Indian Pakistan Water Dispute: भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद जगजाहिर है। लेकिन जल को लेकर भी विवाद आज का नहीं, बल्कि जब से दोनों देश आजाद हुए, तभी से यानी 1947 के समय से ही है। बात यहां से शुरू होती है कि सिंधु, सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब जैसी नदियां भारत से होकर पाकिस्तान गुजरती हैं। ऐसे में जाहिर है कि पाकिस्तान ने भारत पर कई बार अनर्गल आपत्तियां जल को लेकर जताईं, वहीं भारत ने उदारता का रुख ही अपनाया। यही कारण रहा कि सिंधु जल समझौता किया गया। ये समझौता क्या था, किस परिस्थिति में किया गया, इसके बारे में आप विस्तार से जानिएगा। लेकिन साथ ही यह भी समझिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच जल विवाद क्या है? रावी नदी का पानी रोकने के पीछे क्या नियम रहा? कितनी नदियों को लेकर पाकिस्तान से विवाद है और इन विवादों और समझौतों का क्या इतिहास रहा है?
पाकिस्तान से जल विवाद को लेकर तथ्यों को गहराई और विस्तार से समझने से पहले ये ताजा घटनाक्रम जान लें, वो यह कि भारत ने रावी नदी का पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी अपने उपयोग के हिसाब से बांध बनाकर रोका है। इससे पहले से ही कंगाल पाकिस्तान की फजीहत और बढ़ जाएगी। क्योंकि ये बांध करीब 45 साल से भारत बना रहा था। इसे लेकर पाकिसतान आपत्ति जता रहा था। लेकिन अवैधानिक आपत्ति के बावजूद भारत का रावी नदी पर यह बांध बनकर तैयार हो गया है। अब रावी नदी का पानी पाकिस्तान तक नहीं जा सकेगा।
समझौते के नियमों के तहत ही रोका गया पानी
यह बांध का पानी भारत ने रोककर कोई गलत काम नहीं किया है। अंतरराष्ट्रीय नियमों और संधि के मुताबिक ही भारत ने बांध बनाने का काम किया है। दरअसल, विश्व बैंक की देखरेख में 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत रावी के पानी पर भारत का विशेष अधिकार है। पंजाब के पठानकोट जिले में स्थित शाहपुर कंडी बैराज जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच घरेलू विवाद के कारण रुका हुआ था। लेकिन इसके कारण इतने वर्षों में भारत के पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान चला जाता था।
जानिए क्या था वो समझौता, जो पंडित नेहरू ने कराची में किया था
भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 से चले आ रहे जल विवाद के बीच जब परिस्थितियां कुछ अनुकूल हुई थीं, तब करीब 64 साल पहले यानी 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि की गई थी।
पाकिस्तान के हाथ में पानी का 80 फीसदी हिस्सा, भारत के हाथ में क्या?
इसी समझौते के तहत दोनों देशों के बीच सिंधु नदी और उसकी अन्य सहायक नदियों से पानी की आपूर्ति का बंटवारा नियंत्रित किया जाना तय किया गया। इस संधि के तहत सिंधु और उसकी सहायक नदियों से भारत को लगभग 19.5 प्रतिशत तो पाकिस्तान को लगभग 80 प्रतिशत पानी मिलता है। पानी के आवंटित हिस्से का लगभग 90 प्रतिशत पानी ही भारत उपयोग करता है।
समझिए पानी के बंटवारे का समीकरण
सिंधु जल संधि के तहत रावी, सतलुज और ब्यास के पानी पर भारत का पूरा अधिकार है। वहीं जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है। साल 1979 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर सरकारों ने पाकिस्तान को पानी रोकने के लिए रंजीत सागर बांध और डाउनस्ट्रीम शाहपुर कंडी बैराज बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। समझौते पर जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और उनके पंजाब समकक्ष प्रकाश सिंह बादल ने हस्ताक्षर किए थे।
जिस बांध को बनाकर पानी रोका, उसके बनने में आई कई अड़चनें
साल 1982 में, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परियोजना की नींव रखी थी। इसके 1998 तक पूरा होने की उम्मीद थी। जबकि रणजीत सागर बांध का निर्माण 2001 में पूरा हो गया था, लेकिन शाहपुर कंडी बैराज नहीं बन सका और रावी नदी का पानी पाकिस्तान में बहता रहा। फिर साल 2008 में शाहपुर कंडी परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था, लेकिन निर्माण कार्य 2013 में शुरू हुआ। इन सबके बीच विडंबना यह है कि 2014 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच विवादों के कारण परियोजना फिर से रुक गई थी।
मोदी सरकार की मध्यस्थता से 2018 में हुआ समझौता, फिर शुरू हुआ काम
आख़िरकार साल 2018 में केंद्र की मोदी सरकार ने मध्यस्थता की और दोनों राज्यों के बीच समझौता कराया तब इसका काम फिर से हो पाया। यह काम कुछ ही समय पहले आखिरकार खत्म हो गया और बांध अब बनकर तैयार है। अब जो पानी पाकिस्तान जा रहा था, उसका उपयोग अब जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख जिलों - कठुआ और सांबा में सिंचाई करने के लिए किया जाएगा। 1150 क्यूसेक पानी से अब केंद्र शासित प्रदेश की 32,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी और बांध से पैदा होने वाली पनबिजली का 20 फीसदी हिस्सा जम्मू-कश्मीर को भी मिल सकेगा।