वक्फ एक्ट में संशोधन बिल के सभी पहलुओं पर जांच कर रही JPC के सदस्य शुक्रवार को अहमदाबाद में थे। गुजरात सरकार के साथ-साथ JPC के सदस्य गुजरात वक्फ बोर्ड और अन्य पक्षों से मिले। गुजरात की स्थिति की समीक्षा की। इस बीच समिति के सदस्य और AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी तथा गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी के बीच वक्फ संशोधन के कई पहलुओं को लेकर तीखी बहस हो गई।
गुजरात सरकार ने 5 उदाहरण सबके सामने रखे
राज्य सरकार ने अपने प्रेजेंटेशन में बताया की किस प्रकार से मौजूदा वक्फ प्रावधानों का गुजरात वक्फ बोर्ड द्वारा दुरूपयोग हो रहा है? गुजरात सरकार ने इसके 5 उदाहरण भी सदस्यों के सामने रखे। साथ ही बताया की मौजूदा वक्त एक्ट के अनुच्छेदों में संशोधन से सबको सामान अवसर और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी।
ओवैसी ने जताई आपत्ति
ओवैसी ने इस पर आपत्ति दर्ज करते हुए बताया की मुख्य मुद्दा धार्मिक स्वतंत्रता के हनन का है। इन अनुच्छेदों में संशोधन से मुस्लिमों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा। इस पर गुजरात के गृह मंत्री हर्ष संघवी ने कहा की सवाल किसी एक धर्म की धार्मिक स्वतंत्रता का नहीं होना चाहिए बल्कि सभी धर्मों के नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का होना चाहिए।
किस लिए बने ट्राइब्यूनल?
जो उदाहरण गुजरात सरकार ने समिति के समक्ष रखे उन पर ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी। ओवैसी ने कहा की जहां तक सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के केस का सवाल है तो वक्फ ट्राइब्यूनल से कॉर्पोरेशन को उसके हक में फैसला मिला ही ना, अगर ट्रस्ट ने गलत क्लेम किया भी तो ट्राइब्यूनल किस लिए बने हैं?
असंतुलित पावर्स को बैलेंस करना जरुरी- सिंघवी
इस पर हर्ष संघवी ने ओवैसी को बताया की इस गलत क्लेम को खारिज करवाने के लिए सिर्फ ट्राइब्यूनल को ही पावर क्यों? जो की एक तरफा सुनवाई करने का भी अधिकार रखती है। साथ ही दो बार सुनवाई का खर्चा जो कॉर्पोरेशन द्वारा हुआ वो लोगों के टैक्स के पैसे की बर्बादी नहीं तो और क्या है? सिंघवी ने कहा कि इन्हीं असंतुलित पावर्स को बैलेंस करना जरुरी है।
सरकार ने वक्फ बोर्ड की JPC के सामने खोली पोल
ओवैसी ने आगे भरुच जिले के किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि एक कर्मचारी की जालसाजी को वक्फ की जालसाजी नहीं माना जा सकता। हर्ष संघवी का कहना था की उन्होंने कब कहा की गलती वक्फ बोर्ड की है। इसका अर्थ ये भी नहीं अब दशकों बाद उस संपत्ति को उन लोगों से से छीन ली जाए, जिन्होंने उसे उस समय उन धोखेबाजों से इस जमीन को खरीदा था। ऐसा एक तरफा न्याय भी नहीं चल सकता। सूरत तथा भरुच सहित गुजरात सरकार ने मौजूदा वक्फ एक्ट का फायदा उठाकर हो रही घपलेबाजी के 5 अलग-अलग जिलों के 5 उदाहरण भी JPC के सामने रखे। गुजरात में करीब 40000 सम्पत्तियां वक्फ बोर्ड के अधीन नोटिफाइड हैं, इनमे से कइयों के विवाद आज भी चल रहे हैं।
वक्फ अधिनियम में संशोधन का औचित्य
- पीड़ित पक्ष को नोटिस जारी करने का कोई प्रावधान नहीं है।
- स्वामित्व, शीर्षक और राजस्व रिकॉर्ड का कोई सत्यापन नहीं।
- प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन न करना।
- निर्णय कब्जे के आधार पर लिए जाते हैं, चाहे वह कानूनी हो या अवैध।
- समय सीमा के संबंध में परिसीमा अधिनियम का लागू न होना।
- बोर्ड के सीईओ को राजस्व और संपत्ति कानून का पर्याप्त ज्ञान नहीं है।
मामलों की सूची
- सूरत नगर निगम भवन मामला
- दाहोद गोधरा हाईवे पर ताले गांव की वन भूमि
- बीके सिनेमा बिल्डिंग, मेहसाणा
- पादरा तालुकावडु गाँव सर्वे नं. 1022
- दस्तावेजों की जालसाजी- जटाली और कोसमडी गांव, तालुका अंकलेश्वर, जिला भरूच
सूरत नगर निगम भवन मामला
- 1867 से इस इमारत का उपयोग सूरत नगर निगम द्वारा किया गया है (150 साल से अधिक)
- 13 अप्रैल, 2015 और 16 मई, 2015 को अब्दुल्ला जरुउल्लाह ने संपत्ति को वक्फ के तौर पर पंजीकृत करने के लिए वक्फ बोर्ड में आवेदन दायर किया।
- वक्फ बोर्ड ने बिना किसी पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य के सिर्फ इस आवेदन के आधार पर भवन को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत कर दिया
दाहोद गोधरा हाईवे पर ताला गांव की वन भूमि
- दाहोद के पास ताला गांव में सर्वे नंबर 45 से 91 तक की भूमि को14 जून 1894 को सरकारी राजपत्र में आरक्षित वन के तौर पर नामित किया गया
- बाद में इस भूमि को केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित वन घोषित किया गया
- संरक्षित दर्जा प्राप्त होने के बावजूद, फारूक अहमद हुसैन पटेल नामक एक मुतवल्ली ने दरगाह के लिए इस भूमि पर अवैध निर्माण किया
- 19 नवंबर 1953 को अवैध निर्माण को प्रॉपर्टी टाइटल रजिस्टर (पीटीआर) में घाटा पीर दरगाह के नाम से रजिस्टर (पीटीआर) किया गया था
बीके सिनेमा बिल्डिंग, मेहसाणा
- मेहसाणा कस्बा मस्जिद के ट्रस्टी और कब्रिस्तान ट्रस्ट ने वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष एक मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि मेहसाणा में बीके सिनेमा उन्हें 1917-1918 में दरगाह और कब्रिस्तान के लिए राजा वरसोड जोरावरसिंह सूरजसिंह द्वारा आवंटित किया गया था।
- वक्फ अधिनियम 1995 के बाद इस भूमि को ट्रस्ट की संपत्ति के रूप में पंजीकृत किया गया था।
- हालांकि, 1955 में इसे सरकार को सौंप दिया गया और बाद में भोगीलाल पटेल को आवंटित कर दिया गया, जिन्होंने इसका उपयोग थिएटर के रूप में किया।
- अब ट्रस्ट ने ट्रिब्यूनल से घोषणा की मांग की है वह संपत्ति वक्फ है।
निजी जमीन-पादरा तालुका का वडु गांव, वड़ोदरा
- पटेल मंजीभाई नानजीभाई ने 1059 और 1060, वडू गांव, पादरा तालुका में पंजीकृत बिक्री विलेख के माध्यम सेसर्वे क्रमांक 1022 वाली कृषि भूमि खरीदी।
- उन्होंने भूमि पर कृषि गतिविधियां संचालित कीं और इसे 1979 में गैर-कृषि योग्य भूमि (एनए) का दर्जा प्राप्त हुआ।
- वक्फ बोर्ड ने बिना कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया।
- बाद में इस भूमि को वक्फ बोर्ड के रजिस्टर में वक्फ की संपत्ति के रूप में दर्ज कर दिया गया।
दस्तावेजों की जालसाजी
- जटाली ट्रस्ट और वक्फ कर्मचारी ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर वक्फ के नियमों से छेड़छाड़ की, रजिस्टर में छेड़छाड़ की और बोर्ड के फर्जी आदेश जारी किए।
- जाली दस्तावेज का उपयोग कर, आरोपीयों ने अपने वित्तीय लाभ के लिए वक्फ संपत्ति बेच दी।
- अंकलेश्वर के बी डिवीजन पुलिस स्टेशन में आई.पी.सी. की धारा 465, 467, 468, 471, 120 (बी) और धारा 82 (ए, बी, सी, डी) के तहत छह अपराध दर्ज किए गए हैं, जिनमें जटाली मस्जिद के ट्रस्टी आरोपी हैं।
धारा 3ए - वक्फ की कुछ शर्तें
- इस प्रावधान के अनुसार, किसी संपत्ति का केवल वैध ओनर द्वारा उस संपत्ति को हस्तांतरित करने पर ही इसे वक्फ बनाया जा सकता है।
- वक्फ की स्थापना केवल कब्जे के आधार पर नहीं की जा सकती।
- इसलिए टाइटल के डिक्लेरेशन से संपत्ति की प्रामाणिकता मजबूत होती है। उसे वक्फ घोषित किया जा सकता है, क्योंकि केवल वास्तविक स्वामी को ही संपत्ति को वक्फ बनाने का अधिकार है।
धारा 3बी - प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत
- धारा 3बी को शामिल करने पर घोषणाओं के लिए विस्तृत जानकारी की आवश्यकता है, जिसमें संपत्ति की पहचान, उसका उपयोग, उस पर रहने वाले व्यक्ति, यदि उपलब्ध हो तो वक्फ के निर्माता आदि की घोषणा करना आवश्यक है, जिससे बेईमान व्यक्तियों को धोखाधड़ी वाले लेनदेन करने से रोकने में मदद मिले।
धारा 3सी - वक्फ की गलत घोषणा
- इस प्रावधान को शामिल करने से किसी संपत्ति के सरकारी संपत्ति होने पर संपत्ति की जांच और निर्धारण के संबंध में कलेक्टर द्वारा कोई भी प्रश्न किया जा सकता है।
- यह संशोधन सुनिश्चित करता है कि सरकारी संपत्ति की वक्फ के तौर पर कीसी भी गलत घोषणा का उचित ढंग से न्यायनिर्णयन किया जा सके।
- धारा 4, इस धारा में संशोधन करके अब कलेक्टर को राजस्व कानूनों के अनुसार वक्फ से संबंधित सर्वेक्षण कराने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
- यह संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि सर्वेक्षण, राज्य के राजस्व नियमों के अनुरूप किए जाएं, जिससे राजस्व कानूनों में कलेक्टर की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, वक्फ संपत्ति के नाम पर बेईमान व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली गड़बड़ी को रोकने में मदद मिले।
धारा 5 का उपखंड 3
- यह संशोधन 90 दिनों की सार्वजनिक सूचना अवधि को अनिवार्य बनाता है, जिससे प्रभावित व्यक्तियों को भूमि अभिलेखों में नामांतरण प्रविष्टियों के संबंध में निर्णय लेने वाले राजस्व प्राधिकारी के समक्ष सुनवाई का अवसर मिल पाए।
- यह प्रावधान प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित है, जो पिछले अधिनियम में नहीं था।
सीमा अधिनियम का अनुप्रयोग
- वक्फ अधिनियम की धारा 107 को हटाकर अब आदेशों को चुनौती देने में देरी के मामले में पीड़ित पक्षों को राहत प्रदान करने हेतु 1963 का परिसीमा अधिनियम लागू होगा।
- कानून में इस बदलाव से मुकदमे में शामिल दोनों पक्षों को लाभ होगा। वक्फ संशोधन विधेयक के माध्यम से समान अवसर और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- वक्फ अधिनियम में संशोधन से सरकार की यह मंशा स्पष्ट होती है कि सभी पक्षों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर मिलेंगे। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाएगा तथा सरकारी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित होने से बचाया जाएगा।
- पोर्टल और डेटाबेस - केंद्र सरकार वक्फ संपत्ति के पंजीकरण, खातों, लेखा परीक्षा और अन्य विवरण के लिए प्रणाली स्थापित करेगी
- अकाउंट ऑडिट - केंद्र सरकार किसी भी वक्फ के खातों को अकाउंट ऑडिट के लिए नियंत्रक और ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया या केंद्र सरकार द्वारा नामित किसी भी अधिकारी को नियुक्त कर सकती है।