Thursday, November 21, 2024
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Explainer: उत्तर कोरिया का बड़ा दावा, मिसाइल के लिए ठोस फ्यूल इंजन का किया टेस्ट, जानें क्या है खासियत?

उत्तर कोरिया लगातार अपने अपनी रक्षा क्षमताओं को ​तेजी से विकसित करता जा रहा है। इसी दिशा में उसने एक और बड़ा कदम उठाया है। उत्तर कोरिया ने दावा किया है कि उसने मिसाइल के लिए जरूरी ठोस ईंधन यानी सॉलिड फ्यूल आधारित इंजन का सफल परीक्षण कर लिया है। जानिए क्या है यह तकनीक?

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: December 18, 2023 14:29 IST
उत्तर कोरिया: मिसाइल के लिए ठोस फ्यूल इंजन का किया टेस्ट- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV उत्तर कोरिया: मिसाइल के लिए ठोस फ्यूल इंजन का किया टेस्ट

North Korea on Solid Fuel Technology: उत्तर कोरिया ने मध्यम दूरी की मिसाइलों के लिए ठोस ईंधन आधारित इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इस बात का दावा उत्तर कोरिया ने बुधवार को किया है। किम जोंग अपने प्रतिस्पर्धी देशों से मुकाबले के लिए लगातार परमाणु क्षमता वाले हथियार विकसित करने में जुटा है। उत्तर कोरिया की आधिकारिक न्यूज एजेंसी की ओर से कहा गया कि देश के विज्ञानियों को पहले और दूसरे चरण के इंजनों का परीक्षण करने में सफलता प्राप्त की है। हालांकि न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट में यह साफ नहीं किया गया है कि नई मिसाइल प्रणाली के कब तक पूरा होने की संभावना है। उत्तर कोरिया के पास मौजूद मध्यम दूरी की मिसाइलों में वर्तमान में लिक्विड फ्यूल पर आधारित ईंधन का प्रयोग होता है। इसे लॉन्च करने से पहले फ्यूल भरने की जरूरत पड़ती है। क्योंकि इसमें ईंधन भरकर इसे लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता है।

क्या है ठोस ईंधन की खायिसत

ठोस ईंधन पर आधारित मिसाइलों को लॉन्च करना अधिक आसान होता है। साथ ही इसे एक से दूसरी जगह ले जाने में भी आसानी होती है। ठोस-ईंधन मिसाइलों को लॉन्च से तुरंत पहले ईंधन भरने की आवश्यकता नहीं होती है, इन्हें संचालित करना अक्सर आसान और सुरक्षित होता है और कम लॉजिस्टिक समर्थन की आवश्यकता होती है। इससे उन्हें तरल-ईंधन हथियारों की तुलना में पता लगाना कठिन और अधिक जीवित रहने योग्य बना दिया जाता है। अमेरिका स्थित कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के वरिष्ठ फेलो अंकित पांडा ने कहा, "संकट के समय में ये क्षमताएं बहुत अधिक प्रतिक्रियाशील हैं।"

क्या है सॉलिड फ्यूल टेक्नोलॉजी?

ठोस ईंधन की तकनीक में ठोस प्रणोदकों (प्रोपेलैंट) में ईंधन और ऑक्सीकारक का मिश्रण होता है। एल्यूमीनियम जैसे धातु के पाउडर अक्सर ईंधन की तरह काम करते हैं और एल्यूमीनियम परकोलेट जो परक्लोरिक एसिड और अमोनिया का नमक है, सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाने वाला ऑक्सीकारक होता है। ईंधन और ऑक्सीकारक को आपस में मिलाया जाता है, जिससे रबड़ जैसा पदार्थ बनता है और फिर उसे धातु के आवरण में रख दिया जाता है।

 मिसाइल के लिए ठोस फ्यूल इंजन का किया टेस्ट

Image Source : REUTERS
मिसाइल के लिए ठोस फ्यूल इंजन का किया टेस्ट

कैसे काम करता है सॉलिड फ्यूल?

सॉलिड फ्यूल या ठोस ईंधन की खास बात यही होती है कि जब वजह जलता है तो अमोनियम परक्लोरेट जैसे ऑक्सीकारक एल्यूमीनियम के साथ मिलकर बहुत ज्यादा मात्रा में ऊर्जा और तापमान (2750 डिग्री सेल्सियस) पैदा करता है। इस कारण एक भारी धक्के के साथ मिसाइल को लॉन्च पैड से उठने की क्षमता पैदा हो जाती है। इसकी सबसे खास बात यह होती है कि इसकी तुलना में तरल तकनीक में इससे ज्यादा जटिल तकनीक और अतिरिक्त भार लगता है।

वह तकनीक किसके पास है? 

ठोस ईंधन तकनीक हमें चीन द्वारा विकसित आतिशबाजी के सदियों पुराने इतिहास की ओर ले जाती है। वैसे इस तकनीक में 20वीं सदी के मध्य से तेजी से प्रगति हुई। यह तब हुआ, जब अमेरिका ने अधिक शक्तिशाली प्रोपेलेंट्स यानी प्रमोदक विकसित किए। रूस यानी तब के सोवियत संघ ने सोवियत संघ ने अपना पहला ठोस-ईंधन ICBM, RT-2, 1970 के दशक की शुरुआत में मैदान में उतारा, उसके बाद फ़्रांस का स्थान आया। एस3 का विकास, जिसे एसएसबीएस भी कहा जाता है, एक मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल है। चीन ने 1990 के दशक के अंत में ठोस-ईंधन ICBM का परीक्षण शुरू किया। दक्षिण कोरिया ने शुक्रवार को कहा कि उसने पहले ही ठोस-प्रणोदक बैलिस्टिक मिसाइल टेक्नोलॉजी में प्रगति कर ली है।

क्या है भारत की स्थिति

भारत इस समय अग्नि 5 मिलाइल में ठोस ईंधन का इस्तेमाल कर सकता है। इसके अलावा भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (डीआरडीओ) द्वारा विकसित सॉलिड फ्यूल्ड डक्टेड रैमजैट नाम का मिसाइल प्रोपेलैंट सिस्टम पर काम चल रहा है, जिसके कुछ सफल परीक्षण भी हो चुके हैं। इसके अलावा अस्त्र और के-100 जैसी मिलाइलों में भी ठोस ईंधन का उपयोग होता है।

ठोस ईंधन टेक्नोलॉजी को लेकर आगे क्या?

उत्तर कोरिया ने कहा कि उसके नए ठोस-ईंधन आईसीबीएम, ह्वासोंग-18 के विकास को "मौलिक रूप से बढ़ावा" दिया जाएगा। दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय ने परीक्षण को कम महत्व देने की कोशिश करते हुए कहा कि टेक्नोलॉजी में महारत हासिल करने के लिए उत्तर कोरिया को "अतिरिक्त समय और प्रयास" की आवश्यकता होगी। उत्तर कोरिया को यह सुनिश्चित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है कि बूस्टर का व्यास बड़ा होने पर इतनी बड़ी मिसाइल टूट न जाए। हालांकि ह्वासोंग-18 ऐसा नहीं कर सकता है उन्होंने कहा, 'गेम चेंजर' बनें, यह संभवतः संघर्ष के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की गणना को जटिल बना देगा।

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