नई दिल्ली: अगर हाल के कुछ बयानों पर नजर डालें तो ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और और भारतीय जनता पार्टी के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। संघ को बीजेपी का मातृ संगठन माना जाता रहा है, संघ से प्रशिक्षण प्राप्त कर लोग बीजेपी के अंदर अहम पदों को संभालते रहे हैं। यह सिलसिला लंबे अर्से से चला आ रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी जैसे कई शीर्ष नेता संघ की शाखाओं से निकलकर राजनीति में आए। लेकिन 2024 के लोकसभा के परिणाम के बाद जिस तरह से खुलकर बयान सामने आ रहे हैं उससे यह बात स्पष्ट है कि कहीं न कहीं कुछ खटपट जरूर चल रहा है, जिसे दुरुस्त करने की जरूरत है।
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद पहली मुलाकात
वहीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आज पहली बार गोरखपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुलाकात होने की प्रबल संभावना है। दोनों के बीच ये मुलाकात गोरखपुर में RSS प्रशिक्षण सत्र में हो सकती है। यह मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन बहुत खराब रहा और यही वजह है कि बीजेपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने से चूक गई।
संघ प्रमुख इशारों में उठा चुके हैं सवाल
इतना ही नहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत खुद इशारों में सवाल उठा चुके हैं। संघ प्रमुख ने कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन समारोह में अपने एक बयान में कहा था कि सच्चा सेवक काम करते समय हमेशा मर्यादा बनाए रखता है। वह अपना काम करता है लेकिन अनासक्त रहता है। उसमें कोई ऐसा अहंकार नहीं रहता कि मैंने यह किया है। केवल ऐसे अनासक्त व्यक्ति को ही सेवक कहलाने का अधिकार है। संघ प्रमुख का यह बयान सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने इसे सरकार पर आरएसएस प्रमुख का तंज माना और तरह-तरह के बयान आने लगे। फिर जाकर संघ की ओर से इस पर सफाई दी गई कि संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी किसी व्यक्ति विशेष या सरकार पर नहीं थी।
इंद्रेश कुमार ने अहंकार की बात की
अभी मोहन भागवत के बयान से उपजा विवाद थमा भी नहीं था कि संघ के एक प्रमुख चेहरे इंद्रेश कुमार का बयान सामने आ गया। उन्होंने सत्तारूढ़ बीजेपी को अहंकारी और विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक को राम विरोधी करार दिया। इंद्रेश कुमार ने कहा कि राम सबके साथ न्याय करते हैं। जिन्होंने राम की भक्ति की लेकिन उनमें धीरे-धीरे अहंकार आ गया। उस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बना दिया। लेकिन उसको पूर्ण हक मिलना चाहिए, जो शक्ति मिलनी चाहिए थी उसे भगवान ने अहंकार के कारण रोक दिया। हालांकि उन्होंने किसी पार्टी का नाम नहीं लिया।
इंद्रेश कुमार ने लिया यू टर्न
इंद्रेश कुमार ने जयपुर के पास कानोता में रामरथ अयोध्या यात्रा दर्शन पूजन समारोह को संबोधित करेत हुए यह बात कही। इंद्रेश कुमार आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि जिन्होंने राम का विरोध किया उनमें से किसी को भी सत्ता नहीं दी गई। यहां तक कि उन सभी को एक साथ नंबर दो बना दिया गया। जो लोग राम की पूजा करते हैं उन्हें विनम्र होना चाहिए और जो राम का विरोध करते हैं,भगवान स्वयं उनसे निपटते हैं। हालांकि विवाद बढ़ने के बाद इंद्रेश कुमार को भी अपने बयान पर सफाई देनी पड़ी। उन्होंने यू टर्न लेते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी की अगुआई में देश विकास कर रहा है और विकास के रास्ते पर चल रहा है।
संघ और बीजेपी के बीच कुछ ठीक?
संघ के शीर्ष नेतृत्व की ओर से आए इन बयानों से ऐसा प्रतीत होता है कि संघ और बीजेपी के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसे दुरुस्त करने जरूरत है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। उसकी सीटों की संख्या पिछले चुनाव की तुलना में घटकर आधी रह गई हैं। इन हालातों के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। अब यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन दोनों की मुलाकात में सियासत से जुड़ी क्या बातें हो सकती हैं।
भागवत-योगी मुलाकात में क्या होगी बात?
- यूपी में बीजेपी का खराब प्रदर्शन
- अयोध्या में बीजेपी की करारी हार
- विपक्ष के नैरेटिव में कैसे फंसी पार्टी
- RSS का 'यूपी एजेंडा'
- यूपी में संघ की गतिविधि बढ़ाना
सियासी गलियारों में यह माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के साथ ही अयोध्या में पार्टी की हार पर भी चर्चा हो सकती है। अयोध्या में बीजेपी की हार से एक बड़ा संदेश गया है कि जहां राम मंदिर का भव्य निर्माण हुआ और प्राण प्रतिष्ठा का इतना भव्य कार्यक्रम हुआ, वहां बीजेपी कैसे हार गई? साथ ही इस बात पर भी चर्चा हो सकती है कि बीजेपी विपक्ष के नैरेटिव में कैसे फंस गई। वहीं आरएसएस का यूपी एजेंडा और यूपी में संघ की गतिविधि बढ़ाने पर भी चर्चा हो सकती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इन दोनों की नेताओं की मुलाकात कोई सामान्य मुलाकात नहीं हो सकती है। बदली हुई परिस्थितियों में यह मुलाकात सियासत के लिए एक बड़ा संकेत भी हो सकता है।