
छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने जैसे ही आदिवासी नेता विष्णु देव साय को सीएम बनाने का ऐलान किया, वैसे ही ये तस्वीर साफ हो गई कि पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों के गणित को अभी से सुलझाने में जुट गई है। यहां बीजेपी ने ओबीसी और सामान्य वर्ग से 2 डिप्टी सीएम भी बनाए। यानी 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक तीर से आदिवासी, ओबीसी और सामान्य वर्ग का वोट भेदने की कोशिश है।
दरअसल बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज की आबादी करीब 34 फीसदी है, ऐसे में सीएम के रूप में आदिवासी नेता को आगे रखकर बीजेपी इन 34 फीसदी वोटों को साधने में जुट चुकी है, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में मिल सकता है। इसके अलावा ओबीसी और सामान्य वर्ग के डिप्टी सीएम बनाकर इनका वोट पाने का रास्ता भी साफ हो गया है। ये पूरी तरह से ऐसा पावर गेम है, जिसमें सभी वर्गों को साधने की कोशिश की गई है।
मध्य प्रदेश में मोहन के जरिए जनता को मोहित करने का दांव?
मध्य प्रदेश में सीएम पद की रेस में शिवराज के अलावा कई नाम थे लेकिन जब मोहन यादव के नाम का ऐलान हुआ तो सभी हैरत में पड़ गए। ऐसा इसलिए था क्योंकि मोहन यादव सीएम पद की रेस में ही नहीं थे। ऐसे में बीजेपी ने ये फैसला क्यों लिया होगा? ये सवाल सभी के मन में था।
जानकार मानते हैं कि साल 2024 में लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने ये फैसला किया है क्योंकि इससे मध्य प्रदेश, हरियाणा और यूपी-बिहार में यादव वोट सधेंगे। केवल मध्य प्रदेश में ही ओबीसी की आबादी करीब 51 फीसदी है। वहीं मोहन को आगे रखकर बीजेपी यूपी-बिहार में ये संदेश देना चाहती है कि वह यादवों के बारे में भी सोचती है। अभी तक यूपी-बिहार में सपा और आरजेडी यादव वोटों पर कब्जा जमाकर बैठती थी लेकिन बीजेपी का ये दांव लोकसभा चुनावों में इन दोनों पार्टियों को नुकसान पहुंचा सकता है और उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकता है।
यहां ये भी ध्यान रखना जरूरी है कि यूपी-बिहार में यादवों की आबादी 10 से 12 प्रतिशत है। हरियाणा में भी यादवों की अच्छी-खासी आबादी है। ऐसे में मोहन यादव को सीएम बनाकर पार्टी मध्य प्रदेश, हरियाणा, यूपी और बिहार में एक बड़े वोट बैंक को भेदने की तैयारी में दिख रही है।
इसके अलावा मध्य प्रदेश में मोहन को सीएम बनाकर बीजेपी ने ये संदेश भी दिया कि पार्टी में भले ही आप कितने भी बड़े कद के नेता हों, लेकिन पार्टी का फैसला सर्वोपरि है। जो भी पार्टी के हित में होगा, उस फैसले को बिना किसी की परवाह किए लिया जाएगा। शिवराज को सीएम न बनाना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।
भजन लाल शर्मा से पार्टी को क्या फायदा?
राजस्थान में बीजेपी ने भजन लाल शर्मा के नाम पर अपनी मुहर लगा दी। हैरानी की बात ये है कि भजन लाल साल 2023 के विधानसभा चुनाव में जीतकर पहली बार विधायक बने हैं। वह संगठन में तो लंबे समय से अहम भूमिका निभा रहे थे लेकिन विधायक पहली बार ही बने। ऐसे में उनको सीएम बनाना बड़े-बड़े विश्लेषकों के भी गले नहीं उतरा।
हालांकि राजनीतिक गणित की बात करें तो भजन लाल शर्मा ब्राह्मण समाज से आते हैं। यानी पार्टी का संदेश साफ है कि वह ब्राह्मणों का सम्मान करती है। दरअसल 19 मार्च को राज्य में एक ब्राह्मण महापंचायत हुई थी, जिसमें ब्राह्मण समाज के लोगों ने कहा था कि उनकी संख्या राज्य में 85 लाख से ज्यादा है लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दल उन्हें नेतृत्व करने का मौका नहीं देते।
इस महापंचायत में बीजेपी के तमाम बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए थे। ऐसे में बीजेपी ने अपने सीएम पद के फैसले से ब्राह्मणों की नाराजगी भी दूर कर दी और 2024 के चुनावों के लिए सवर्णों के वोट पाने का रास्ता भी साफ कर दिया।
यहां ये भी जानना जरूरी है राजस्थान की करीब 50 सीटें ऐसी हैं, जहां ब्राह्मण वोट काफी प्रभावित करता है। इस बार बीजेपी से कई ब्राह्मण चेहरे जीतकर भी आए हैं। ऐसे में सवर्णों को सीएम फेस देकर लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखने का काम शुरू हो चुका है।