इस 15 अगस्त को भारत 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। ब्रिटिश हुकूमत के करीब 200 साल की गुलामी से आजादी का ये जश्न देश भर में मनाया जाता है। लेकिन देश को ये आजादी इतनी आसानी से भी नहीं मिली थी। लाखों करोड़ों की संख्या में भारतीय लोगों ने अंग्रेजों की क्रूरता को झेला था। आइए जानते हैं अंग्रेजों की क्रूरता के कुछ ऐसे किस्सों को जो आपकी भी रूह कंपा देंगे....
कालापानी की सजा
अंग्रेज जिस भारतीय को भी अपनी सत्ता के लिए खतरा समझते थे उन्हें वो कलापानी की सजा दिया करते थे। कालापानी अंडमान निकोबार द्वीपसमूह पर स्थित सेल्यूलर जेल को कहा जाता था। यहां कैदियों को असीमित प्रताड़ना दी जाती थी। उन्हें कोल्हू का बैल बनाकर तेल तक निकलवाया जाता था। चारों ओर फैले समुद्र के कारण कैदियों के पास भागने का कोई भी रास्ता नहीं होता था। कैदियों के सेल भी इतने छोटे रखे जाते थे कि कोई भी कैदी एक-दूसरे से बात न कर सके। कई कैदियों की जेल में ही मौत हो गई थी।
आंदोलनकारियों की हत्या
अपने शासनकाल में अंग्रेजों ने आजादी के लिए लड़ रहे अनगिनत आंदोलनकारियों की निर्मम हत्याएं की थीं। लाला लाजपत राय की हत्या, खुदीराम बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी आदि इन्हीं के कुछ बड़े उदाहरण हैं। अंग्रेजों के इस रवैये को भारत में काला दौर माना जाता है।
जालियांवाला बाग हत्याकांड
ये हत्याकांड अंग्रेजों के सबसे निर्मम कृत्यों में से एक माना जाता है। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के त्योहार के दिन अंग्रेजो ने हजारों निहत्थे लोगों पर अंधाधुन फायरिंग की। अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों का समूह इकट्ठा हुआ था। तभी अंग्रेज जनरल डायर ने सैनिकों के साथ आकर जलियांवाला बाग को घेर लिया। इस बाग से निकलने का केवल एक ही रास्ता था जिसपर अंग्रेज सैनिक बंदूक ताने बैठे थे। जनरल डायर के आदेश पर सैनिकों ने आम लोगों पर तब तक गोलियां बरसाई जब तक की उनकी गोलियां खत्म नहीं हो गईं। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस हत्याकांड में हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
बंधुआ मजदूरी
अंग्रेजों ने भारत पर केवल शासन नहीं किया बल्कि वो सस्ती मजदूरी के लिए भारतीयों को गुलाम बनाकर हजारों किलोमीटर दूर द्वीपों पर भेजा करते थे। हजारों-लाखों की संख्या में विदेश भेजे गए वो मजदूर कभी भी वापस नहीं आ सके। उन्हें आज आम भाषा में गिरमिटिया मजदूर भी कहते हैं। फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम और कैरिबियाई देशों में आज बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग हैं। ये अंग्रेजों की उसी नीति का परिणाम है।
मानव निर्मित अकाल
अंग्रेजों की बुरी नीतियों के कारण साल 1943 में भारत में आए अकाल को दुनिया के सबसे भीषण मानव निर्मित त्रासदियों में से एक माना जाता है। समुद्री तूफान के कारण उड़ीसा, बंगाल, और बिहार के इलाकों में फसलें नहीं हुई थी। हालांकि, देश के अन्य हिस्सों में अनाज की कोई कमी नहीं थी। लेकिन अंग्रेजों की निर्मम सरकार इस अनाज का उपयोग दूसरे विश्व युद्ध में अपने सैनिकों के लिए कर रही थी। नतीजतन इन इलाकों में 20 लाख से अधिक लोगों ने भूख से तड़प कर अपनी जान दे दी।
भारतीय उद्योग-खेतों की बर्बादी
अंग्रेजों के आने से पहले भारत के कपड़ों का निर्यात काफी बेहतर था। अंग्रेजों ने इस व्यापार पर तगड़ी चोट की। अंग्रेज अपने देश से सामान काफी कम या बिना किसी शुल्क के भारत लाने लगे और भारतीय सामानों के निर्यात पर भारी टैक्स लगा दिया। इस कारण भारतीय व्यापार धीरे-धीरे कर के समाप्त होता चला गया। किसानों के खेत में जबरन नील की खेती करवाई जाने लगी जिससे जमीन बंजर होने लगे और किसानों के ऊपर अधिक लगान डाला जाने लगा। इसका परिणाम हुआ कि छोटे किसान खत्म हो गए और देश में जमींदारी प्रथा बढ़ती चली गई।