Tuesday, November 05, 2024
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Explainer: 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' से निकले केजरीवाल, खुद भ्रष्टाचार के मामले में हुए अरेस्ट; जानिए कैसा रहा करियर

हरियाणा के हिसार में 1968 को जम्मे अरविंद केजरीवाल 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जाना पहचाना चेहरा बन चुके थे। दो अक्टूबर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने की घोषणा की।

Written By: Mangal Yadav @MangalyYadav
Updated on: March 22, 2024 16:25 IST
गिरफ्तारी के बाद राजघाट पर अरविंद केजरीवाल- India TV Hindi
Image Source : PTI गिरफ्तारी के बाद राजघाट पर अरविंद केजरीवाल

नई दिल्लीः दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आबकारी नीति से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में बृहस्पतिवार रात को गिरफ्तार कर लिए गए। यह कार्रवाई दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से केजरीवाल को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देने से इनकार के कुछ ही घंटों बाद की गई। 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' से निकले अरविंद केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार के मामले में अरेस्ट होंगे इसकी कल्पना उन्होंने आंदोलन के समय कभी नहीं की होगी। लेकिन सच्चाई यही है अब वे गिरफ्तार हो चुके हैं जिसका अंदेशा वे पिछले कुछ महीने से जता रहे थे। 

इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे केजरीवाल

अब बात करते हैं कि अरविंद केजरीवाल के 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन'आंदोलन की। 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन को अन्ना हजारे ने लांच किया था जिसका हिस्सा अरविंद केजरीवाल भी थे। केजरीवाल और मनीष सिसोदिया राजनीति में आने से पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में लंबे समय से जुड़े रहे। साल 2006 में अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने के लिए रामन मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। केजरीवाल उस समय सुर्खियों में आए जब अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में पर्दे के पीछे से बड़ी भूमिकाएं निभाई। 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन'आंदोलन का मकशद ही था कि सरकार पर भ्रष्टाचार विरोधी कड़े कानून बनाकर दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे डालना।

अन्ना आंदोलन से मिली खास पहचान

साल 2011 की बात है जब दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कानून और लोकपाल बिल की मांग को लेकर सैकड़ों समर्थकों के साथ अनशन पर बैठ गए। अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, योगेंद्र यादव, प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण और किरण बेदी समेत कई जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हिस्सा लिए। दिल्ली का रामलीला मैदान हजारों लोगों से भरा हुआ था। 'मैं भी अन्ना' की टोपी लगाकर भ्रष्टाचार की मुहिम से जुड़ते चले गए। यही वो दौर था जब तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ देश भर में भ्रष्टाचार को लेकर माहौल बनने लगा। 

अन्ना आंदोलन के बाद राजनीति में आए

28 अगस्त 2011 को अन्ना हजार ने 13दिन चले अनशन को तोड़ दिया। यही वो दिन था जब केजरीवाल के मन में राजनीति में उतरने की इच्छा हुई। केजरीवाल और उनके समर्थकों ने दावा किया कि अगर भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो सिस्टम में घुसना पड़ेगा यानी राजनीति में उतरकर इसे जड़ से खत्म करना होगा। कांग्रेस के कई नेताओं ने केजरीवाल को चुनाव लड़ने की चुनौती भी दी थी। 

26 नवंबर 2012 को बनाई पार्टी

हरियाणा के हिसार में 1968 को जम्में अरविंद केजरीवाल 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जाना पहचाना चेहरा बन चुके थे। दो अक्टूबर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने की घोषणा की। भारतीय संविधान की वर्षगांठ के दिन 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन किया। आम आदमी पार्टी ने साल 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा और पहली बार में ही 70 में से 28 सीटें जीत ली। कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया और केजरीवाल पहली बार में ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि यह सरकार 49 दिन ही चल पाई। बाद में फिर से जब चुनाव हुए तो आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली। बंपर जीत के बाद केजरीवाल एक बार फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 

राष्ट्रीय पार्टी बनी आम आदमी पार्टी

दिल्ली में सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी देश में अपना विस्तार करने लगी। 10 अप्रैल 2023 को चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया। दरअसल, आम आदमी पार्टी ऐसी देश की तीसरी पार्टी है जिसकी दो या उससे अधिक राज्यों में सरकार है या फिर विधायक और सांसद हैं। दिल्ली के अलावा पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। गोवा में आप के दो विधायक हैं तो गुजरात में पांच विधायक चुनकर आए। वो भी ऐसे समय में जब बीजेपी ने वहां पर बंपर जीत दर्ज की। पंजाब से एक लोकसभा सांसद भी है। दिल्ली से तीन और पंजाब से पांच राज्यसभा सांसद आप के हैं।

 2006 में छोड़ दी थी सरकारी नौकरी

अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार में हुआ था। केजरीवाल ने आईआईटी खड़कपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। कुछ दिनों तक टाटा समूह की कंपनी में काम किया। साल 1992 में राजस्व अधिकारी के तौर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा में आ गए। 2006 में यहां से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन के नाम से एनजीओ की स्थापना की और सरकारी तंत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने और सूचना के अधिकार के प्रति लोगों को जागरुकता पैदा करने का अभियान शुरू कर दिया। 

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