केंद्र सरकार ने ऊंचे पदों पर अधिकारियों को भरे जाने के लिए हाल ही में एक विज्ञापन निकाला है। सरकार के इस विज्ञापन पर विपक्षी तो सवाल उठा ही रहे हैं, अब एनडीए घटक दल के नेता भी मोदी सरकार को आँखें तरेरने लगे हैं। एनडीए घटक दल के नेता अब इसमें आरक्षण की मांग करने लगे हैं। यहां जानना ये भी जरूरी है कि विपक्ष द्वारा हाल ही में पूरा लोकसभा का चुनाव आरक्षण के मुद्दे पर लड़ा गया था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि यदि नरेंद्र मोदी की सरकार तीसरी बार बन गई तो देश में आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा।
आइये जानते हैं, आखिर ये विज्ञापन है क्या?
ये विज्ञापन संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 17 अगस्त को 'लेटरल एंट्री भर्ती' को लेकर निकाला है। इस विज्ञापन में कहा गया कि विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के 45 पदों पर जल्द ही विशेषज्ञ नियुक्त किए जाएंगे। शासन की सुगमता के लिए नई प्रतिभाओं को शामिल करने के लिए मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत यह भर्ती होगी।
IAS, IFoS और ग्रुप ए लेवल की है पोस्ट
लेटरल एंट्री भर्ती के लिए आमतौर पर ऐसे पदों पर IAS, IFoS और ग्रुप ए सेवाओं के अधिकारी होते हैं। UPSC ने 17 अगस्त (शनिवार) 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया। इसमें 10 संयुक्त सचिव, 35 निदेशक और उप सचिव के पद शामिल हैं। इन पदों को अनुबंध के आधार पर 'लेटरल एंट्री' के माध्यम से भरा जाना बताया गया है।
मनमोहन सिंह समेत इन लोगों की नौकरशाही हुई थी लेटरल एंट्री
यहां ये भी जानना बहुत जरूरी है कि यूपीएसी की ओर से जो विज्ञापन निकाला गया है। ये कोई पहली बार नहीं है। इसके पहले की सरकारें भी ऐसे ही विज्ञापन निकाल कर लेटरल एंट्री के जरिए पदों पर भर्ती किया करती थीं। लेटरल एंट्री से ही पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, योजना आयोग (नीति आयोग) के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलुवालिया और सैम पित्रौदा की भी लेटरल एंट्री के जरिए ही नौकरशाही का जिम्मा दिया गया था।
क्या है लेटरल एंट्री?
लेटरल एंट्री को सीधी भर्ती भी कहा जता है। इसमें उन लोगों को सरकारी सेवा में लिया जाता है, जो अपनी फील्ड में काफी माहिर होते हैं। ये IAS-PCS या कोई सरकारी A लेवल के कैडर से नहीं होते हैं। इन लोगों के अनुभव के आधार पर सरकार अपने नौकरशाही में इन्हें तैनात करती है। इसमें 3 से 5 साल के लिए लोगों को रखा जाता है। काम के आधार पर आगे भी रखा जा सकता है। मोदी सरकार ने 2018 में औपचारिक तौर पर लेटरल एंट्री शुरू की थी। इसके पहले 2005 में UPA सरकार ने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था। इसमें बताया गया कि मंत्रालयों में कुछ पदों पर स्पेशलाइजेशन की जरूरत है। ये नियुक्ति लेटरल एंट्री से कराई जाएगी। इसमें कोई आरक्षण प्रक्रिया लागू नहीं होती है।
तो अब क्यों छिड़ा विवाद?
यूपीएससी द्वारा संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के लिए जो 45 पदों की लेटरल एंट्री से भर्ती निकाली गई है, उसमें अब आरक्षण की मांग उठ रही है। कांग्रेस सांसद व लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री में आरक्षण का मुद्दा उठाया है। साथ ही एनडीए के घटक दलों ने भी लेटरल एंट्री विवाद में कूद पड़े हैं। मोदी सरकार में शामिल लोजपा (आर) के नेता चिराग पासवन और जेडीयू नेता केसी त्यागी ने लेटरल एंट्री में आरक्षण की मांग कर दी है।
चिराग बोले- हम मजबूती से उठाएंगे आवाज, दिया तर्क
चिराग पासवान ने कहा कि जहां भी सरकारी नियुक्तियां होती हैं, वहां आरक्षण के प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए। आने वाले दिनों में भी हम इस पर मजबूती से आवाज उठाएंगे। जिस तरह से सरकारी नौकरियों में एससी , एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था चली आ रही है। हर नियुक्ति में इसका ध्यान रखना अनिवार्य है।
पीएम मोदी आरक्षण के खिलाफ नहीं- चिराग
साथ ही पासवान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच आरक्षण के खिलाफ नहीं है। कुछ दिन पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एससी और एसटी को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति देने के पक्ष में फैसला सुनाया था, तब पीएम मोदी ने स्पष्ट किया था कि डॉक्टर भीम राव अंबेडकर द्वारा बनाए गए आरक्षण के प्रावधान उसी तरह जारी रहेंगे।
JDU विरोध में तो TDP को मिला सरकार का साथ
जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने लेटरल एंट्री पर कहा कि हमारी पार्टी शुरू से ही सरकार से आरक्षित सीटों को भरने की बात कहती आई है। जब लोगों को सदियों से समाज में पिछड़ेपन का सामना करना पड़ा तो आप मेरिट क्यों ढूंढ रहे हैं? वहीं, लेटरल एंट्री पर टीडीपी ने केंद्र सरकार का समर्थन किया है। टीडीपी महासचिव नारा लोकेश ने कहा कि हमें लेटरल एंट्री को लेकर खुशी है क्योंकि कई मंत्रालयों को विशेषज्ञों की जरूरत है।
मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री भर्ती पर लगाई रोक
इस बीच, मोदी सरकार ने मंगलवार को लेटरल एंट्री से होने वाली भर्ती का फैसला वापस से लिया है। UPSC के विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में सरकार अब लेटरल एंट्री से होने वाली भर्ती में आरक्षण लाने पर विचार कर सकती है। इसी के साथ लेटरल एंट्री को लेकर अब राजनीतिक गतिरोध भी खत्म हो सकता है।