उत्तर प्रदेश के घोसी में उपचुनाव होना है। वहीं, इस एक सीट से यूपी की 80 लोकसभा सीटों का भी हिसाब होना है। घोसी के चुनाव नतीजे बताएंगे कि यादव और मुस्लिमों के अलावा अखिलेश को पिछड़ों का कितना समर्थन मिला। वहीं, ये सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए नाक का सवाल बन गई है। दरअसल, ये सीट योगी सरकार के कामकाज के साथ ही 2024 चुनाव के लिए बीजेपी की तैयारियों का लिटमस टेस्ट है। चुनाव से पहले ही बीजेपी ने अपने गठबंधन NDA में ओम प्रकाश राजभर को शामिल कराया, जिनका पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर असर है। राजभर समाज के 40 हजार वोटर चुनाव के रिजल्ट पर अपना असर डाल सकते हैं। ऐसे में राजभर के NDA में शामिल होने से क्या पूर्वांचल का वो इलाका फिर से मजबूत हो पाएगा, जहां बीजेपी को 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में झटका लगा था। क्या बीजेपी गैर-यादव ओबीसी वोटों और दलित वोटरों पर अपनी पकड़ बरकरार रख पाएगी। कुर्मी, नाई, निषाद और कुम्हार वोटर्स इन चुनाव में किसका साथ देंगे। यानी घोसी से यूपी के अस्सी का टेस्ट होना है।
अखिलेश यादव का बड़ा दांव
इन सबके बीच, बीजेपी की तैयारियों को देखकर अखिलेश यादव ने मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है। समाजवादी पार्टी ने घोषी उपचुनाव के लिए इस सीट से 2012 में विधायक रहे सुधाकर सिंह पर दांव लगाया है। सुधाकर सिंह अपर कास्ट से आते हैं। अखिलेश यादव को मुस्लिम और यादव वोटरों पर तो पूरा भरोसा है, ऐसे में उनकी कोशिश है कि मुस्लिम, यादव के अलावा पिछड़ों के साथ ही स्वर्ण वोटरों खासतौर पर राजपूत वोटों का समर्थन उन्हें मिल सके। उपचुनाव में अमूमन वैसे ही कम वोटिंग होती है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि चुनाव से पहले जिस तरह के जातीय समीकरणों को तैयार किया जा रहा है वो कितना कारगर साबित होंगे।
इस सीट पर जातीय समीकरण
बीजेपी को इन चुनावों में भूमिहार, राजभर, लोनिया राजपूत, राजपूत, ब्राह्मण के साथ दूसरी छोटी जातियों का साथ मिलने की उम्मीद है। मायावती इस चुनाव से दूर हैं, लिहाजा बीजेपी की नजर दलित वोटरों पर भी है, अगर इसे आंकड़ों के जरिए समझें तो भूमिहार 48 हजार, राजभर 40 हजार, लोनिया राजपूत 36 हजार, राजपूत (ठाकुर) 15 हजार और ब्राह्मण समाज के 4100 वोटरों का साथ पाने की कोशिश में है। ये आंकड़ा 1 लाख 44 हजार के करीब पहुंचता है। ऐसे में अगर पार्टी 62 हजार दलित और 75 हजार अन्य वोटरों में से आधे का भी समर्थन हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है, लेकिन बीजेपी की रणनीति के काट अखिलेश यादव ने भी तैयार रखी है। वो बीजेपी को उसी के पिच पर खेल कर मात देना चाहते हैं। बीजेपी और एसपी की सीधी लड़ाई होने की वजह से अखिलेश के पास मुस्लिम 60 हजार और 42 हजार यादवों का एकतरफा समर्थन है। ये दोनों मिलाकर ही 1 लाख 2 हजार हो जाते हैं, जो कुल वोटरों का लगभग 25 फीसदी है। अखिलेश के PDA यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक का तीसरा किरदार दलित है, जिनकी घोषी में आबादी 62 हजार है। इसके अलावा सुधाकर सिंह राजपूत बिरादरी से आते हैं, जिनके करीब 15 हजार वोटर हैं। इन चारों का आंकड़ा मिलकर 1 लाख 79 हजार तक पहुंच जाता है। अखिलेश यादव को दूसरी जातियों के 75 हजार वोटों में भी सेंधमारी की कोशिश है।
दोनों पार्टियों के प्रत्याशी के बारे में
अब दोनों पार्टियों के उम्मीदवार बने प्रत्याशियों के बारे में भी जान लेते हैं, जिनकी सियासी लड़ाई की वजह ये सीट बेहद दिलचस्प हो गई है। समाजवादी पार्टी ने सुधाकर सिंह पर भरोसा किया है। सुधाकर सिंह सबसे पहले नत्थूपुर सीट से 1996 में विधायक बने। बाद में परिसीमन के बाद इस सीट का नाम बदलकर घोषी कर दिया गया। 2012 में भी सुधाकर सिंह को इस सीट से जीत मिली, लेकिन 2017 में वो फागू सिंह चौहान के हाथों ये सीट गंवा बैठे। साल 2020 के उपचुनाव में भी सुधाकर सिंह को हार का सामना करना पड़ा, जबकि 2022 में दारा सिंह चौहान के चुनाव लड़ने की वजह से समाजवादी पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। अब बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की बात करें तो यूपी की सियासत में कद्दावर नेता माने जाने वाले दारा सिंह चौहान का सियासी सफर 1996 में बीएसपी से शुरू हुआ। पार्टी ने 1996 और साल 2000 में उन्हे राज्यसभा में भेजा। 2009 में उन्होंने घोषी सीट से जीत दर्ज की। 2015 में दारा सिंह चौहान बीजेपी में शामिल हुए और 2017 के चुनाव में घोषी से फिर विधायक चुने गए और योगी सरकार में मंत्री बने। 2022 चुनाव से पहले उन्होंने बीजेपी छोड़ा और एसपी के टिकट से चुनाव लड़कर जीत हासिल की, लेकिन वो एक बार फिर बीजेपी में शामिल हो गए हैं और विधायक पद से इस्तीफा देने की वजह से घोषी में चुनाव कराए जा रहे हैं।
घोसी सीट पर किसका रहा दबदबा?
घोसी के सियासी इतिहास की बात करें तो यहां कभी भी किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा। 1977 से जनता पार्टी, कांग्रेस, जनता दल, बीएसपी, बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की। मतलब साफ है कि यहां पार्टियों से ज्यादा जातीय समीकरण मायने रखते हैं। जिन प्रत्याशियों को दलितों और पिछड़ों का समर्थन मिला उसने जीत हासिल कर ली। इस सीट से बीजेपी नेता और पूर्व राज्यपाल फागू चौहान 6 बार विधायक रहे। 1985 में पहली बार विधायक बनने वाले फागू चौहान लोकदल, जनता दल, बीजेपी और बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए जीत हासिल की।
स्थानीय Vs बाहरी प्रत्याशी की लड़ाई
घोषी उप-चुनाव में स्थानीय Vs बाहरी प्रत्याशी की भी जंग जारी है। समाजवादी पार्टी दारा सिंह चौहान को बाहरी बता रही है, तो बीजेपी पलटवार कर रही है। यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बड़े अंतर से चुनाव जीतने का दावा किया और कहा कि यूपी के लोग फिर से अराजकता और दबंगई का खराब दौर नहीं देखना चाहते। बीजेपी घोषी का चुनाव जीतकर विपक्ष को 2024 का ट्रेलर दिखाना चाहती है, तो अखिलेश यादव भी यूपी की 80 की 80 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। अखिलेश का कहना है की सुधाकर सिंह घोषी में ऐतिहासिक जीत दर्ज करेंगे। अखिलेश यादव जीत का दावा कर रहे हैं तो एसपी प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने चुनाव में दारा सिंह चौहान की जमानत जब्त करने का ऐलान कर दिया।
दोनों पार्टियां कर रहीं जीत का दावा
सियासत है तो जीत के दावे दोनों ही तरफ से होंगे, लेकिन बीएसपी के चुनावी मैदान में ना होने से सियासी जंग दिलचस्प हो गई है। सबकी नजर 62 हजार दलित वोटों पर टिकी है ये मतदाता जिस तरफ जाएंगे। उधर का पलड़ा मजबूत हो जाएगा। यही वजह से बीजेपी कहीं से भी कोई चूक नहीं करना चाहती। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूरेंद्र चौधरी, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक समेत दर्जनभर मंत्री और विधायक घोषी में डेरा डाले हुए हैं। बीजेपी की जनसभा में भोजपुरी एक्टर और आजमगढ़ से बीजेपी सांसद दिनेश लाल निरहुआ ने अपने ही अंदाज में कहा कि अखिलेश कितना भी जोर लगा लें जीतेगी को बीजेपी ही। घोषी की लड़ाई में ओम प्रकाश राजभर का सियासी कद भी दांव पर लगा हुआ है। लिहाजा उन्होंने भी दारा सिंह चौहान के प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। वो अपने कार्यकर्ताओं को समझा रहे हैं कि इस बार वो नए निशान और नए पहचान के साथ खड़े हैं।
बीजेपी-सपा के लिए ये सीट अहम क्यों?
घोसी उपचुनाव के नतीजे बीजेपी के साथ एसपी के लिए इस लिए भी अहम हैं, क्योंकि एसपी के पीडीए यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक वाली रणनीति की यहां परीक्षा होगी। इस सीट पर पीडीए नतीजों को तय करने की क्षमता रखता है, इसलिए नतीजे एसपी के पक्ष में आते हैं, तो उसकी रणनीति पर मुहर लग जाएगी और I.N.D.I.A. गठबंधन में उनका कद बढ़ जाएंगे, लेकिन अगर नतीजे मन मुताबिक नहीं होते तो अखिलेश की रणनीति पर ही सवाल खड़े होने लगेंगे। वहीं, बीजेपी के साथ-साथ दारा सिंह चौहान के लिए नतीजे उनके व्यक्तिगत रसूख और भविष्य के लिहाज से अहम है। जिस दमदारी के साथ बीजेपी उनको वापस लाई है, अगर वह जीतते हैं तो उनका कद और बढ़ेगा, लेकिन हारते हैं तो उनका सियासी कद प्रदेश में खत्म होने के कागार पर पहुंच जाएगा। सबसे बड़ी चुनौती सीएम योगी के लिए है, क्योंकि ये चुनाव उनकी सरकार के कामकाज के साथ ही बीजेपी के मिशन 80 की तैयारियों की तस्दीक करेगा।