Russia Nuclear Doctrine: रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन या परमाणु नीति दुनिया के लिए बेहद मायने रखती है खासतौर पर उस समय जब रूस और यूक्रेन के बीच बीते करीब ढाई वर्षों से जंग जारी है। इसके अलावा रूस उन गिने-चुने देशों में शामिल है जिसके पास दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हथियारों का भंडार है। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स के मुताबिक, रूस और अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्तियां हैं। इन दोनों देशों के पास दुनिया के करीब 88 फीसदी परमाणु हथियार हैं। रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन तय करती है कि किन परिस्थितियों में रूस परमाणु हथियारों का प्रयोग कर सकता है। तो तलिए इस लेख में हम रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन का विश्लेषण करते हुए यह समझते हैं कि भविष्य में इसमें किस तरह के बदलाव हो सकते हैं।
खास बातों पर एक नजर
बात करें रूस की मौजूदा न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन की तो इसमें वर्ष 2020 में संशोधन किया गया था। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जून 2020 में छह पन्नों के एक आदेश में रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन का निर्धारण किया था। चलिए पहले इसके मुख्य बिंदुओं पर नजर डालते हैं।
रक्षा के लिए परमाणु हथियारों का प्रयोग
रूस केवल आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का प्रयोग करेगा। यदि किसी भी देश की तरफ से रूस पर परमाणु हमला किया जाता है, तो रूस इसका जवाब परमाणु हथियारों से देगा।
परंपरागत हमले का जवाब
यदि रूस के खिलाफ बड़े पैमाने पर पारंपरिक हथियारों का प्रयोग किया जाता है और इससे रूस की सुरक्षा या अस्तित्व खतरे में पड़ती है तो भी रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है।
सहयोगियों की रक्षा
रूस अपने सहयोगी देशों पर हमले की स्थिति में भी परमाणु हथियारों का प्रयोग कर सकता है, यदि वह हमला रूस की सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा करता है।
अपरिहार्य परिस्थितियां
रूस ने कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों को परिभाषित किया है, जिनमें वह परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। जैसे परमाणु या अन्य प्रकार के सामूहिक विनाश के हथियारों का प्रयोग, या रूस के सामरिक ठिकानों पर हमले।
राष्ट्रपति पुतिन ने दिए संकेत
रूस की मौजूदा न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में क्या है यह अब आपके सामने स्पष्ट हो चुका है। क्या रूस इसमें बदलाव कर सकता है, इस समझने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन क्या कहा था इसे देखना होगा। हाल ही में पुतिन ने कहा था कि यूक्रेन से जंग जीतने के लिए रूस को परमाणु हमले की जरूरत नहीं है। पुतिन के इस बयान से यह तो साफ हो गया कि यूक्रेन से चल रही जंग परमाणु युद्ध में नहीं बदलेगी। लेकिन, इस दौरान पुतिन ने यह भी साफ कर दिया था कि परमाणु नीति एक "जीवित उपकरण" है जिसे बदला भी जा सकता है।
'परमाणु हथियारों को मत भूलिए'
राष्ट्रपति पुतिन के अलावा सोवियत संघ के हथियार नियंत्रण का काम संभाल चुके निकोलाई सोकोव के बयानों पर भी नजर डालने की जरूरत है। सोकोव पहले ही कह चुके हैं कि "परमाणु हथियारों को मत भूलिए, बहुत, बहुत सावधान रहिए।" सोकोव कह चुके हैं कि रूस न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलावों की सार्वजनिक घोषणा नहीं करेगा, इसके बजाय रूस यह घोषणा कर सकता है कि उसने अपनी नीति बदल दी है, लेकिन नई नीति को गुप्त रखा जाएगा, ताकि पश्चिम को संकेत मिल जाए और वह अंदाजा लगाने पर मजबूर रहे। इतना ही नहीं इसी साल जून में रूसी संसद की रक्षा समिति के प्रमुख ने कहा था कि अगर रूस को लगा कि खतरे बढ़ रहे हैं तो वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के निर्णय लेने के समय को कम कर सकता है।
रूस ने उठाए हैं ठोस कदम
निकोलाई सोकोव ने यह भी कहा था कि यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि रूस की परमाणु धमकियां केवल बातें हैं। उन्होंने कहा था कि परमाणु प्रभाव की वजह से ही पश्चिमी सहायता की गति पहले ही धीमी हो गई है। इसके अलावा, रूस ने पहले से ही ठोस कदम उठाए हैं जैसे कि बेलारूस में सामरिक परमाणु मिसाइलों को तैनात करना और इस ऐसे हथियारों को लॉन्च करने का अभ्यास करना। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि यह कहना एक बड़ी गलती है कि 'वो केवल बातें कर रहे हैं', जब आप सिद्धांत बदलते हैं, तो सभी को ध्यान देना चाहिए।"
परमाणु मुद्दे का यूक्रेन युद्ध पर प्रभाव
वैसे अगर नजर डालें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि रूस के साथ परमाणु युद्ध के खतरे ने अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों को यूक्रेन के साथ लड़ने के लिए अपनी सेनाएं भेजने से रोका है। हालांकि, उन्होंने कीव को सैन्य सहायता में वृद्धि की है, जिसमें टैंक, लंबी दूरी के मिसाइल और एफ-16 लड़ाकू विमानों की सप्लाई शामिल है। यूक्रेन ने अब रूसी क्षेत्र के एक हिस्से पर कब्जा भी कर लिया है। यूक्रेन की तरफ से अब बार-बार यह मांग दोहराई जा रही है कि पश्चिम को यूक्रेन की पूरी तरह से मदद करनी चाहिए।
बदलाव की संभावना से इनकार नहीं
रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें बदलाव की संभावना वैश्विक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। हालांकि वर्तमान में रूस की नीति रक्षात्मक है, लेकिन बदलते हुए राजनीतिक परिदृश्य में इसमें बदलाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। रूस की न्यूक्लियर नीति में आने वाले किसी भी बदलाव का वैश्विक सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। तो चलिए एक नजर इस बात पर भी डालते हैं कि भविष्य में रूस की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में किस तरह के बदलाव संभव हैं।
डॉक्ट्रिन का विस्तार
रूस अपनी न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन को और व्यापक बना सकता है, जिसमें वह उन परिस्थितियों की सूची बढ़ा सकता है जिनमें परमाणु हथियारों का प्रयोग किया जा सकता है।
प्रथम प्रयोग की नीति
वर्तमान में, रूस ने स्पष्ट रूप से प्रथम प्रयोग की नीति (No First Use) को अपनाया नहीं है। लेकिन भविष्य में, वैश्विक दबाव या नई सुरक्षा चुनौतियों के कारण, रूस इस नीति को अपना सकता है या इसे सख्त कर सकता है।
हाइब्रिड युद्ध की स्थिति
अगर हाइब्रिड युद्ध (यानी साइबर हमलों, दुष्प्रचार, और आर्थिक दबाव) के प्रभाव से रूस को गंभीर खतरा महसूस होता है, तो संभव है कि वह अपनी परमाणु नीति में इसका भी प्रावधान जोड़ दे।
नई तकनीक और हथियारों का समावेश
उन्नत तकनीक, जैसे कि हाइपरसोनिक मिसाइलों की वजह से भी रूस अपनी डॉक्ट्रिन में बदलाव कर सकता है, जिसमें इन हथियारों को सामरिक परमाणु हमले के विकल्प के रूप में शामिल किया जा सकता है।
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