नीरज चोपड़ा। भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर। आप चाहे इन्हें गोल्डन ब्वॉय कह लीजिए या फिर गोट। गोट माने ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम। हो भी क्यों ना, दुनियाभर की ऐसी कोई प्रतियोगिता नहीं बची है जहां नीरज ने जाकर अपना डंका ना बजाया हो। ओलंपिक हो, वर्ल्ड चैंपियनशिप या फिर एशियन गेम्स... नीरज के भाले ने गोल्ड पर हर बार सटीक निशाना लगाया। 25 साल के इस स्टार एथलीट ने कुछ ही समय में जैवलिन थ्रो का स्तर देश में इतना बढ़ा दिया है कि अब हर घर में इसके बारे में बात होने लगी है। लोग अपनी आगे की जनरेशन को इस खेल में बढ़ावा देना चाह रहे हैं। लेकिन जैवलिन थ्रो मात्र उतना ही खेल नहीं है जितना लोगों ने टीवी पर इसे देखा है या समझा है। इस रिपोर्ट में हम आपको इस खेल के छोटे से इतिहास से, रूल्स और इस खेल में करियर बनाने के बारे में थोड़ी जानकारी देने जा रहे हैं।
1908 से ओलंपिक में शामिल
708 बीसी में प्राचीन ओलंपिक खेलों में जैवलिन थ्रो को शामिल किया गया था लेकिन उस समय, जैवलिन एक स्टैंडअलोन खेल नहीं था बल्कि मल्टी-स्पोर्ट पेंटाथलॉन इवेंट का हिस्सा था। लेकिन साल 1908 में पहली बार लंदन ओलंपिक गेम्स में जैवलिन को आधुनिक यानी कि मॉडर्न ओलंपिक गेम्स का हिस्सा बनाया गया। महिलाओं के जैवलिन थ्रो की शुरुआत 1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में हुई।
क्या होता है साइज और वजन?
पुरुषों की प्रतियोगिताओं में उपयोग किए जाने वाले जैवलिन यानी कि भाले का वजन कम से कम 800 ग्राम और माप 2.6 मीटर से 2.7 मीटर के बीच होना चाहिए। महिलाओं के लिए न्यूनतम वजन 600 ग्राम होना चाहिए जबकि भाले की लंबाई 2.2 मीटर से 2.3 मीटर के बीच हो सकती है।
क्या कहते हैं जैवलिन के रूल्स?
जैवलिन थ्रो में भाले यानी कि जैवलिन को यथासंभव दूर तक फेंकना होता है। हालांकि थ्रोअर्स को अपने थ्रो को वैध मानने के लिए नियमों के एक सेट का पालन करना होता है।
1. एथलीट को एक हाथ से भाला पकड़ना होगा। फेंकने वाले हाथ पर दस्ताने पहनने की अनुमति नहीं है। एथलीट अपनी उंगलियों पर तब तक टेप लगा सकते हैं, जब तक इससे थ्रो के दौरान कोई अतिरिक्त सहायता नहीं मिलती। प्रतियोगिताओं से पहले जज टेपिंग की जांच करते हैं। दो या दो से अधिक अंगुलियों को एक साथ टैप करने की भी अनुमति नहीं है।
2. फेंकने की पूरी प्रक्रिया के दौरान, भाला को ओवरहैंड स्थिति में रखा जाना चाहिए, यानी कंधे के ऊपर या फेंकने वाली भुजा के ऊपरी हिस्से पर। भाला छोड़ते समय और उसके उतरने से पहले, एथलीटों को थ्रोइंग आर्क या फाउल लाइन के पीछे रहना चाहिए।
3. एक बार जब उनकी बारी की घोषणा हो जाती है, तो एथलीटों को एक मिनट के अंदर अपना थ्रो पूरा करना होता है।
उपरोक्त किसी भी नियम को पूरा करने में विफलता के परिणामस्वरूप फाउल थ्रो होता है और प्रयास को गिना नहीं जाता है।
भारत में कैसे बनें जैवलिन थ्रोअर?
भारत में आपको एक सफल जैवलिन थ्रोअर बनने के लिए सबसे पहले खुद को डिस्ट्रिक्ट उसके बाद स्टेट और फिर नेशनल लेवल तक लेकर जाना होगा। यानी कि हर खेल की तरह स्टेप बाय स्टेप ही आप जैवलिन में भी एक कामयाब खिलाड़ी बन सकते हैं। वहीं एक बार नेशनल जीतने के बाद आपको नेशनल कोच आगे के लिए ट्रेनिंग देंगे। इस खेल में डाइट, फिटनेस और आपकी कोचिंग तगड़े दर्जे की होनी चाहिए और इसके लिए आपको आर्थिक रूप से भी तैयार रहना होगा। खासकर फिजिकल फिटनेस जैवलिन के लिए बेहद जरूरी चीज है। इसके लिए आपको रेगुलर जिम में पसीना बहाना होगा। नीरज चोपड़ा ने खुद खुलासा किया था कि वो इस खेल के लिए आर्थिक रूप से अच्छे नहीं थे लेकिन इसी के लिए उन्होंने पहले आर्मी ज्वॉइन की और वो अपने घर से 17 किलोमीटर दूर रोज ट्रेनिंग के लिए जाते थे।
नीरज ने जीते सभी खिताब
1.दक्षिण एशियाई खेल 2016 में स्वर्ण
2.एशियन चैंपियनशिप 2017 में गोल्ड
3.कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में गोल्ड
4. एशियन गेम्स 2018 में गोल्ड
5. ओलंपिक 2020 में गोल्ड
6. डायमंड लीग 2022 में गोल्ड
7. विश्व चैंपियनशिप 2022 में रजत
8. विश्व चैंपियनशिप 2023 में स्वर्ण