नई दिल्ली: संसद में मानसून सत्र के लगातार चौथे दिन मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर हंगामा जारी रहा। विपक्षी दल संसद में मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा कराने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान की मांग कर रहे हैं। वहीं इस बीच खबरों के मुताबिक विपक्ष कल मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगा। विपक्षी गठबंधन INDIA की बैठक में अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला लिया गया।
दरअसल, संसदीय प्रणाली में कुछ ऐसे टूल्स हैं जिसका इस्तेमाल विपक्ष सरकार को घेरने के लिए करता है। इसमें स्थगन प्रस्ताव एक बड़ा तरीका होता है जिसके जरिए सरकार को बाध्य किया जाता है कि वो संसद सभी विधायी कार्यों को छोड़कर उस मुद्दे पर चर्चा कराए जिसक लिए स्थगन प्रस्ताव दिया गया है। वहीं ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए भी संसद में विभिन्न मु्द्दे उठाए जाते हैं। लेकिन सबसे बड़ा हथियार होता है अविश्वास प्रस्ताव। सबसे पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है और यह कब और कैसे लाया जाता है।
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव, कब लाया जाता है
दरअसल, संसदीय प्रणाली में नियम 198 के तहत यह व्यवस्था दी गई है कोई भी सांसद सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस लोकसभा अध्यक्ष के दे सकता है। ठीक ऐसी ही व्यवस्था राज्यों में मामले में विधानसभा में की गई है। केंद्र या राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास होने का मतलब है कि अब मंत्री परिषद ने सदन में अपना विश्वास खो दिया है। सदन में बहुमत उसके पक्ष में नहीं है। ऐसी स्थिति में सरकार गिर जाती है। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट को इस्तीफा देना पड़ता है।
अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया
संसदीय प्रणाली में यह व्यवस्था है कि किसी भी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर वाली कॉपी लोकसभा अध्यक्ष को दी जाती है। सांसदों के हस्ताक्षर से युक्त अविश्वास प्रस्ताव सुबह 10 बजे तक स्पीकर के पास पहुंच जाना चाहिए। अगर 10 बजे के बाद यह प्रस्ताव स्पीकर के पास पहुंचता है तो वे अगले दिन इस पर विचार करते हैं।
50 सांसदों का समर्थन जरूरी
अगर अविश्वास प्रस्ताव पर 50 सांसदों का समर्थन नहीं मिल पाता है तो स्पीकर उस पर विचार नहीं करते हैं। अगर 50 सांसदों का समर्थन मिल जाता है तो फिर स्पीकर को 10 दिनों के अंदर सदन की बैठक बुलाकर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करानी होती है। इस चर्चा के दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों सदन में अपनी बात रखते हैं। खास बात यह होती है कि इसमें प्रधानमंत्री को सदन में चर्चा का जवाब देना पड़ता है।
सरकार पर दबाव बनाना मकसद
विपक्षी दल इस कदम के जरिए सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं। अमूमन विपक्ष की कोशिश होती है कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान वह सरकार को अलग-थलग साबित करे या फिर उसे गिरा दे। लेकिन मौजूदा स्थिति ऐसी नहीं है। वर्तमान सरकार के आंकड़ों के मामले में विपक्ष पर बहुत भारी है। विपक्ष की मांग है कि प्रधानमंत्री मणिपुर के मुद्दे पर संसद में जवाब दें। लेकिन विपक्ष को अभी तक अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिल पाई है। माना जा रहा है कि अब विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव को एक टूल के रूप में इस्तेमाल करेगा। इससे प्रधानमंत्री को संसद में आकर चर्चा का जवाब देना पड़ेगा।
अबतक 27 अविश्वास प्रस्ताव
देश के संसदीय इतिहास में अब तक कुल 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं। इसमें तीन बार सरकारें गिरी हैं और प्रधानमंत्री को इस्तीफा भी देना पड़ा है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सबसे ज्यादा 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है लेकिन हर बार वह अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवे गौड़ा और वीपी सिंह की सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में हार गई। लिहाजा उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
संसदीय इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव
संसदीय इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में आया था। 1963 में जेबी कृपलानी ने इस प्रस्ताव को रखा था। उस वक्त नेहरू जी की सरकार सदन में जीत गई थी। अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 62 और विरोध में 347 वोट पड़े थे।
मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव 1918 में लाया गया था। लेकिन यह प्रस्ताव गिर गया था। मोदी सरकार ने आसानी से सदन में बहुमत साबित कर दिया था। इस दौरान संसद में 11 घंटे तक बहस चली थी जिसका जवाब पीएम मोदी ने दिया था।