सीरिया में 50 साल बाद तानाशाही खत्म हो चुकी है और यहां के लोगों को देश में लोकतंत्र की उम्मीद है। हालांकि, सीरिया के लिए यह सफर आसान नहीं होने वाला। सीरिया से पहले भी कई देश तानाशाही से छुटकारा पा चुके हैं, लेकिन लंबे समय बाद भी वहां लोकतंत्र स्थापित नहीं हुआ है। सीरिया में भी दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हालात कुछ ऐसे ही रहे हैं। यहां हम 10 ऐसे देशों के बारे में बता रहे हैं, जहां सालों पहले तानाशाही खत्म हो चुकी है। आइए जानते हैं, अब वहां के हालात कैसे हैं?
लीबिया
लीबिया को 2011 में लंबे समय के बाद मुअम्मर गद्दाफी की तानाशाही से मुक्ति मिली, लेकिन 13 साल बाद भी यहां सही मायने में लोकतंत्र नहीं आया है। लीबिया फिलहाल कई हिस्सों में बंटा हुआ है। अलग-अलग गुट के लोग देश में शासन करने की कोशिश कर रहे हैं और आपस में भिड़ रहे हैं। यहां अभी भी अलग-अलग नेताओं के बीच लड़ाई चल रही है और जनता इसमें पिस रही है। मानवाधिकारों का हनन हो रहा है, लेकिन अब तक यह देश लोकतंत्र की राह नहीं खोज पाया है।
मिस्र
2011 में होस्नी मुबारक के सत्ता से बेदखल होने के बाद मिस्र को भी लीबिया के जैसे हालातों का सामना करना पड़ा है। यहां लोकतांत्रिक स्थापित होने की उम्मीद मुस्लिम ब्रदरहुड के तहत मोहम्मद मुर्सी के राष्ट्रपति बनने से खत्म हो गई, जिसके तुरंत बाद अब्देल फत्ताह अल-सिसी के नेतृत्व में सैन्य शासन आया। मिस्र की मौजूदा स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अल-सिसी शासन की लगातार आलोचना हो रही है। मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। लोगों के अंदर सरकार के प्रति आक्रोश है, लेकिन अल-सिसी सत्ता पर बने रहने के लिए लोगों की आवाज दबा रहे हैं।
इराक
इराक की कहानी भी सीरिया के लिए चेतावनी भरी है। 2003 में सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल करने के बाद इराक एक मुश्किल दौर से गुजरा। देश राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिक हिंसा और भ्रष्टाचार से जूझ रहा है। स्थिर और समृद्ध इराक का सपना अभी भी कई लोगों की पहुंच से बाहर है।
सूडान
2019 में तानाशाह उमर अल-बशीर को उखाड़ फेंकने के बाद सूडान में शांति की उम्मीद थी। हालांकि, देश जल्द ही एक बार फिर संघर्ष में फंस गया। यहां सेना के अलग-अलग गुट सत्ता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस आंतरिक कलह के चलते देश में मानव अधिकारों का जमकर हनन हुआ। इससे सूडान में स्थिरता और शांति की राह लगातार मुश्किल होती चली गई।
वेनेज़ुएला
वेनेजुएला का नाम भी उन देशों में शामिल है, जो तानाशाही से छुटकारा पाने में सफल रहे, लेकिन लोकतंत्र तक का रास्ता नहीं तय कर पाए। 2019 में, निकोलस मादुरो की तानाशाही खत्म करने की कोशिश की गई, लेकिन यह कोशिश सफल नहीं हुई। मादुरो अभी भी सत्ता में बने हुए हैं और देश गंभीर आर्थिक पतन से जूझ रहा है। यहां बड़े पैमाने पर लोग पलायन कर रहे हैं। मादुरो की कोशिश अपनी सत्ता बचाए रखने की है और इस वजह से लोगों का शोषण हो रहा है।
यमन
साल 2011 में यमन को तानाशाह अली अब्दुल्ला सालेह से मुक्ति मिली, लेकिन यहां के लोगों की किस्मत नहीं बदली। तानाशाही खत्म होने के बाद हूती विद्रोहियों का समूह सक्रिय हुआ और अब तक यहां पूरी तरह से लोकतांत्रिक सरकार का गठन नहीं हो पाया है। एक दशक से यमन गृहयुद्ध में उलझा हुआ है। इसके चलते देश में लगातार हिंसा हो रही है। मानव अधिकारों का हनन और तबाही का दौर जारी है, जिसका समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।
ट्यूनीशिया
ट्यूनीशिया एकमात्र ऐसा देश है, जिसने तानाशाही से मुक्ति पाकर लोकतंत्र हासिल किया है। इस अरब देश को जनवरी 2011 में तानाशाह जीन अल अबिदीन बेन अली से मुक्ति मिली और देश में लोकतंत्र स्थापित हुआ। ट्यूनीशिया में अभी भी राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है और देश आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहा है, लेकिन पड़ोसी देशों की तुलना में यहां लोकतांत्रिक की स्थिति बेहतर है। ट्यूनिशिया ने समावेशी सरकार की दिशा में कुछ प्रगति की है और आने वाले समय में यहां के हालात बेहतर हो सकते हैं।
अफगानिस्तान
अफगानिस्तान का हाल उन देशों में सबसे बुरा है, जिन्होंने तानाशाही को खत्म कर लोकतंत्र हासिल करने की कोशिश की है। 2001 में तालिबान के पतन के बाद यहां अमेरिका समर्थित लोकतांत्रिक सरकारें चलती रहीं, लेकिन जब 2021 में तालिबान सत्ता में वापस आया, तो अफगानिस्तान आर्थिक रूप से ढह गया। यहां के लोग सही मायन में आजाद नहीं हैं। खासकर महिलाओं की आजादी छिन चुकी है। देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और यहां का विकास दशकों पीछे चला गया है।
हैती
हैती में तानाशाहों को उखाड़ फेंकने के दो प्रयास हुए, 1991 में जीन-क्लाउड डुवेलियर और 2004 में जीन-बर्ट्रेंड एरिस्टाइड, जिसके बाद कई वर्षों तक यहां राजनीतिक अस्थिरता रही। कई सरकारों के स्थापित होने के बावजूद यहां लोकतंत्र नहीं आ पाया है। अलग-अलग गैंग के लोग हिंसा कर रहे हैं और मानव अधिकारों का हनन हो रहा है। देश में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है और राजनीतिक अराजकता लोगों की परेशानी बढ़ा रही है।
सीरिया के सामने बड़ी चुनौती
सीरिया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लोकतंत्र हासिल करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक इस देश में लोकतंत्र नहीं आ पाया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहां तख्तापलट हुआ और देश आजाद हो गया, लेकिन यहां कोई स्थिर सरकार नहीं बन सकी। सीरिया में कई अल्पकालिक सरकारें रहीं और 1970 में हाफिज अल-असद ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। अल-असद के बाद उनके बेटे बशर अल-असद यहां के तानाशाह बने। 2011 में उन्हें हटाने की कोशिशों में पूरे देश में गृहयुद्ध शुरू हो गए। ईरान और रूस की मदद से असद सत्ता में बने रहे, लेकिन गृहयुद्ध के कारण पूरा देश तबाह हो गया। हाल ही में, सशस्त्र समूह HTS (हयात तहरीर अल-शाम) ने बशर अल-असद को सत्ता से उखाड़ फेंका और एक कार्यवाहक सरकार का गठन किया।
नए नेताओं ने सीरिया के लोगों से एक नई सुबह का वादा किया है, लेकिन इतिहास गवाह है कि तानाशाही से लोकतंत्र का सफर कभी भी आसान नहीं रहा है। चुनौतियों के बावजूद, सीरिया के पास अभी भी पुनर्निर्माण का मौका है। मजबूत सरकार का अभाव, बाहरी हस्तक्षेप और गुटबाजी देश की प्रगति में देरी कर सकती है। ऐसे में सीरिया का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है, लेकिन यहां के लोग मजबूत इच्छा शक्ति के दम पर सभी चुनौतियों पर पार पाते हुए एक शांतिपूर्ण, समृद्ध राष्ठ्र का निर्माण कर सकते हैं।