Thursday, November 21, 2024
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Explainer: CPM या कांग्रेस? केरल में किसके लिए ‘गेम चेंजर’ साबित होंगे 24 फीसदी मुस्लिम वोट

केरल की 24 फीसदी मुस्लिम आबादी का वोटिंग पैटर्न इस सूबे में पार्टियों की हार और जीत का अंतर बनता आया है और 2024 के लोकसभा चुनाव के भी इससे अछूता रहने की उम्मीद नहीं है।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Updated on: April 09, 2024 17:03 IST
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Image Source : FILE केरल में मुस्लिम वोटर्स चुनावों में अहम भूमिका अदा करते आए हैं।

तिरुवनंतपुरम: लोकसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और सभी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में लगी हैं। 20 लोकसभा सीटों वाले सूबे केरल में 26 अप्रैल को मतदान होना है, ऐसे में सभी की निगाहें राज्य में करीब 24 प्रतिशत मुसलमानों के वोटिंग पैटर्न पर हैं जो कि गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। इस बात को केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से बेहतर शायद ही कोई जानता हो और यही वजह है कि वह पिछले एक सप्ताह से राज्य भर में वामपंथियों के लिए अपने अभियानों के दौरान CAA, और वामपंथी इसे कैसे देखते हैं, इस पर जोर दे रहे हैं।

केरल में ईसाई समुदाय की आबादी 17 फीसदी

सीएम विजयन भी कथित तौर पर CAA का मुद्दा नहीं उठाने के लिए कांग्रेस की आलोचना कर रहे हैं। बता दें कि केरल की 3.30 करोड़ आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 24 फीसदी है, वहीं ईसाई समुदाय की हिस्सेदारी 17 फीसदी है। हालांकि, ईसाई समुदाय का मतदान पैटर्न कुल मिलाकर वही रहता है, जिसमें कांग्रेस को थोड़ी बढ़त मिलती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में वामपंथियों का काफी खराब प्रदर्शन रहा था। वे सिर्फ एक सीट जीतने में सफल रहे, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF ने 19 सीटें जीतीं और बीजेपी का कमल तो यहां खिल ही नहीं पाया।

2019 के चुनावों में इसलिए हार गए थे वामपंथी?

सियासी पंडितों का कहना है कि सूबे में वामपंथियों की हार के दो प्रमुख कारण थे। इनमें से एक था वायनाड के उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी का आना और दूसरा सीएम विजयन द्वारा लिया गया सबरीमाला मंदिर पर गलत रुख। 2019 के दौरान मुसलमानों ने कांग्रेस को भारी संख्या में वोट दिया था। हालांकि, सीएम विजयन ने इस ट्रेंड को उलट दिया और उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनावों में राज्य में पद बरकरार रखकर एक रिकॉर्ड बनाया। उनकी जीत के पीछे वामपंथियों के लिए बड़े पैमाने पर मुस्लिम वोट को निर्णायक फैक्टर माना जाता है।

इस बार भी निर्णायक होंगे मुस्लिम वोट!

नाम न छापने की शर्त पर एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘2019 के लोकसभा चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव में मतदान का पैटर्न स्पष्ट था। इस बार भी मुस्लिम समुदाय जिस तरह से सोचता है, वह निर्णायक फैक्टर हो सकता है। वामपंथी और कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को प्रभावित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। दरअसल जो कोई भी उनके वोटों का बड़ा हिस्सा हासिल करेगा वह फायदे में होगा।’  2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाला NDA तीसरे स्थान पर रहा और मात्र 15.64 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर पाया।

बीजेपी ने भी की है काफी मेहनत

राज्य में सबसे ज्यादा 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के नेतृत्व वाली UDF को 2019 के लोकसभा चुनावों में 47.48 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, CPM के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे को सिर्फ एक सीट मिली थी, और उसे 36.29 प्रतिशत वोट मिले थे। बता दें कि इन चुनावों में कांग्रेस और CPM की सीधी टक्कर के बीच बीजेपी भी कुछ सीटें जीतने की कोशिश कर रही है। पिछले कुछ महीनों में बीजेपी ने केरल में काफी मेहनत की है, और उसे उम्मीद है कि इस बार केरल में उसे निराशा हाथ नहीं लगेगी। (IANS)

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